इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत की ओर दुनिया की निगाहें है । पूरे विश्व में आर्थिक नीतियों पर चर्चा के लिए होने वाली बैठकों में भारत और चीन के आर्थिक विकास का हीं मुद्दा छाया रहता है। विदेशी निवेशक यही मानते है कि भारत निवेश की उम्दा जगह हैं।
लेकिन हर तस्वीर के दो पहलू होते हैं। जो विदेशी निवेशक विभिन्न बैठकों में भारत की आर्थिक उपलब्धियों की सराहना करते है। वह जब भारत यात्रा पर आते हैं तो उन्हें दूसरा ही भारत देखने को मिलता है। देश में औद्योगिक विकास का माहौल ही नहीं मिल पाता। सड़कों की हालत खास्ता है, शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों की विशाल श्रृंखला नजर आती है। भुखमरी और बीमारी की समस्या अभी भी बड़े पैमाने पर विद्यमान है। इन बातों से आपको हालिया फिल्म स्लमडॉग मिलिनेयर की याद आ गई होगी।
वास्तव में नीतिकारों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि विकास के साथ-साथ गरीबी और अमीरी की खाई पाटी जाए। इस समय दुनिया के एक तिहाई निर्धन व्यक्ति भारत में रहते है। 199 विकासशील देशों की ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का स्थान 93 है। भारत में करीब 35 प्रतिशत आबादी यानी लगभग 35 करोड़ लोग भोजन की असुरक्षा के शिकार हैं। गर्भवती महिलाओं में खून की कमी 20 प्रतिशत बच्चों की मौत का कारण है। 1992 से 2006 के बीच हुए तीन नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे लगातार बताते आए हैं कि भारत में बच्चों की पोषण स्थिति दयनीय है। 21 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और वह भी तब जब केन्द्र से लेकर राज्य और ब्लाक स्तर पर बच्चों के पोषाहार के लिए तमाम योजनाएं चलायी जा रही हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दक्षिण एशिया में भारत के पीछे सिर्फ बांग्लादेश है। यह तब है जब भारत में विश्व का सबसे बड़ा पोषण अभियान चल रहा है जिसे मिड डे मील योजना नाम से जाना जाता है।
सोचने वाली बात यह है कि आखिर वे कौन से कारण हैं जिनकी वजह से देश में गरीबी उन्मूलन के लिए हो रहे प्रयास विफल हो रहे हैं? पहला कारण देश में उद्योगों और कृषि के विकास का बिगड़ता तालमेल है। देश का विकास केवल उद्योगों तक सीमित है। किसान आत्महत्या कर रहें हैं वे ऋण के बोझ तले दबें हैं और अपना पेट पालना भी उनके लिए मुश्किल हो रहा है। गरीबी हटाने के लिए सबसे चुनौती यही है कि कृषि क्षेत्र का विकास किया जाए। हालांकि सरकार के पास योजनाओं की कमी नहीं है पर वे कारगर नहीं हो पा रही हैं। देश की 50 प्रतिशत आबादी की उम्र 25 वर्ष से कम है और बेरोजगारी की दर लगभग 7.50 प्रतिशत है। जब तक युवाओं को रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जाता गरीबी की समस्या बनी रहेगी। अब तो मंदी के माहौल में बेरोजगारी की समस्या और विकराल होती जा रही है।
कभी-कभी हम ऐसी खबर पढ़ते हैं कि किसी भरतीय कंपनी ने किसी विदेशी कंपनी का अधिग्रहण कर लिया है। लेकिन ऐसी घटनाएं गिनी-चुनी ही हैं। इससे हमें यह निष्कर्ष नहीं निकाल लेना चाहिए कि हम वैश्वीकरण की दौड़ में अन्य देशों से आगे निकल चुके हैं। वास्तव में देश में ज्यातर कंपनियां छोटी हैं जो इस वैश्वीकरण के युग में गलाकाट प्रतिस्पर्धा का सामना न कर पाने के कारण बंद हो रही हैं। हमें समाज के प्रत्येक वर्ग के हितों का ध्यान रखना होगा। अर्थव्यवस्था के कुछ विशेष क्षेत्रों को संरक्षण देकर ही विकसित किया जा सकता है। देश में धन एवं आय की असमानता विकास के साथ-साथ बढ़ती हीं जा रही है। अमीर और अमीर और गरीब और गरीब होते जा रहे हैं। देश की जनसंख्या के सबसे अमीर 20 प्रतिशत लोग कुल आय का 42 प्रतिशत प्राप्त करतें हैं वहीं सबसे गरीब 20 प्रतिशत लोग कुल आय का मात्र 9 प्रतिशत प्राप्त करते है।
भारत में गरीबी उन्मूलन की सबसे बड़ी चुनौती यही है कि सरकार द्वारा की जा रही मदद गरीबों तक पहुंच ही नहीं रही है। हम जानते हैं कि बजट में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए एक बड़ी राशि आवंटित की जाती है,पर यह बड़ी धनराशि जरूरतमंदों तक नहीं पहुँच पाती। राजीव गांधी ने भी कहा था कि बजट का मात्र 18 प्रतिशत भाग ही गरीबों तक पहंच पाता है। हमें सरकारी नीतियों को अमल में लाने के प्रयास करने होंगे।
इन प्रमुख चुनौतियों के अलावा बढ़ती जनसंख्या,शिक्षा का अभाव, सियासी तकरार आदि अन्य चुनौतियां भी हैं जिनके कारण देश में गरीबी उन्मूलन के प्रयास सफल नहीं हो पा रहें हैं। लेकिन वर्तमान स्थिति और उसकी जटिलता देखते हुए यह कहा ता सकता है कि हमें एसी व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी जिसमें विकास का लाभ जरूरतमंदों को मिले। जनता भी सरकार से नीतियों और योजनाओं पर सियासी तकरार नहीं परिणाम चाहती है। अगर हम ऐसी व्यवस्था नहीं कर सके तो फिर हम उसी भविष्य पर पहुंचेगें जहां हमारे पास होंगे दो भारत। एक सम्रद्ध और दूसरा शोषित और वंचित।
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