एक ख़बर के अनुसारहिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले के मडिकल कॉलेज के छात्र अमन की रैगिंग ने जान ले ली .ये ख़बर हमें कई चीज़ें सोचने पर मजबूर करती है। पहली और सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात ये है की ये घटना सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के कुछ रोज़ बाद आया है जो उसने राग्गैंग पर रोक लगाने के लिए दिया था.दूसरी बात ये है की उस बच्चे के शिकायत करने पर भी कॉलेज के प्रशासन ने कुछ नहीं किया.क्यों? इससे ना केवल ये पता चलता है कि अक्सर कॉलेज प्रशासन नए छात्रों के साथ हो रहे व्यवहार और कैम्पस में उनके अनुभवों को लेकर संवेदनहीन होता है ,साथ ही ये भी पता चला कि इन्हें कोर्ट के फैसलों कि कोई परवाह नहीं है.जब प्रशासन ही परवाह नहीं करता तो बच्चों से कोई कैसे और क्या उम्मीद करेगा? सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था ki अगर कोई रैगिंग करेगा तो उसे हॉस्टल से निकाल दिया जायेगा । एक समिति उसपर फ़ैसला लेगी और दोषी पाये जाने पर उसे कॉलेज से भी निकाल दिया जायेगा।इस घटना ने ये साबित कर दिया की न तो कोर्ट के फैसले का कोई महत्व है और न ही रैगिंग रोकने के लिए बने कानूनों का । सीनियर विद्यार्थियों के साथ मेलजोल बढ़ाने औएउत्साह बढ़ाने के नाम पर की जा रही ये रैगिंग किस तरहां एक बच्चे के मानसिक और शारीरिक शोषण का कारण बन सकती है, ये इस घटना से साफ़ झलकता है। इट किल्स यौर इमोशंस.....इट किल्स यौर सेल्फ- एस्टीम...अमन की डायरी में लिखे ये शब्द साफ़ बताते हैं की उसके साथ की जा रही ज्यादती उस पर एक दबाव बना रही थी। अपनी कॉलेज लाइफ के प्रति उत्साह के साथ बच्चे एक नई उमंग लेकर कॉलेज में पढने आते हैं लेकिन ऐसी घटनाएं न केवल उनकी पढ़ाई में समस्या लाती हैं बल्कि उन्हें कोलेज के वातावरण से भी एक चिढ मचनी शुरू हो जाती है.ऐसी खबरें सुनकर औएर देखकर कई माता -पिटा अपने बच्चों को घर से बाहर पढने के लिए भेजने से कतराते हैं .जिन विद्यार्थियों के साथ ऐसी घटनाएं हो जाती हैं वो या तो बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं या फिर इसका शिकार हो जाते हैं जैसे अमन हुआ.पर एक बड़ा सवाल ये uthta है की रैगिंग के असर के जिस चार्ट को अमन ने बना दिया, वो सभी प्रभाव कॉलेज में बनी बाल कल्याण समित्यियाँ,अनुशासन समितियां, ऐसे केस लड़ने वाले हजारों लोग और ख़ुद कॉलेज प्रशासन आज तक क्यूँ नहीं समझ पाये? क्यूँ हम हमेशा तभी किसी बात को जान पाते हैं जब वो नुक्सान कर चुकी होती है?एक ट्रेंड के नाम पर चली आ रही ये रैगिंग की परम्परा हमारे दिमागों में घुसी हुई है। अगर हमारे साथ इसक कुक्फ्ह हमारे सीनियर विद्यार्थियों ने किया हो तो हम भी अपने जूनियर के साथ ऐसा ही करेंगे.और इस तरहां ये परम्परा कभी रूकती ही नहीं है । नए विद्यार्थियों को कभी कोई प्रोजेक्ट करने को दे दिया जाता है जो उनकी क्षमता से बाहर हो तो कभी उनसे उलटी- सीधी हरकतें करवाई जाती हैं । आख़िर रैगिंग के लिए बने कानूनों के बावजूद ऐसा ही कैसे जाता है? शायद इन कानूनों की धज्जियाँ उडाने की एक आदत सी हो गई है ,तभी कोई लड़का इतना दब अंग हो सकता है कली कैम्पस में किसी दूसरे विद्यार्थी को मार दे।ऐसा नहीं है की इस समस्या को रोका नहीं जा सकता। आख़िर ये समस्या हम-आप जैसे युवाओं की ही तो है। अगर हम सभी लोग ये ठान लें की अपने जूनियर के साथ ऐसा नहीं करेंगे तो ये रैगिंग अभी और यहीं ख़तम हो सकती है.माता -पिता को चाहिए किअगर उनके बच्चे के साथ ऐसा कुछ होता है तो वो ख़ुद जाकर कॉलेज में शिकायत करें और अगर इससे भी बात नहीं बने तो वो पुलिस में जा सकते हैं। कुछ गतिविधियाँ ऐसी होती हैं जिनके लिए सिर्फ़ क़ानून बना देना हबी काफ़ी नहीं होता, उसे सख्ती से लागू करना और उस समस्या से निजात पाने के लिए ख़ुद कोशिश करना भी ज़रूरी होता है.रैगिंग भी एक ऐसी ही समस्या है। फिलहाल इस घटना से एक उम्मीद जगी है की शायद रैगिंग थोडी कम हो जाए लेकिन इसे पूरी तरहां ख़तम करने के लिए लगातार ऐसी कोशिशों की ज़रूरत है जैसी अमन के पिता ने शुरू की है.
रैगिंग से पीछा छुडाने के लिए खुली चर्चा के साथ ही जब तक बच्चों में रैगिंग-विरोधी संस्कार नहीं डाले जायेंगे तब तक इस अभिशाप से पीछा नहीं छूटेगा...
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