Thursday, August 6, 2020

काश!

किस बात से हैरान हूं?
क्यों आजकल परेशान हूं?
किस सच से अंजान हूं?
क्यों आज भी नादान हूं?
काश! ये कह पाता ।

हर जगह धोखा और मक्कारी है
संतोष पर लालच भारी है
झूठ बोलना क्यों लाचारी है?
हर जन को आज ये बीमारी है
काश! मैं सह पाता।


जमाने से बहुत पीछे हूं
लगता है धरातल से नीचे हूं
ठोकर से भी नहीं सीखा हूं
क्यों बंद पड़ा झरोखा हूं?
काश! कुछ कर पाता।







Thursday, July 9, 2020

वक़्त कठिन है, पर ये भी गुजर जाएगा

कुछ अजीब है, यह गुजरता हुआ साल। क्या कहू इसे अच्छा, बुरा या फिर साक्षी भाव से बैठ कर इसको गुजरता हुआ देखूँ। बड़ी ऊहापोह मैं है ये मन, बहुत समय से सोच रही थी की कुछ लिखूँ। फिर सोचा कुछ ऐसा लिखूँ कि बस लोग पढ़ें और सोचें, हाँ वो भी कुछ ऐसा ही सोच रहे हैं। वो भी घर मैं रह कर दिन भर विचारों के सागर मैं डुबकी लगाते रहते हैं, फिर आज बिना सोचे ही लिखने बैठ गयी हूँ। इसकी वजह है अकसर मेरे जैसे आमलोग जो सोचते हैं, वो करते नहीं, जो करते हैं, वो सोचते नहीं, है ना। खैर मेरा छोड़िए बात जो कहनी है वह यह है की 2020 का आधा साल गुजर चुका है, बाकी भी गुजर जाएगा। किसी महाज्ञानी ने कभी किसी से कहा था वक़्त कैसा भी हो अच्छा या बुरा कभी रुकता नहीं बस गुजर जाता है। वैसे इस वक्त की ये फितरत हर पल आगे बड्ने की अच्छी है, क्योकि नदी का बहता पानी और हर पल मैं गुजरने वाला वक़्त जीवन की कभी न रुकने वाली धारा की ओर हमारा ध्यान खीचता हैं। 

मुझे यह साल हमेसा याद रहने वाला है, अब आप सोचों क्यू उससे पहले ही मैं आपको मेरी सोच से परिचित करा देती हूँ। मेरी सोच बड़ी अद्भुद है ऐसा बिलकु नहीं, पर कोविद 19 को लेकर हर इंसान के मन मैं एक भय का भाव जरूर होगा, क्यूकी डर सबको लगता है। डरना बुरा नहीं। डर कर रुक जाना, ठहर जाना, जीवन को त्याग देना गलत है। मैंने कहीं पढ़ा था, "मनुष्य भय के साथ पैदा होता है" जैसे-जैसे मनुष्य बड़ा होता है, उसका डर भी बड़ा होता जाता है। बचपन मैं हमें डर या भय प्रभावित नहीं करते क्योकि उत्साह और आनंद बच्चों के रंगों मैं खून के साथ दौड़ता है। तब तक इससे बच्चा नहीं डरता जबतक कोई बड़ा उससे यह न समझाये की भाऊ आ जाएगा और तुमको खा जाएगा। हमारे बचपन मैं इस भाऊ ने बहुत डराया हम सबको। नयी पीढ़ी के बच्चे भूतु से डरते हैं भाऊ से नहीं। हो सकता है भाऊ अब नाम बदल कर या यूं कहें प्रोफ़ाइल बदल कर भूतु बन गया हो, कुछ भी हो सकता है!!!

 जब भी काली रात आती है या वैसी कोई परेशानी आती है, तो हमारी परछाई भी हमारा साथ नहीं देती। यह कहावत कोरोना काल मैं चरितार्थ होती दिख रही। दो गज की दूरी, हाथ धोते जाओ, धोते जाओ चाहे आपकी स्किन का रंग क्यूँ न बादल जाए, चेहरे पर मास्क। सामाजिक दूरी का पालन करते करते घर मैं कैद आम भारतीय किस बात से सबसे जादा डरा हुआ होगा, आप सब समझते हैं। हमारे मन का पहला भय अपनी जान की फिक्र, उतना ही मोह अपनों को सही सलामत बनाए रखने का भी हैं। तीसरा भय दिवालिया होने का है। घर बैठे कब आपकी कंपनी आपको घर में ही बैठा दे इसका अंदाजा सबको है, जब ऑफिस घर में आ गया और स्कूल भी, अब कॉलेज भी, मंदिर भी, हॉस्पिटल भी। अब घर घर नहीं मॉल बन गया, सब सुविधा घर के अंदर। मजा आ रहा होगा सबको नहीं। कुछ मजेदार घटनाए जो इस दौरान देखने को मिली जैसे इंसान घर के अंदर, जंगली जानवर सड़क पर और मॉल में ये देखने कही इंसान लुप्त तो नहीं हो गया। इन तसवीरों से यह साबित होता है कि इस धरती पर सबसे अधिक खूंखार और खतरनाक जीव कोई है तो वो इंसान है। ऐसा भी एहसास हुआ इस लॉक डाउन में।

मानव को चीजे संग्रह करने की कला ने आज उसके घर को ही मॉल मैं तब्दील कर दिया है। घर अब घर नहीं, वहा रिश्तों में प्रेम नहीं, अपनापन नहीं, लॉक डाउन के कारण मजबूरी में साथ रहने के कारण परिवार का ढ़ाचा भी चरमरा रहा है। इसका अहम वजह आर्थिक तंगी है। यूं खाली हाथ घर चलाना मुसकिल होने पर  मुझे तो अब से 12 साल पहले की आर्थिक मंदी जैसा माहौल दिख रहा, नौकरियाँ जा रही, कोई भी समाधान नहीं दिख रहा अर्थ को घर लाने का। पर इसका मतलब यह नहीं है की जीवन से हार मान लिया जाए। मारना तो एक दिन है ही पर उससे पहले ऐसे जियो की लोग याद रखें वह इतनी कठिन घड़ी में भी हौसला नहीं छोड़ना ही जीवन जीने की सही कला है। पर में दुखी हूँ की में अपनी ये विचार लोगों तक नहीं भेज पा रही।  लोग जीवन के लिए संघर्ष करने के बजाए मौत को गले लगा रहे। आत्महत्या के मामले बढ़ रहे। लोगों की आपसी सहनशीलता और सौहार्द गुम हो रही।

इस कोरोना ने सारी दुनिया पर चोतरफा वार किया है, हर देश कि अर्थव्यवस्था डगमगा गयी है, शेयर मार्केट में रोज गिरावट होती रहती है, तो पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे, बड़े बड़े ब्रांड ने दुनिया भर के अपने आउटलेट बंद कर दिये है। हर देश में बेरोजगारी और भूखमरी अपना पैर पसार रही। ऐसे समय में हमारे माननीय मोदी जी ने जनता को हाल ही में दिये अपने भाषण में भारत के निचले तबके के 80 करोड़ लोगों को नवम्बर माह तक पाच किलो चावल और पाँच किलो आटा और एक किलो दाल मुफ्त में देने का वादा किया। जो हमारे मजदूर भाइयों और गाँव की जनता के लिए बहुत जरूरी था। एक ऐसे अस्थिर और असुरक्षित माहौल में जहां दुनिया भर कि 100 से ज्यादा फ़ार्मा संस्थान कोरोना की दवा बनाने में जुटी हैं पर अभी तक कोई सफल नहीं हो पायी। कोई सही सूचना नहीं देता कि कब तक कोरोना की मैडिसिन बन जाएगी। मीडिया केवल आंकड़ों में उलझी रहती है और जनता को भी उलझाती है। ऐसे में यह सरकारी सहयोग बहुत जरूरी है। पर हम जैसे मध्यम परिवार के लोगों का क्या जो हर माह मेहनत कर कमाते है और अपने परिवार का पालन करते हैं और देश को आगे ले जाने के लिए इंकम टैक्स भी भरते हैं। सब कुछ बिगड़ा हुआ है कुछ भी सही नहीं। पर अंतरमन और आत्मा कहती है, सब कुछ ठीक हो जाएगा बस धैर्य रखो अपना कर्म करो क्योकि कृष्ण भगवान ने गीता में भी "कहा है कि कर्म करो फल की कामना मत करो, सही समय पर तुम्हारा कर्म फल अवश्य प्राप्त होगा। मुझे तो अपने ऊपर और अपने ईश्वर में आस्था है। उसमे विश्वास रख कर अपना कर्म कर रही, जीवन को आनंद में जी रही थोड़ा कठिन है, पर जो आसान है उसमे मजा भी तो नहीं आता। है ना, तो फिर मिलेंगे किसी और उलझन के साथ तब तक के लिए राधे राधे।

जीवन को आज में और अभी इस पल में ही जीना है दोस्तों। कल का क्यो सोचना जिसका पता नहीं और जिस पर नियंत्रण भी नहीं। अपना बस केवल अब में है। उसी का आनंद लो। मिल जुल कर रहो मिल बाँट कर खाओ। भारत तो वैसे भी एक परिवार है। थोड़ा ज्यादा बड़ा है, पर फिर भी हम सब साथ मिल कर एक नया भारत बना सकते हैं। बस जीवन का अंत कर उसका अपमान न करो दोस्तों। बहुत सुंदर वक़्त भी आएगा। आत्मनिर्भर भारत का हमारा सपना पूरा होगा। हम पहले भी बहुत मुसकीलों से लड़े हैं इससे भी गुजर जाएंगे। आशा और उम्मीद दिलों में जगाए रखना है। नियम का पालन करना है। बचना है और सबको बचना है। साफ सफाई और आयुर्वेद और योगा को जीवन में आदत के रूप में सुमार कर लीजिये। सतर्क रहिए और सेवा करना मत छोड़िए। सेवा और मदद ही हमारी संस्कृति है। 

हर हर महादेव ....

Tuesday, May 12, 2020

पड़ताल

किसी को पुरानी शादियां याद है? याद है? जब शादी में पूरा गांव सरिक होता था। याद है? जब आस पास की सारी महिलाएं एक महीना पहले से तैयारियों में लग जाती थीं। याद है? जब गांव के सारे लड़के बारातियों को खाना खिलाने से लेकर सेवा सत्कार में लग जाते थे। नहीं याद है तो चलिए याद करते हैं। मंगलू चाचा की लड़की की शादी 25 साल पहले हुई थी। तब गांव असल में गांव होते थे। कस्बा, शहर और महानगर नहीं। तब हमारी सोच बंजर नहीं हुई थी। आपसी भाईचारा था, सहयोग की भावना थी, रिश्तों के प्रति समर्पण था। कुल मिलाकर  हम सामाजिक थे।

शादी की तैयारियां हो रही थी। शाम को बारात आने वाली थी। हलवाई सुबह से ही खाना बनाने में लगे थे। गांव के कुछ बच्चे आलू छिल रहे थे। कुछ नस्ता का पैकेट तैयार करने में लगे थे। गांव के कलाकार लड़के जयमाला स्टेज और मरवा (शादी का मंडप) सजाने में व्यस्त थे। गांव के लगभग सारे लोग मंगलू चाचा के घर पर थे। हंसी-ठिठोली हो रही थी। हिरामन चाचा बहुत लंबी लंबी फेंक रहे थे। लोग खूब हंस रहे थे। आनंद का माहौल था। सब मस्ती कर रहे थे। औरतें भी और मर्द भी। मर्द घर से बाहर और औरतें घर के अंदर। आलू छिल रहे बच्चे भी खूब चुस्की लेे रहे थे। सुधीर फूल और पनीर लाने पटना गया था अपने दोस्तों के साथ। उसे अपने जीजा जी के लिए उपहार और दीदी के लिए सैंडल भी लेना था। बहुत काम था उसके पास। सुधीर मंगलू चाचा का एक मात्र लड़का था। इसी साल दसवीं पास किया था।

एक तरफ मई का महीना। आंधी-पानी की। लड़की की शादी। 200 बाराती। बारात में नाच। जमींदार का लड़का। हाथी, घोड़ा जैसी चुनौतियां। दूसरी तरफ मंगलू चाचा। लड़की का बाप। साधारण किसान। लड़का नादान। शादी का खर्च। कर्ज का बोझ। अतिथियों का स्वागत। जैसी कई चिंताएं मुंह बाए खड़ी थी।

शाम के करीब 8 बजे का समय। बारात आ चुकी थी। जनमासे पर स्वागत के लिए 50 से ज्यादा लोग। ज्यादातर युवा। बारातियों के लिए बैठने की व्यवस्था, जलपान, पानी की सुविधा। हल्का होने के लिए विद्यालय का खुला परिसर। खुला आसमान। ठंडी-ठंडी हवा। पान की व्यवस्था। बाराती मस्त। जमकर भांगड़ा और नागिन डांस हुआ।

द्वारपूजा और जयमाला में थोड़ी दिक्कत हुई। दरवाजे पर बहुत भीड़ थी। ऊपर से गर्मी का मौसम उमसभरा। पंडाल का पंखा हांफ रहा था। सराती एक पांव पर खड़े थे। बाराती उतावले हो रहे थे। शर्बत पेश किया गया। रूह अफजा। थोड़ी ठंडक मिली। तभी कन्या का आगमन हुआ। अब सब शांत। सभी की नजरे वर-वधु पर। तब आज की तरह सभी के हाथ में स्मार्ट फोन नहीं था। मोबाइल फोन का आगमन भी नहीं हुआ था। इसलिए कन्या को ज्यादा कष्ट नहीं हुआ। जल्दी निपट गई।

भोजन का समय हो चला था। 11 बज रहे होंगे। बारातियों ने खाना शुरू किया। व्यंजन कम थे, पर लजीज थे। गरम-गरम पुरी,आलू दम, मटर-पनीर, बराबर   की चटनी सब स्वादिष्ट। गांव के लड़के पुरे मन से खिला रहे थे। पुछ-पुछकर खिला रहे थे। मंगलू चाचा खुश थे और बाराती संतुष्ट। स्वागत- सत्कार से बारातीगण बहुत खुश हुए। शादी समपन्न हुआ। और यादगार रहा।

क्या आज वैसी शादियां नहीं हो सकती?
क्या आज हम मेहमाननवाजी भूल गये हैं?
क्या अब हम सामाजिक नहीं रहे?
क्या आज हमारे पास इसके लिए समय नहीं है?
ऐसे कई सवाल हैं जो जायज भी हैं और जरूरी भी।

आकाश कुमार 'मंजीत'

Monday, May 11, 2020

पैसा

पैसा पास होता तो
घर के काम मैं आता
बाकी लोगों की तरह
मैं भी काबिल कहलाता।

पैसा पास होता तो
यूं आंख ना चुराता
बाकी लोगों की तरह
मैं सिना तान दिखाता।

पैसा पास होता तो
यूं खाली हाथ न जाता
बाकी लोगों की तरह
मैं भी कुछ ले जाता।

पैसा पास होता तो
सुख की रोटी खाता
बाकी लोगों की तरह
मैं राग-भैरवी गाता।

पैसा पास होता तो
यूं मोहताज ना होता
बाकी लोगों की तरह
इस सर पे ताज भी होता।

पैसा पास होता तो
कार में बाहर जाता
बाकी लोगों की तरह
रईस बन कर दिखलाता।

पैसा पास होता तो
फॉरेन टूर पे जाता
बाकी लोगों की तरह
ब्रांडेड चीजें ही लाता।

पैसा पास होता तो
हर रिश्ता काम में आता
बाकी लोगों की तरह
मैं भी इज्जत पा जाता।

पैसा पास होता तो
सोशल वेल्यू भी बढ़ता
बाकी लोगों की तरह
मेरा ग्राफ भी चढ़ता।

पैसा पास होता तो
डर जाते सब बोली से
बाकी लोगों की तरह
नहीं डरता मैं गोली से।

पैसा पास होता तो
शक्ल पे बात ना होती
बाकी लोगों की तरह
यहां भी दो चार होती।

पैसा पास होता तो
ये 'पप्पू' भी पास होता
बाकी लोगों की तरह
ये 'पप्पू' भी खास होता।

आकाश कुमार 'मंजीत'





Friday, May 8, 2020

आज

विपदा है भारी, सुनो हर नर-नारी
जिधर नजर डालो, है बेबस लाचारी

Birthday

उंगली में घी लगाकर चाट लो
इन खुशियों को दोस्तों संग बांट लो
वैसे तो आजकल बहुत व्यस्त हो
फिर भी समय हो तो केक काट लो।
अगर केक काट लेना
तो दोस्तों में बांट देना
अकेले हजम नहीं कर पाओगे
पता चल गया तो लात खाओगे

घोर अंधेरा

घोर अंधेरा, आंधी- पानी
घर में दुबके पड़े सब प्राणी
गरज गरज के बादल बरखे
रह रह कर बिजली भी चमके.
इस बिजली से डर लगता है
सबसे सुरक्षित घर लगता है

दुनिया भर में महामारी
बड़ी समस्या बेरोजगारी
घर की याद बहुत आती है
मां की बात अब याद आती है
घर में थोड़ा कम ही खाना
पर परदेस नहीं अब जाना.
(महामारी में मजदूरों का दर्द)

Thursday, May 7, 2020

जीजा साली


जीजा संग थी उनकी साली
जैसे गरम एक चाय की प्याली।
बगल में आकर बैठ कर बोली
मुझे दिला दो घाघरा चोली।
पहन उसे मैं इठलाऊंगी
सब सखियों को दिखलाऊंगी।
जीजा जी ने मान ली बात
पटना चल दिए लेकर साथ।
मॉल, मार्केट बहुत घुमाया
पर एक ड्रेस भी पसंद ना आया।
मन दोनों का बहुत उदास
भूख लगने का हुआ आभास।
'पेट की भूख मिटाओ जिज्जा'
'मुझे खिलाओ बर्गर पिज्जा।'
पिज्जा खाकर मन हुआ गदगद
रात भी हो चली थी लगभग।
घर जाने का आया होश
पर जाने का नहीं था जोश।
'कल हम पटना फिर आएंगे'
'तुम्हे नई एक ड्रेस दिलाएंगे।'
ये सुनते ही उछल पड़ी थी
बड़ी ही दुर्लभ वो घड़ी थी।
खुशी खुशी घर वापस आ गए
साली जी को जीजा भा गए।
ये जीवन का अहम है हिस्सा
बड़ा ही सुन्दर है ये रिश्ता।





















Tuesday, May 5, 2020

तर्क

पांच साल का किशु अपनी मां से कहता है- मां मुझे दीदी से मोबाइल दिला दो. मम्मी मना कर देती है. मम्मी प्लीज दिलवा दो ना. स्कूल खुल जाएगा तो टाइम नहीं मिलेगा. इस तर्क से मम्मी राजी हो जाती है. किशु को मोबाइल मिल जाता है.
 सात साल की पीहू अपने पापा से कहती है- पापा मुझे बैडमिंटन खेलना है. अरे नहीं आओ हमलोग लूडो खेलते है. ओह! पापा एक्सरसाइज भी तो जरूरी है. पापा पीहू को देखकर सोचने लगते हैं. फिर मुस्कुरा देते है. ये मुस्कुराहट हरी झंडी होती है. पीहू उछल पड़ती है.तर्क को जीत जाता है. लेकिन दो साल की काव्य को किसी भी तर्क की जरूरत नहीं होती. वो अपनी हर बात मनवा लेती है. आइसक्रीम की जिद हो, घूमने की जिद हो, या किसी और चीज के लिए सब पूरे हो जाते हैं. बशर्ते उसे किसी और बातों से ना बहला दिया जाए. इससे जाहिर होता है कि जब बच्चा धीरे धीरे तर्क करने लगता है.

Wednesday, April 29, 2020

एक प्रेम कथा 'व्यथा'

प्रेम था ऐसा भूल ना पाया
संग उनके मैं घूम ना पाया
दिल की हसरत दबी रह गई
नर्म होंठो को चूम ना पाया।

वो दिन भी क्या होते थे
जब सिसक सिसक के रोते थे
बिन देखे तब चैन ना मिलता
घंटों बांस पे होते थे।

हर आशिक की चाहत थी वो
दर्द में जैसे राहत थी वो
हाथ किसी के आ ना पाई
ऐसी हल्की आहट थी वो।

आखिर एक दिन ऐसा आया
इस आसमान पे बादल छाया
रखवाली करते ही रह गए
खो गया धूप में उसका साया।

ग़म था कितना जता ना पाया
दर्द को अपने दिखा ना पाया
दिल में कितना प्रेम भरा था
कभी भी उनको बता ना पाया

आकाश कुमार 'मंजीत'









Be Smart like Me

जब संगिनी समझदार और समर्थ है
तो उसे छुपाकर रखना व्यर्थ है
प्रेम तो वैसे भी जगजाहिर होता है
हर कोई कहां इस खेल में माहिर होता है
अगर दिल में किसी के लिए सच्चा प्रेम है
तो आपके चेहरे से जाहिर होता है।।
प्रेम को प्रेम बताना आर्ट है
यही हमारे जीवन का अभिन्न पार्ट है
उम्रभर मजे में जो इसे निभा गया
वही पति इस दुनियां में स्मार्ट है
So Be Smart like Me😊

प्रकृति से पंगा पड़ेगा महंगा


प्रकृति से पंगा पड़ेगा महंगा
पेड़ तो है इस धरा का गहना
सुन लो बंधु सुन आे बहना
मुझे तो बस इतना ही कहना।

इसके आगे कोई ना सुपर
नहीं मानोगे जाओगे ऊपर
करोगे इससे जो खिलवाड़
चलेगी गर्दन पे तलवार।

निर्मल रहने दो गंगा को
करो ना नंगा तुम नंदा को
जीव और जंतु हमारे बंधु
धरा सभी के सबके सिंधु।

नदी का मार्ग कभी ना रोको
पेड़ लगाओ गर हो सके तो
वर्षा जल का संचय करना
इस धरती को साफ है रखना।

आकाश कुमार 'मंजीत'

Monday, April 27, 2020

घर में सुरक्षा

कोरोना महामारी की वजह से तालाबंदी लागू है...तालाबंदी का मतलब घर में रहना है... बहुत जरूरी हो तभी घर से बाहर निकलना है...वो भी पूरी तैयारी और सतर्कता के साथ...नाक और मुंह को ढकना है...शारीरिक दूरी का विशेष ख्याल रखना है...भीड़ नहीं लगाना है...लेकिन क्या ऐसा हो रहा है ? नहीं हो रहा है...जितना हो रहा है काफी नहीं है...कोरोना अदृश्य जीवाणु है...ये कब शरीर में दाखिल हो जाएगा पता नहीं चलेगा...इसलिए को भी दिशा निर्देश है उसका पालन कीजिए...

ना समझेंंगे तो मिट जाएंगे...इतिहास के पन्नों में धूल फांकना पड़ जाएगा...स्थिति गंभीर है... बहुत गंभीर है...इसको समझना होगा...बस कुछ दिनों की बात है...हालात अभी नियंत्रण में है...इसलिए आप भी संयम से रहिए...शारीरिक दूरी का जरूर ख्याल रखिए...साबुन से हाथ धोएं...बार बार धोएं...सतर्क रहें...मौत अभी आस पास ही है...ये कभी भी अपना फन फैला सकता है...कुछ मामलों में छूट दी जा रही है...जो कि बहुत जरूरी है... इसका ये मतलब नहीं है कि मुसीबत टल गई है...बल्कि
इसलिए कि ये देश की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है...

हमारे छोटे प्रयास से हमारा कल बेहतर हो सकता है...समस्या से निपटने के लिए देश को हमारी जरूरत है...और ये हमारे लिए है...हमारे बच्चों के लिए है...उनके उज्जवल भविष्य के लिए है...अगर हम कोशिश करेंगे तो कोई मुश्किल काम नहीं है...एक बार हमें उनलोगों के बारे में सोचना चाहिए जो हमारे लिए घर से बाहर हैं...खतरों के बीच हैं...चिकित्साकर्मी पुलिसकर्मी, सफाईकर्मी, बैंककर्मी, मीडियाकर्मी जैसे लोग दिन रात एक किए हुए है...इस महामारी में वे लगातार काम कर रहे हैं...हमारे लिए... हमारी जान बचाने के लिए...हमें स्वस्थ रखने के लिए...हम तक सूचना पहुंचने के लिए...शांति बनाए रखने के लिए...कोरोना योद्धा कम संसाधन में बेहतर काम कर रहे हैं...अपनी जान जोखिम में डाल कर...इसलिए कम से कम उनका ख्याल रख सकते हैं...प्रधानमंत्री बार बार अपील कर रहे हैं...उनकी बात मान सकते हैं...बॉलीवुड स्टार, क्रिकेट स्टार लगातार हमें घर में रहने की प्रार्थना कर रहे हैं...ये सब सिर्फ हमारे लिए है...इसलिए इन सारी बातों को समझिए...घर पर रहिए...इसी में हम सब की भलाई है....
धन्यवाद

Saturday, April 25, 2020

Korona learning

इस दौर ने हमें बहुत कुछ सीखा दिया...
जो सालों से परदेश थे
उन्हें घर का रास्ता दिखा दिया
जिन्हे काम से बिल्कुल फुरसत ना थी
उन्हें घर बिठा दिया
जो घर में टिकते ना थे पलभर
उन्हें डर ने शांत लिटा दिया
जिन्हे सिर्फ मतलब था कमाने से
उन्हें घरेलू काम भी सीखा दिया।
इस दौर ने हमें बहुत कुछ सीखा दिया...
जो भूल चुके थे स्वस्थ रहने का तरीका
उन्हें जीने का सलीका सीखा दिया
जो फंसे थे महानगरों में मोह में
उन्हें गांव की गलियों ने वापस बुला लिया

Friday, April 24, 2020

झगड़े वाली रात पत्नी के हालात

जिसकी नींद ना खुली बिजली के कड़कने से
उसे क्या फर्क पड़ेगा दिल के धड़कने से
पूरी रात सनम साथ थे हमारे,दिल फिर भी रोता रहा
और रातभर मेरा मुआं, घोड़ा बेचकर सोता रहा।।

उम्मीद जगी थी एक बार, एक हल्का स्पर्श था
रेखा लांघू, ना लांघू ये विमर्श था
आग तेज थी और दीवार भी ऊंची
लांघना मजबूरी थी और हारना आदर्श था।।

आगे भी कुछ रात ऐसी ही रही
दिलों में दूरी बनी रही
प्यास मिट ना सकी, ख्वाहिशें भी अधूरी रही
पर मिलन की कोशिश अपनी तरफ से पूरी रही।।

आकाश कुमार 'मंजीत'







Monday, April 13, 2020

Korona new

जाएं तो जाएं कहां?
बड़ी समस्या है यहां
जाना चाहे जहां
कोरोना हो सकता है वहां।

कोरोना से अगर लड़ना है
तो घर में ही अपने रहना है
कुछ काम भी अति जरूरी है
बाहर जाना मजबूरी है।

कुछ दिन मन को समझा लो
रुखा सूखा ही खा लो
कैसे भी काम चला लो
लक्ष्मण रेखा नहीं लांघो।





लॉक डाउन का मारा पति बेचारा

'निगाहें' फिल्म का एक गाना है-सारा सारा दिन तुम काम करोगे, रात को आराम करोगे, प्यार कब करोगे?  दूसरा गाना है 'रोटी,कपड़ा और मकान' फिल्म से- तेरी दो टके की नौकरी पे मेरा लाखों का सावन जाए...साफ तौर से इन गानों के जरिए पत्नी या प्रेमिका अपने प्रेमी से प्रेम की मांग करती है...अपने लिए समय चाहती है...वो चाहती है अपने प्रियतम की बाहों में कुछ वक्त गुजारना...पर ये पूरा नहीं हो पाता...   चाहत अधूरी रह जाती है...क्योंकि पति महोदय को पैसा कमाना है...अपने लिए भी और मोहतरमा के लिए भी... ऐसे में शिकायतों का सिलसिला शुरू होता है...ऐसी शिकायतें हर नौकरी पेशा पति से उसकी पत्नी या प्रेमिका को होती है... आज नौकरी और व्यवसाय दोनों में काम का दबाव है...रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए ये काम जरूरी भी है...ऐसे में प्यार के लिए वक्त निकालना मुश्किल हो जाता है...पत्नी या प्रेमिका के इसी दर्द को इस गाने के जरिए समझाने का प्रयास किया गया है...
तो क्या इस लॉकडाउन में ऐसी शिकायतों पर ब्रेक लग गया है?
क्योंकि आजकल पति प्यारे के पास टाइम ही टाइम है...प्यार के लिए भी और तकरार के लिए भी...फुलटाइम सर्विस है जितना चाहे निचोड़ सकते हैं...पति तो बेचारा होता है...उसे बहुत कुछ सुनना पड़ता है...घर में भी और दफ्तर में भी...पति में एक और खासियत होती है... ये उफ्फ ना करने की कला में माहिर होता है...ऐसे में पीड़ित पति को सरकार से सब्सिडी की मांग करनी चाहिए...वोट के लिहाज से भी देखे तो सरकार के लिए एक बड़ी आबादी को हाशिए पर रखना घाटे का सौदा हो सकता है...
खैर ये दौर दुबारा नहीं आनेवाला...इसलिए इस पल को यादगार बनाने की पूरी कोशिश की जाए...कुछ खट्टे मीठे पलों से जीवन रूपी तस्वीर को सजाने का प्रयास किया जाए...घर को खुशहाल और जीवन को बेहतर बनाने का प्रयत्न किया जाए...
'Be Positive Think Positive'




Korona

जाएं तो जाएं कहां?
बड़ी समस्या है यहां
जाना चाहे जहां
कोरोना हो सकता है वहां।

कोरोना से अगर लड़ना है
तो घर में ही अपने रहना है
कुछ काम भी अति जरूरी है
बाहर जाना मजबूरी है।

कुछ दिन मन को समझा लो
रुखा सूखा ही खा लो
कैसे भी काम चला लो
लक्ष्मण रेखा नहीं लांघो।





Sunday, April 12, 2020

पान की खेती

खाइके पान बनारस वाला खुल जाए बंद अकल का ताला...पान खाए सैंया हमार... जैसे गानों को सुनकर आज भी हमारा दिल मचल उठता है...और जो लोग कभी पान खाने के शौकीन थे...उनका मन तरस जाता है...पान की खुशबू और मसालों की उस महक के लिए...क्योंकि उन्हें मालूम है इसका स्वाद और इसके फायदे...पर पान की कम होती गई खेती, इसकी कीमतों में इजाफा और बाज़ार के दबाव ने इसे पीछे छोड़ दिया है...और पान की दुकानों में पान की जगह रंग बिरंगे गुटखो ने ले ली...स्वास्थ्य के लिए हानिकारक और बिक्री पर बैन के बावजूद भी इन गुटखो की जबरदस्त मांग है...पान की कम होती खेती और लोगों की डिमांड में कमी के कई सारे कारण हैं...इन्हीं कारणों की पड़ताल के लिए हम आपको ले चलते हैं बिहार के सारण जिले में स्थित भैरोपुर पंचायत में...
आज से करीब 25 साल पहले भैरोपुर पंचायत के भैरोपुर और महदीपुर गांव के लोग पान की भरपूर खेती करते थे...गांव के लगभग सभी घरों में पान सजाने का काम होता था...पान सजाने का मतलब था अच्छे पान को छांटकर एक एक पचास का बंडल बनाना...इस तरह से चार पचास एक ढोली कहलाता था(एक ढोली में 200 पान के पत्ते)... इस काम में परिवार के सारे सदस्य शामिल होते थे...घर की नई बहुरिया भी खुशी खुशी इस काम को करती थीं...पान को सजाने का काम बहुत ही कलात्मक और मेहनत का होता था...इस गांव के ही संजय चौरसिया का इस बारे में क्या कहना है आइए जानते हैं-'पान खोटने(तोड़ने) के बाद पान को एक साथ मिला दिया जाता था...उसके बाद पचास पचास का बंडल बनाया जाता था...इसमें सबसे बड़े पान के पत्ते को सबसे नीचे फिर उससे छोटे को अवरोही क्रम में सजाना होता था'
पान को सजाने के बाद पान को बांस की टोकरी में रखकर 'दबका' एक खास प्रकार के ढक्कन से बांध दिया जाता था...इतना करने के बाद उसे बेचने की कवायद शुरू होती थी...इसके लिए लोग शाम वाली ट्रेन पकड़ के बनारस पहुंचते थे...रातभर मंडी में रुकने के बाद सुबह में पान की बिक्री होती थी...पान बेचने के बाद लोग जरूरी खरीदारी कर घर लौट आते थे...जबतक आमदनी अच्छी थी गांव के सारे लोग इसकी खेती करते थे...परिवार खुशहाल था...गांव में कुछ नौकरी पेशा लोग भी थे...उनके घरों में भी पान की खेती होती थी...चुकी आमदनी अच्छी थी इसलिए घर के सारे लोग इस काम में मशगूल थे...लेकिन जलवायु परिवर्तन और मौसम की मार ने पान की खेती को भी बर्बाद कर दिया...इसी का नतीजा था 'बहुती' और 'पाला' जैसी बिमारियां...इस बारे में राम नारायण चौरसिया जी का कहना है कि पान की खेती बहुत ही नाजुक खेती है इसे सर्दी और गर्मी दोनों से खतरा रहता है...हर समय इसके देखभाल की जरूरत होती है...समय समय पर दवाइयों का छिड़काव करना होता है...यह बहुत ही मेहनत का काम है...
पान की खेती में बहुत ज्यादा मेहनत,ज्यादा जोखिम और सरकारी मदद का घोर अभाव इसके पीछे छूटने के अन्य कारण हैं...इसकी वजह से विकल्प की तलाश शुरू हुई...लोग अपने बच्चों को पढ़ाने लिखाने लगे...अच्छी शिक्षा और नौकरी के लिए गांव के लड़के दूसरे प्रदेशों में गए...
कुछ को सरकारी नौकरी भी मिली...और ज्यादातर किसी निजी कंपनी में काम कर रहे हैं अपने घर और परिवार से दूर...पर गांव में आज भी कुछ लोग पान की खेती कर रहे है...इस उम्मीद के साथ कि इसके भी अच्छे दिन आयेंगे...इसलिए सरकार को चाहिए कि मृतप्राय पान की खेती में जान फूंकने के लिए जरूरी याजना बनाए जिससे गांव में खुशहाली लौट आए...

Saturday, April 4, 2020

छुट्टी लगातार है

आज भी छुट्टी कल भी छुट्टी
छुट्टी लगातार है
सारे काम ठप पड़े है
सोना ही एक काम है।

सो सो कर अब उब चुके हैं
निराशा में भी डूब चुके हैं
आशा की कोई किरण दिखे ना
अपने आप से रूठ चुके हैं।

उनलोगों के पौ बारह है
जिनकी अपनी दुकान है
राशन, दूध और सब्जी वाले
आज भी मालामाल हैं।

है जोखिम में उनकी भी जान
जो खुद को समझते हैं भगवान
तैयारी अपनी अधूरी है
इसलिए ये दूरी जरूरी है।

करो मानवता का सम्मान
अमूल्य यहां सबकी है जान
इस जान को हमें बचाना है
घर से बाहर नहीं जाना है।

अगर जाना अति जरूरी हो
तो ध्यान रहे, कुछ दूरी हो
मुंह-नाक को अपने बचाना है
इसीलिए तो मास्क लगाना है।

आकाश कुमार 'मंजीत'



























Monday, March 23, 2020

Corona

मौत है पसरी दुनियाभर में
जीने में बड़ा लफड़ा है
सब साथ में मिलकर रहते थे
अब छूने में भी खतरा है।

कब, कहां, कौन जग छोड़ चले
ये बिल्कुल अबूझ पहेली है
जो खुद को सुपर कहते थे
वहां लाशों की अब ढेरी है।

रफ़्तार को ऐसी ब्रेक लगी
सब अपने घर में कैद हुए
हर मानव शक के घेरे में
अब अपने भी हैं गैर हुए।

आकाश कुमार 'मंजीत'

Friday, March 20, 2020







दण्ड
उसके अन्तःमन की पीड़ा घर में और सदस्यों के होने के बावजूद कोई अब तक ना समझ सका था या फिर समझने की चाह ही ना थी। सच ही तो है, किसी के अन्तमन की पीड़ा या बात आजकल के दौर में किसी दूसरे के द्वारा ज्ञात कर लेना निश्चय ही असंभव कार्य प्रतीत होता है, पर अत्याधिक घरों में ऐसा सम्भव होता है, मा, के द्वारा। भला मों के सिवा कौन ऐसा प्राणी है जो अपनी सन्तान चाहे वो पुत्र हो या हो या पुत्री के रोम-रोम से परिचित रहती है। माँ जो खासकर अपनी बेटी की आंतरिक पीड़ा को समझने में अपनी सार्मथ्यता जाहिर करती है। पर ना जाने क्यों इस घर में जैसे हर कोई नियमानुसार पहले से ही स्वार्थ की परत ना इसे स्वार्थ की परिभाषा नहीं दी जा सकती क्योंकि घर के किसी सदस्य पर कोई समस्या आने पर सभी भरपूर सहायता करते मगर इस मदद के पीछे ना जाने क्यों औपचारिकता की बू आती थी। खैर, बात अगर इस घर की हुई है तो इसकी महानता की बात कर ली जाए। इस घर में अपने अन्दर रहने वाले सदस्यों को इकट्ठा करने की हर प्रयास से लेकर उनके बिखरते क्षण के हर लम्हे जैसे कसके जेहन में इस कदर समा गए हैं कि शायद उन लम्हों को भी अपने बिखरने का भय लगता है। अतः वे अतीत में कभी ना बिछुड़ने की कसमें खाकर अभी तक एक साथ हैं। आज काफी चहल-पहल है रायसाहब के मकान में। अब आप सोच रहे होंगे कि रायसाहब की चर्चा कहाँ से गई। अरे जनाब, यह वही मकान है जिसकी स्थिति का परत-दर-परत से आप परीचित हो गए है। हाँ तो उनके मकान में चहल-पहल का कारण है- उनकी बड़ी बेटी साधना की शादी की तैयारी होना। राय साहब अपनी बेटी की शादी में तिनका भर की कमी भी बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। उन्होंने बकायदा अपने  सभी कारिन्दों को सख्त आदेश दे डाला था कि शादी में किसी प्रकार की कमी का दण्ड उन्हें अच्छी तरह भुगतना पड़ेगा। अच्छा चलिए आपको शादी की तैयारियों का मुआयना करा दे। रायसाहब के आदेश पर एक से एक कीमती सजाने वाले सामान लाए गए थे, शहद की सबसे बड़े शहनाई टीम को बुलाया गया था, सबसे अच्छे हलवाई भी अपने काम में तत्परता से लगे हुए थे। सजावट की इससे अच्छी मिसाल भला कहाँ मिली थी आज तक। रायसाहब का सख्त आदेश था कि शादी के बाद कोई भी वस्तु चाहे कितनी भी कीमती क्यों हो, स्मरण हेतु ना रखी जाए और शायद यही गलती उनको जिन्दगी भर सालती रही, जिसके दःख से वो साधना की शादी के आठ-नौ महीने ही बाद चल बसे। माना कि रायसाहब अकूत धनराशि के स्वामी थे। इसी अभिमान में उन्होंने यह आदेश दे डाला था कि - बच्ची उनकी छोटी रीना) की शादी में बड़की साधना की शादी की कोई वस्तु लेशमात्र भी रखी जाए। अब पता नहीं कि बच्ची के बारे में रायसाहब की इतनी अनुकम्पा दष्टि और बड़की के प्रति बेपनाह जलील करने वाला व्यवहार क्यों रहा। शायद उसने एक बार अपने पिता से कहा था कि अपने कॉलेज में पढ़ने वाले अत्यन्त मेधावी छात्र से शादी करना चाहती है और उससे प्यार भी करती है। उसका इस प्रकार खुले स्वर में अपने पिता से अपने प्यार का इजहार करना शायद उनको बहुत खला और उन्होंने बिना इसकी कॉलेज की पढ़ाई भी छुड़ा दी। दोनों बेटियों को पिता से ज्यादा शायद ही कोई चाहता था। रीना का भी यही हाल था, मगर अपनी दीदी का हाल देखकर वह इस बारे में किसी से चर्चा करने स्थिति में नहीं थी। दोनों बेटियों के पास सौन्दर्य, समझदारी का भंडार था। माँ को महल, कोठरी मुहल्ले भर की गप्पत झांकने से ही फुरसत नहीं मिलती थी। फिर बेचारी माँ का भी क्या दोष। दिन-रात के इन भारी क्षणों में महल के अन्दर कैद रहने की जैसे उनको आदत-सी पड़ गयी थी या फिर यह बोझ उन पर लाद दिया गया था। माँ की सौंदर्य और विद्या पर दोनों बहने भी न्योछावर रहती थी। पर उस सौन्दर्य का पान महल के नौकर-चाकर दास-दासियों ही करती थी और फिर समय से पूर्व उनकी ढलती उम्र शायद पिता द्वारा उनको हिकारत की नजरों से दिखने के कारण था। अतः माँ भी सोने के महल में कैद सोने की चिड़िया थी जिसकी हृदय वेदना समझने को किसी में चाह नहीं थीं। यही सोच-सोच कर उनका व्यथित मन यही सोचता था कि, आखिर वह क्यों अपनी बेटियों की सहायता करे, उनके व्यक्ति मन पर क्यों कोई मरहम लगाए। आखिर उनके मन में किसी ने तो झाँकने की कोशिश भी नहीं की थी। जिसका आभाष होते ही उनका व्यथित मन और कुंठित हो जाता। शायद यह परिस्थिति की मार थी और इस विषाद को छुटकी (रीना) अच्छी तरह समझती थी, बड़की (साधना) हमेशा कल्पना लोक में खोई रहती थी और इसी सोच का उसे इतना बड़ा कठोरतम दण्ड मिला कि शून्यविहिन माँ के आँखों से भी अविरल अश्रुधारा बह निकली। पर रीना स्तम्भित हो गयी, उसने उसी वक्त अपनी इच्छाओं का गला घोंट। दिया। साधना अभी भी अपने दण्ड को भली-भाँति नहीं समझ सकी थी। साधना को। दण्ड देने की योजना का पुख्ता इंतजाम रायसाहब ने किया। इसे शादी के बाद मायके के हर अधिकार से बेदखल कर दिया गया। उसकी शादी उसके मनचाहे वर से हुई। जरूर, मगर उसका पति रायसाहब की औकात से काफी नीचे था। लेकिन रायसाहब ने अपने फूल सरीखी पाली गई बेटी साधना पर जरा भी दया नहीं दिखाई। साधना को इस बात का आभास तब हुआ जब उसकी शादी में बाहरी लोगों का उपहार तो मिला, मगर रायसाहब ने घर से एक तिनका तक ना दिया। बेचारी माँ किसी प्रकार चोरी छिपे एक अतयन्त सुन्दर हार साधना को देना चाहा, मगर साधना ने इंकार कर दिया। यह स्पष्ट था कि साधना को विरासत के तौर पर अपने परिवार की तरफ से मात्र इस शादी भर अनुकम्पा मिली। एक राजकुमारी को दासी में परिवर्तित कर दिया गया। साधना जिन्दगी भर एक सवाल हमेशा अपने मन से पूछती रही कि क्या माँ को उसकी अन्त पीड़ा नहीं दिखी। शायद साधना को यह आभास नहीं था कि उसकी माँ का सोने की चिड़िया बनकर रायसाहब की महल में कैद रहना थी एक प्रकार का दण्ड ही था, जो उनके पिता ने उसकी माँ को किसी से प्यार करने के एवज में दिया था। माँ एक कठपुतली बस थी, उसको नचाने वाला रायसाहब थे। वह नहीं जानती थी कि माँ को अपने ही घर में किसी प्रकार का अधिकार नहीं दिया गया था।
                                                       lavanya singh