Tuesday, May 12, 2020

पड़ताल

किसी को पुरानी शादियां याद है? याद है? जब शादी में पूरा गांव सरिक होता था। याद है? जब आस पास की सारी महिलाएं एक महीना पहले से तैयारियों में लग जाती थीं। याद है? जब गांव के सारे लड़के बारातियों को खाना खिलाने से लेकर सेवा सत्कार में लग जाते थे। नहीं याद है तो चलिए याद करते हैं। मंगलू चाचा की लड़की की शादी 25 साल पहले हुई थी। तब गांव असल में गांव होते थे। कस्बा, शहर और महानगर नहीं। तब हमारी सोच बंजर नहीं हुई थी। आपसी भाईचारा था, सहयोग की भावना थी, रिश्तों के प्रति समर्पण था। कुल मिलाकर  हम सामाजिक थे।

शादी की तैयारियां हो रही थी। शाम को बारात आने वाली थी। हलवाई सुबह से ही खाना बनाने में लगे थे। गांव के कुछ बच्चे आलू छिल रहे थे। कुछ नस्ता का पैकेट तैयार करने में लगे थे। गांव के कलाकार लड़के जयमाला स्टेज और मरवा (शादी का मंडप) सजाने में व्यस्त थे। गांव के लगभग सारे लोग मंगलू चाचा के घर पर थे। हंसी-ठिठोली हो रही थी। हिरामन चाचा बहुत लंबी लंबी फेंक रहे थे। लोग खूब हंस रहे थे। आनंद का माहौल था। सब मस्ती कर रहे थे। औरतें भी और मर्द भी। मर्द घर से बाहर और औरतें घर के अंदर। आलू छिल रहे बच्चे भी खूब चुस्की लेे रहे थे। सुधीर फूल और पनीर लाने पटना गया था अपने दोस्तों के साथ। उसे अपने जीजा जी के लिए उपहार और दीदी के लिए सैंडल भी लेना था। बहुत काम था उसके पास। सुधीर मंगलू चाचा का एक मात्र लड़का था। इसी साल दसवीं पास किया था।

एक तरफ मई का महीना। आंधी-पानी की। लड़की की शादी। 200 बाराती। बारात में नाच। जमींदार का लड़का। हाथी, घोड़ा जैसी चुनौतियां। दूसरी तरफ मंगलू चाचा। लड़की का बाप। साधारण किसान। लड़का नादान। शादी का खर्च। कर्ज का बोझ। अतिथियों का स्वागत। जैसी कई चिंताएं मुंह बाए खड़ी थी।

शाम के करीब 8 बजे का समय। बारात आ चुकी थी। जनमासे पर स्वागत के लिए 50 से ज्यादा लोग। ज्यादातर युवा। बारातियों के लिए बैठने की व्यवस्था, जलपान, पानी की सुविधा। हल्का होने के लिए विद्यालय का खुला परिसर। खुला आसमान। ठंडी-ठंडी हवा। पान की व्यवस्था। बाराती मस्त। जमकर भांगड़ा और नागिन डांस हुआ।

द्वारपूजा और जयमाला में थोड़ी दिक्कत हुई। दरवाजे पर बहुत भीड़ थी। ऊपर से गर्मी का मौसम उमसभरा। पंडाल का पंखा हांफ रहा था। सराती एक पांव पर खड़े थे। बाराती उतावले हो रहे थे। शर्बत पेश किया गया। रूह अफजा। थोड़ी ठंडक मिली। तभी कन्या का आगमन हुआ। अब सब शांत। सभी की नजरे वर-वधु पर। तब आज की तरह सभी के हाथ में स्मार्ट फोन नहीं था। मोबाइल फोन का आगमन भी नहीं हुआ था। इसलिए कन्या को ज्यादा कष्ट नहीं हुआ। जल्दी निपट गई।

भोजन का समय हो चला था। 11 बज रहे होंगे। बारातियों ने खाना शुरू किया। व्यंजन कम थे, पर लजीज थे। गरम-गरम पुरी,आलू दम, मटर-पनीर, बराबर   की चटनी सब स्वादिष्ट। गांव के लड़के पुरे मन से खिला रहे थे। पुछ-पुछकर खिला रहे थे। मंगलू चाचा खुश थे और बाराती संतुष्ट। स्वागत- सत्कार से बारातीगण बहुत खुश हुए। शादी समपन्न हुआ। और यादगार रहा।

क्या आज वैसी शादियां नहीं हो सकती?
क्या आज हम मेहमाननवाजी भूल गये हैं?
क्या अब हम सामाजिक नहीं रहे?
क्या आज हमारे पास इसके लिए समय नहीं है?
ऐसे कई सवाल हैं जो जायज भी हैं और जरूरी भी।

आकाश कुमार 'मंजीत'

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