Wednesday, April 29, 2020

एक प्रेम कथा 'व्यथा'

प्रेम था ऐसा भूल ना पाया
संग उनके मैं घूम ना पाया
दिल की हसरत दबी रह गई
नर्म होंठो को चूम ना पाया।

वो दिन भी क्या होते थे
जब सिसक सिसक के रोते थे
बिन देखे तब चैन ना मिलता
घंटों बांस पे होते थे।

हर आशिक की चाहत थी वो
दर्द में जैसे राहत थी वो
हाथ किसी के आ ना पाई
ऐसी हल्की आहट थी वो।

आखिर एक दिन ऐसा आया
इस आसमान पे बादल छाया
रखवाली करते ही रह गए
खो गया धूप में उसका साया।

ग़म था कितना जता ना पाया
दर्द को अपने दिखा ना पाया
दिल में कितना प्रेम भरा था
कभी भी उनको बता ना पाया

आकाश कुमार 'मंजीत'









Be Smart like Me

जब संगिनी समझदार और समर्थ है
तो उसे छुपाकर रखना व्यर्थ है
प्रेम तो वैसे भी जगजाहिर होता है
हर कोई कहां इस खेल में माहिर होता है
अगर दिल में किसी के लिए सच्चा प्रेम है
तो आपके चेहरे से जाहिर होता है।।
प्रेम को प्रेम बताना आर्ट है
यही हमारे जीवन का अभिन्न पार्ट है
उम्रभर मजे में जो इसे निभा गया
वही पति इस दुनियां में स्मार्ट है
So Be Smart like Me😊

प्रकृति से पंगा पड़ेगा महंगा


प्रकृति से पंगा पड़ेगा महंगा
पेड़ तो है इस धरा का गहना
सुन लो बंधु सुन आे बहना
मुझे तो बस इतना ही कहना।

इसके आगे कोई ना सुपर
नहीं मानोगे जाओगे ऊपर
करोगे इससे जो खिलवाड़
चलेगी गर्दन पे तलवार।

निर्मल रहने दो गंगा को
करो ना नंगा तुम नंदा को
जीव और जंतु हमारे बंधु
धरा सभी के सबके सिंधु।

नदी का मार्ग कभी ना रोको
पेड़ लगाओ गर हो सके तो
वर्षा जल का संचय करना
इस धरती को साफ है रखना।

आकाश कुमार 'मंजीत'

Monday, April 27, 2020

घर में सुरक्षा

कोरोना महामारी की वजह से तालाबंदी लागू है...तालाबंदी का मतलब घर में रहना है... बहुत जरूरी हो तभी घर से बाहर निकलना है...वो भी पूरी तैयारी और सतर्कता के साथ...नाक और मुंह को ढकना है...शारीरिक दूरी का विशेष ख्याल रखना है...भीड़ नहीं लगाना है...लेकिन क्या ऐसा हो रहा है ? नहीं हो रहा है...जितना हो रहा है काफी नहीं है...कोरोना अदृश्य जीवाणु है...ये कब शरीर में दाखिल हो जाएगा पता नहीं चलेगा...इसलिए को भी दिशा निर्देश है उसका पालन कीजिए...

ना समझेंंगे तो मिट जाएंगे...इतिहास के पन्नों में धूल फांकना पड़ जाएगा...स्थिति गंभीर है... बहुत गंभीर है...इसको समझना होगा...बस कुछ दिनों की बात है...हालात अभी नियंत्रण में है...इसलिए आप भी संयम से रहिए...शारीरिक दूरी का जरूर ख्याल रखिए...साबुन से हाथ धोएं...बार बार धोएं...सतर्क रहें...मौत अभी आस पास ही है...ये कभी भी अपना फन फैला सकता है...कुछ मामलों में छूट दी जा रही है...जो कि बहुत जरूरी है... इसका ये मतलब नहीं है कि मुसीबत टल गई है...बल्कि
इसलिए कि ये देश की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है...

हमारे छोटे प्रयास से हमारा कल बेहतर हो सकता है...समस्या से निपटने के लिए देश को हमारी जरूरत है...और ये हमारे लिए है...हमारे बच्चों के लिए है...उनके उज्जवल भविष्य के लिए है...अगर हम कोशिश करेंगे तो कोई मुश्किल काम नहीं है...एक बार हमें उनलोगों के बारे में सोचना चाहिए जो हमारे लिए घर से बाहर हैं...खतरों के बीच हैं...चिकित्साकर्मी पुलिसकर्मी, सफाईकर्मी, बैंककर्मी, मीडियाकर्मी जैसे लोग दिन रात एक किए हुए है...इस महामारी में वे लगातार काम कर रहे हैं...हमारे लिए... हमारी जान बचाने के लिए...हमें स्वस्थ रखने के लिए...हम तक सूचना पहुंचने के लिए...शांति बनाए रखने के लिए...कोरोना योद्धा कम संसाधन में बेहतर काम कर रहे हैं...अपनी जान जोखिम में डाल कर...इसलिए कम से कम उनका ख्याल रख सकते हैं...प्रधानमंत्री बार बार अपील कर रहे हैं...उनकी बात मान सकते हैं...बॉलीवुड स्टार, क्रिकेट स्टार लगातार हमें घर में रहने की प्रार्थना कर रहे हैं...ये सब सिर्फ हमारे लिए है...इसलिए इन सारी बातों को समझिए...घर पर रहिए...इसी में हम सब की भलाई है....
धन्यवाद

Saturday, April 25, 2020

Korona learning

इस दौर ने हमें बहुत कुछ सीखा दिया...
जो सालों से परदेश थे
उन्हें घर का रास्ता दिखा दिया
जिन्हे काम से बिल्कुल फुरसत ना थी
उन्हें घर बिठा दिया
जो घर में टिकते ना थे पलभर
उन्हें डर ने शांत लिटा दिया
जिन्हे सिर्फ मतलब था कमाने से
उन्हें घरेलू काम भी सीखा दिया।
इस दौर ने हमें बहुत कुछ सीखा दिया...
जो भूल चुके थे स्वस्थ रहने का तरीका
उन्हें जीने का सलीका सीखा दिया
जो फंसे थे महानगरों में मोह में
उन्हें गांव की गलियों ने वापस बुला लिया

Friday, April 24, 2020

झगड़े वाली रात पत्नी के हालात

जिसकी नींद ना खुली बिजली के कड़कने से
उसे क्या फर्क पड़ेगा दिल के धड़कने से
पूरी रात सनम साथ थे हमारे,दिल फिर भी रोता रहा
और रातभर मेरा मुआं, घोड़ा बेचकर सोता रहा।।

उम्मीद जगी थी एक बार, एक हल्का स्पर्श था
रेखा लांघू, ना लांघू ये विमर्श था
आग तेज थी और दीवार भी ऊंची
लांघना मजबूरी थी और हारना आदर्श था।।

आगे भी कुछ रात ऐसी ही रही
दिलों में दूरी बनी रही
प्यास मिट ना सकी, ख्वाहिशें भी अधूरी रही
पर मिलन की कोशिश अपनी तरफ से पूरी रही।।

आकाश कुमार 'मंजीत'







Monday, April 13, 2020

Korona new

जाएं तो जाएं कहां?
बड़ी समस्या है यहां
जाना चाहे जहां
कोरोना हो सकता है वहां।

कोरोना से अगर लड़ना है
तो घर में ही अपने रहना है
कुछ काम भी अति जरूरी है
बाहर जाना मजबूरी है।

कुछ दिन मन को समझा लो
रुखा सूखा ही खा लो
कैसे भी काम चला लो
लक्ष्मण रेखा नहीं लांघो।





लॉक डाउन का मारा पति बेचारा

'निगाहें' फिल्म का एक गाना है-सारा सारा दिन तुम काम करोगे, रात को आराम करोगे, प्यार कब करोगे?  दूसरा गाना है 'रोटी,कपड़ा और मकान' फिल्म से- तेरी दो टके की नौकरी पे मेरा लाखों का सावन जाए...साफ तौर से इन गानों के जरिए पत्नी या प्रेमिका अपने प्रेमी से प्रेम की मांग करती है...अपने लिए समय चाहती है...वो चाहती है अपने प्रियतम की बाहों में कुछ वक्त गुजारना...पर ये पूरा नहीं हो पाता...   चाहत अधूरी रह जाती है...क्योंकि पति महोदय को पैसा कमाना है...अपने लिए भी और मोहतरमा के लिए भी... ऐसे में शिकायतों का सिलसिला शुरू होता है...ऐसी शिकायतें हर नौकरी पेशा पति से उसकी पत्नी या प्रेमिका को होती है... आज नौकरी और व्यवसाय दोनों में काम का दबाव है...रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए ये काम जरूरी भी है...ऐसे में प्यार के लिए वक्त निकालना मुश्किल हो जाता है...पत्नी या प्रेमिका के इसी दर्द को इस गाने के जरिए समझाने का प्रयास किया गया है...
तो क्या इस लॉकडाउन में ऐसी शिकायतों पर ब्रेक लग गया है?
क्योंकि आजकल पति प्यारे के पास टाइम ही टाइम है...प्यार के लिए भी और तकरार के लिए भी...फुलटाइम सर्विस है जितना चाहे निचोड़ सकते हैं...पति तो बेचारा होता है...उसे बहुत कुछ सुनना पड़ता है...घर में भी और दफ्तर में भी...पति में एक और खासियत होती है... ये उफ्फ ना करने की कला में माहिर होता है...ऐसे में पीड़ित पति को सरकार से सब्सिडी की मांग करनी चाहिए...वोट के लिहाज से भी देखे तो सरकार के लिए एक बड़ी आबादी को हाशिए पर रखना घाटे का सौदा हो सकता है...
खैर ये दौर दुबारा नहीं आनेवाला...इसलिए इस पल को यादगार बनाने की पूरी कोशिश की जाए...कुछ खट्टे मीठे पलों से जीवन रूपी तस्वीर को सजाने का प्रयास किया जाए...घर को खुशहाल और जीवन को बेहतर बनाने का प्रयत्न किया जाए...
'Be Positive Think Positive'




Korona

जाएं तो जाएं कहां?
बड़ी समस्या है यहां
जाना चाहे जहां
कोरोना हो सकता है वहां।

कोरोना से अगर लड़ना है
तो घर में ही अपने रहना है
कुछ काम भी अति जरूरी है
बाहर जाना मजबूरी है।

कुछ दिन मन को समझा लो
रुखा सूखा ही खा लो
कैसे भी काम चला लो
लक्ष्मण रेखा नहीं लांघो।





Sunday, April 12, 2020

पान की खेती

खाइके पान बनारस वाला खुल जाए बंद अकल का ताला...पान खाए सैंया हमार... जैसे गानों को सुनकर आज भी हमारा दिल मचल उठता है...और जो लोग कभी पान खाने के शौकीन थे...उनका मन तरस जाता है...पान की खुशबू और मसालों की उस महक के लिए...क्योंकि उन्हें मालूम है इसका स्वाद और इसके फायदे...पर पान की कम होती गई खेती, इसकी कीमतों में इजाफा और बाज़ार के दबाव ने इसे पीछे छोड़ दिया है...और पान की दुकानों में पान की जगह रंग बिरंगे गुटखो ने ले ली...स्वास्थ्य के लिए हानिकारक और बिक्री पर बैन के बावजूद भी इन गुटखो की जबरदस्त मांग है...पान की कम होती खेती और लोगों की डिमांड में कमी के कई सारे कारण हैं...इन्हीं कारणों की पड़ताल के लिए हम आपको ले चलते हैं बिहार के सारण जिले में स्थित भैरोपुर पंचायत में...
आज से करीब 25 साल पहले भैरोपुर पंचायत के भैरोपुर और महदीपुर गांव के लोग पान की भरपूर खेती करते थे...गांव के लगभग सभी घरों में पान सजाने का काम होता था...पान सजाने का मतलब था अच्छे पान को छांटकर एक एक पचास का बंडल बनाना...इस तरह से चार पचास एक ढोली कहलाता था(एक ढोली में 200 पान के पत्ते)... इस काम में परिवार के सारे सदस्य शामिल होते थे...घर की नई बहुरिया भी खुशी खुशी इस काम को करती थीं...पान को सजाने का काम बहुत ही कलात्मक और मेहनत का होता था...इस गांव के ही संजय चौरसिया का इस बारे में क्या कहना है आइए जानते हैं-'पान खोटने(तोड़ने) के बाद पान को एक साथ मिला दिया जाता था...उसके बाद पचास पचास का बंडल बनाया जाता था...इसमें सबसे बड़े पान के पत्ते को सबसे नीचे फिर उससे छोटे को अवरोही क्रम में सजाना होता था'
पान को सजाने के बाद पान को बांस की टोकरी में रखकर 'दबका' एक खास प्रकार के ढक्कन से बांध दिया जाता था...इतना करने के बाद उसे बेचने की कवायद शुरू होती थी...इसके लिए लोग शाम वाली ट्रेन पकड़ के बनारस पहुंचते थे...रातभर मंडी में रुकने के बाद सुबह में पान की बिक्री होती थी...पान बेचने के बाद लोग जरूरी खरीदारी कर घर लौट आते थे...जबतक आमदनी अच्छी थी गांव के सारे लोग इसकी खेती करते थे...परिवार खुशहाल था...गांव में कुछ नौकरी पेशा लोग भी थे...उनके घरों में भी पान की खेती होती थी...चुकी आमदनी अच्छी थी इसलिए घर के सारे लोग इस काम में मशगूल थे...लेकिन जलवायु परिवर्तन और मौसम की मार ने पान की खेती को भी बर्बाद कर दिया...इसी का नतीजा था 'बहुती' और 'पाला' जैसी बिमारियां...इस बारे में राम नारायण चौरसिया जी का कहना है कि पान की खेती बहुत ही नाजुक खेती है इसे सर्दी और गर्मी दोनों से खतरा रहता है...हर समय इसके देखभाल की जरूरत होती है...समय समय पर दवाइयों का छिड़काव करना होता है...यह बहुत ही मेहनत का काम है...
पान की खेती में बहुत ज्यादा मेहनत,ज्यादा जोखिम और सरकारी मदद का घोर अभाव इसके पीछे छूटने के अन्य कारण हैं...इसकी वजह से विकल्प की तलाश शुरू हुई...लोग अपने बच्चों को पढ़ाने लिखाने लगे...अच्छी शिक्षा और नौकरी के लिए गांव के लड़के दूसरे प्रदेशों में गए...
कुछ को सरकारी नौकरी भी मिली...और ज्यादातर किसी निजी कंपनी में काम कर रहे हैं अपने घर और परिवार से दूर...पर गांव में आज भी कुछ लोग पान की खेती कर रहे है...इस उम्मीद के साथ कि इसके भी अच्छे दिन आयेंगे...इसलिए सरकार को चाहिए कि मृतप्राय पान की खेती में जान फूंकने के लिए जरूरी याजना बनाए जिससे गांव में खुशहाली लौट आए...

Saturday, April 4, 2020

छुट्टी लगातार है

आज भी छुट्टी कल भी छुट्टी
छुट्टी लगातार है
सारे काम ठप पड़े है
सोना ही एक काम है।

सो सो कर अब उब चुके हैं
निराशा में भी डूब चुके हैं
आशा की कोई किरण दिखे ना
अपने आप से रूठ चुके हैं।

उनलोगों के पौ बारह है
जिनकी अपनी दुकान है
राशन, दूध और सब्जी वाले
आज भी मालामाल हैं।

है जोखिम में उनकी भी जान
जो खुद को समझते हैं भगवान
तैयारी अपनी अधूरी है
इसलिए ये दूरी जरूरी है।

करो मानवता का सम्मान
अमूल्य यहां सबकी है जान
इस जान को हमें बचाना है
घर से बाहर नहीं जाना है।

अगर जाना अति जरूरी हो
तो ध्यान रहे, कुछ दूरी हो
मुंह-नाक को अपने बचाना है
इसीलिए तो मास्क लगाना है।

आकाश कुमार 'मंजीत'