प्रकृति से पंगा पड़ेगा महंगा
पेड़ तो है इस धरा का गहना
सुन लो बंधु सुन आे बहना
मुझे तो बस इतना ही कहना।
इसके आगे कोई ना सुपर
नहीं मानोगे जाओगे ऊपर
करोगे इससे जो खिलवाड़
चलेगी गर्दन पे तलवार।
निर्मल रहने दो गंगा को
करो ना नंगा तुम नंदा को
जीव और जंतु हमारे बंधु
धरा सभी के सबके सिंधु।
नदी का मार्ग कभी ना रोको
पेड़ लगाओ गर हो सके तो
वर्षा जल का संचय करना
इस धरती को साफ है रखना।
आकाश कुमार 'मंजीत'
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