Wednesday, April 29, 2020

एक प्रेम कथा 'व्यथा'

प्रेम था ऐसा भूल ना पाया
संग उनके मैं घूम ना पाया
दिल की हसरत दबी रह गई
नर्म होंठो को चूम ना पाया।

वो दिन भी क्या होते थे
जब सिसक सिसक के रोते थे
बिन देखे तब चैन ना मिलता
घंटों बांस पे होते थे।

हर आशिक की चाहत थी वो
दर्द में जैसे राहत थी वो
हाथ किसी के आ ना पाई
ऐसी हल्की आहट थी वो।

आखिर एक दिन ऐसा आया
इस आसमान पे बादल छाया
रखवाली करते ही रह गए
खो गया धूप में उसका साया।

ग़म था कितना जता ना पाया
दर्द को अपने दिखा ना पाया
दिल में कितना प्रेम भरा था
कभी भी उनको बता ना पाया

आकाश कुमार 'मंजीत'









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