कई बार आपके साथ कुछ ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जिनसे आप सीधे सीधे न जुड़े होकर भी ख़ुद को उनसे जुदा हुआ महसूस करते हो.उस दिन मैं बठिंडा-दिल्ली एक्सप्रेस से करनाल से दिल्ली जा रही थी.साथ वाली सीट पर एक सरदारजी अपने परिवार के साथ आलू पूरी का लुत्फ़ उठा रहे थे.सोनीपत स्टेशन से कुछ मज़दूर जैसे लग रहे आदमी ट्रेन में चढ़े.ओपन होने के कारण डिब्बे की सभी सीटें भरी थी .तो वे लोग खड़े हो गए.उनमें एक छोटा,करीब११-१२ साल का बच्चा था जो हाथ में एक भारी बोतल लेकर खडा था.थोडी देर बाद उसने वो पानी वाली बोतल फर्श पे रख दी। गाड़ी दुसरे स्टेशन पर रुकी तो कुछ hhऔर लोग चढ़े.उन्हें जाने के लिए रास्ता मिल जाए,इसके लिए वहीँ बैठे एक भाई साहब ने उस लड़के से बोतल उठाने के लिए कहा। उसने बोतल हाथ में उठा ली। जब गाड़ी चल पड़ी तो उसने बोतल फिर फर्श पर रख दी.ऐसा नहीं था के वहाँ से गुजरने की जगह नहीं थी,क्योंकि उसने बोतल साइड में राखी थी। जब वहाँ से कुछ लोग निकल कर जा रहे थे तो फिर उन भाई साहब ने उस बच्चे को बोतल उठाने के लिए ज़ोर से कहा और उसने वो बोतल उठा ली.जब लोग वहाँ से जा चुके थे ,तो जैसे ही उसने बोतल साइड पर राखी,उन भाई साहब ने ज़ोर से उसके मुह पर एक तमाचा जड़ दिया.तमाचा इतनी ज़ोर का था के सभी का ध्यान एकाएक उस तरफ़ गया .मैं उस बच्चे के बायीं तरफ़ वाली सीट पर बैठी थी और वो भाईसाहब बिल्कुल मेरे सामने बैठे थे। तभी वो बच्चा एकदम गुमसुम सा खडा हो गया और ५ सेकंड तक वो वैसे ही खडा रहा.उसका मोह लाल हो गया था.उसके समूह के लोगों की और से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई ,शायद इसलिए के वो लोग दरवाज़े के पास बाहर की और मोह करके एक झुंड में खड़े हुए थे। तभी पीछे वाली सीट पर बैठे एक भाईसाहब उठ कर आए और उन महाशय से शांत हो जाने को कहा.उसके बाद सभी लोग अपने अपने काम में व्यस्त हो गए और उस बच्चे ने चुपचाप वो बोतल हाथ में उठा ली.मैं चुपचाप ये सारा किस्सा होते हुए देख रही थी.उसके बाद वो बच्चा करीब ५ मिनट तक खिड़की से बाहर देखता रहा.एकाएक उसकी आँख में आंसू आ गए लेकिन एक बूँद आंसू आँख से निकलते ही उसने फ़टाफ़ट से पोंछ दिया.अगले लगभग ५-६ मिनट तक वो आंसू न गिरने देने की कोशिश करता रहा,.शायद वो जानता था के उसके आंसू देखने वाला,पोंछने वाला कोई नहीं था........
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