पूर्वी उत्तर प्रदेश की ज्यादातर चीनी मीलें गन्ने की कमी की वज़ह से समय से पहले ही बंद हो गयी है। आमतौर पर जून के पहले सप्ताह तक गन्ने की पेराई करने वाली मीलों के पास गन्ने का अभाव है। कहा यह जा रहा है कि गन्ने की कालाबजारी हो रही है।
गन्ना खेत से ही बिक जा रहा है। उ.प्र. सरकार ने गन्ना का न्यूनतम सर्मथन मूल्य 140 रुपए घोषित कर रखा है। वहीं बजाज ग्रुप ने गन्ना विकास के नाम पर 15 रुपए अधिक देकर गन्ने खरीद रहा है। इसके बावजूद उसकी मींले बड़े मुश्किल 8 से 10 घंटे ही चल पा रही हैं। गन्ने की कमी का हाल यह है कि बिच्चैलिया खेत में ही किसानों को मनमाफ़िक पैसा देकर गन्ना खरीद रहें हैं। क्रेसर मालिक भी 160 से 170 रुपए देकर गन्ना खरीद रहें है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में 14 चीनी मीलें हुआ करती थी। सरकार की गलत नीतियों के कारण मुश्किल से वहां दो मीलें ही बच हुई हैं। देवरिया में गन्ने का उत्पादन 600 लाख टन हुआ करता था जो घटकर लगभग 400 लाख टन पर आ गया हैं। वहीं महाराजगंज जिले में गन्ने का क्षेत्रफल घटकर 66 फीसदी हो गया है। मौजूदा समय में यदि किसान चीनी मीलों को गन्ने नहीं बेच रहें है। तो उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि किसानों का सही समय से भुगतान न होना। प्रदेश में चीनी निगम की 22,निजी क्षेत्र की 83, सहकारी चीनी मील संघ की 28 मीलों पर किसानों का 16 हजार करोड़ रुपए बकाया है। हाई कोर्ट से फटकार पे फटकार पाने के बावजूद गन्ना मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी झूठे आश्वासन देने से बाज नहीं आ रहे है। बहुत सारे किसानों के हालात बद से बदत्तर हो गयी हैं। वे अपने खेत गिरव़ी रखने या बेचने के लिए मजबूर है। क्योंकि उन्होंने ऋण लेकर खेत में निवेश किया था। दूसरी वज़ह यह है कि प्रदेश में पहली बार ऐसा हुआ है कि धान और गेहूं का समर्थन मूल्य गन्ने के समर्थन मूल्य से ज्यादा होने के चलते किसानों का गन्ने से मोहभंग हो गया है। धान और गेहूं की ओर वे अधिक आकर्षित हो रहे हैं । आज किसानों की समस्याएं चुनावी मुद्दा नहीं होती बल्कि इनका स्थान जाति,धर्म, और क्षेत्र ने ले लिया है। जो देश के विकास में बाधक है।
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