Monday, March 2, 2009
समाज और सेक्स
रात के लगभग दस बजे का वक्त। डिफेंस कालोनी, नई दिल्ली में चौकीदार रूटीन चैकिंग के लिए दो बाइक सवारों को रोकता है
बाइक सवार, "भाई, रोज़ ही तो यहाँ से जाते हैं। अभी भी नहीं पहचानते हो क्या ?"
चौकीदार, "ये सब तो करना ही पड़ता है।"
उसी समय दो लड़कियां वहाँ से गुज़रती हैं।
चौकीदार, "देखो साहब, समाजसेवा हो रही है।"
बाइक सवार, "समाजसेवा?"
चौकीदार, "और नहीं तो क्या साहब! अगर ये लोग न हों तो रोज़ कितने रेप होने लगेंगे।"
चौकीदार के शब्द देर तक कानों में गूंजते रहे। ये थोड़ी सी बातचीत ज़्यादा सोचने पर मजबूर करती है। इन्सान क्यों सेक्स के मामले में इतना वीभत्स हो जाता है ?
दरअसल किसी भी समाज की वास्तविक हालत का अनुमान उस समाज में मौजूद नियम, कानूनों या मान्यताओं से भी लगाया जाता है। जिस समाज में जितने ज़्यादा प्रतिबंधकारी तत्व होते हैं, वह समाज उतना ही अशिक्षित और पिछड़ा माना जाता है। नियम, कानूनों और मान्यताओं की प्रवृत्ति किसी काम को करने से रोकने की होती है, जबकि इंसानी प्रवृत्ति इन्हीं प्रतिबंधित कामों को करके देखने की। हमारे समाज में सेक्स को लगभग अछूत विषय माना जाता रहा है। इस पर घर, स्कूल या समाज में खुली बातचीत नहीं होती है। इसी छुपाने और ज़बरन देखने की खींचतान और अधकचरी जानकारियों के परिणाम हमारे समाज में आसानी से देखे जा सकते हैं।
इसी तरह हमारे बीच में शादी से पहले सेक्स को ग़लत माना जाता रहा है। अगर हमारे समाज में कोई आदमी शादी नहीं करता है या किसी की शादी किन्हीं वजहों से देर तक नहीं हो पाती तो वह सेक्स का अधिकारी नहीं माना जाता। इतनी उम्र तक सेक्स न करने से इन्सान का मानसिक रोगी हो जाना स्वाभाविक है। इन्सान की और बुनियादी आवश्यकताओं की तरह सेक्स भी है और सिर्फ़ शादी ही इस काम को करने का सामाजिक प्रमाण-पत्र।
सेक्स वर्कर्स और उनके काम को हमारे समाज में ग़लत माना जाता है। नैतिकता की दुहाई दी जाती है। मामला सिर्फ़ नैतिकता का न होकर नैतिकता के तय कर दिए मायनों का भी है। अक्सर उनके काम को उनकी मज़बूरी से भी जोड़ कर देखा जाता रहा है। इस काम को कानूनी मान्यता दिलाने की भी बातें होती रहती है। यहाँ भी बात सिर्फ़ कानूनी मान्यता तक सिमटी न होकर काफी गहरी है। किसी भी काम को समाज में मान्यता सिर्फ़ कानूनी तरीकों से नहीं दिलाई जा सकती। सामाजिक चेतना भी इसमें अहम् भूमिका निभाती है और सामाजिक चेतना या सही समझ बनने के लिए इससे जुड़े सभी मसलों पर खुलकर बहस होना जरुरी है और यह बहस शुरुआती स्तर से ही होनी चाहिए।
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अपने सही लिखा है लेकिन हमने अक्सर देखा है की मनुष्य का वीभत्स रूप वही पर सामने आता है जब कोई ऐसी आवस्यकता हो जो जीवन के लिए अवश्यक हो और अभी एक रिसर्च ने साबित भी किया है की सेक्स करने से तनाव कम रहता है और सेक्स से बहुत से समस्या दूर भी होती है इसलिए इस बात से यह तो पता चल जाता है की वास्तव में सेक्स हमारी जरुरत है प्रकर्ति ने हमे बनाया ही ऐसा है तो इस बात से हम भाग नहीं सकते क्योंकि किसी बात के लिए किसी को कारन बताने से पहले हमे उसके पीछे की चीजों को जानना चाहिए और उस मनोविज्ञान को भी समझना होगा की आखिर बलात्कार जैसे घटनाओ के लिए क्या फैक्टर जिम्मेदार थे
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