आम आदमी की कार नैनो लांच हो चुकी है। नैनो अपने वादे के मुताबिक एक लाख की तो नहीं लेकिन उससे कुछ ज़्यादा की कीमत में आई है। इधर पिछले कुछ दिनों से 'आम आदमी' चर्चा में है। दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में 'आम आदमी' की बात की जाए तो थोड़ा हैरानी ज़रुर होती है।
आप भी अगर सोच रहे हैं कि आम आदमी' किस चिड़िया का नाम है, तो हैरानी की कोई बात नहीं। दरअसल आजकल यह चिड़िया इन महानगरों में उड़ती दिखाई नहीं देती। उड़ना तो दूर की बात हुजूर यह चिड़िया अब चलती भी नहीं रेंगती है। पिछले दिनों एक फ़िल्म आई रब ने बना दी जोड़ी'। इसे भी 'आम आदमी'की प्रेम-कहानी कहा गया था। हम भी 'आम आदमी'की तलाश में सिनेमा हॉल तक पहुंचे तो पता चला कि टिकट दो सौ रूपये का था। 'आम आदमी' की फ़िल्म होने का पहला ही दावा झूठा निकला। खैर हमने सोचा चलो आज खास बनकर ही 'आम आदमी' की फिल्म देखी जाये। फ़िल्म में नायक का शादी के दूसरे ही दिन पत्नी पर फबने वाले रंग की कार खरीदने के बाद हमने फ़िल्म में 'आम आदमी'की तलाश छोड़ दी। आखिर 'आम आदमी' की ऐसी हैसियत नहीं हुआ करती। फ़िल्म पूरी इसलिए भी देखी कि टिकट २०० रूपये का था।
दूसरी बार 'आम आदमी' का चर्चा कांग्रेस के चुनाव प्रचार में सुनाई दिखाई दिया। वैसे कांग्रेस अपने पूरे कार्यकाल में 'खास आदमी' के लिए ही नीतियां बनाती नजर आई, हालाँकि यह मुगालता ही रहा कि सारी भागदौड़ 'आम आदमी' के लिए है।
इधर 'आम आदमी' की कार बाज़ार'में है। नैनो के आने की ख़बर आते ही कई दोस्त और परिचितों ने इसे लेने का मन बना लिया था। ये दोस्त अक्सर चर्चाओं में ख़ुद को 'आम आदमी' की लिस्ट में गिनाना नहीं भूलते। अब थोड़ा सोचना पड़ा कि ये 'आम आदमी' होता कौन है? क्या यही भारत का 'आम आदमी' है जो 'बाज़ार' में हर नए/महंगे उत्पाद के आते ही उसे खरीदने की योजनाएं बुनने लगता है?
अगर दो जून की रोटी कमाने से 'आम आदमी' को फुर्सत मिले तो वो ऐसा कुछ सोचेगा। शायद न भी सोचे! अगर हमारे बीच से निकला बन्दा ऐसा सोचता है तो ये हमारे लिए सोचने वाली बात है। हम सभी 'बाज़ार' के दांव-पेंचों से वाकिफ हैं जबकि आम आदमी से 'बाज़ार' के बहाव के खिलाफ तैरने की उम्मीद नहीं की जा सकती। क्या हम सभी का मकसद पैदा होने के बाद सिर्फ अमीर होना ही है? अमीर होने का दर्शन आज सभी दर्शनों पर भारी है और यह बहुत खतरनाक बात है।
ऐसे समय में जब हम सभी गाड़ियों के कहर(वायु-प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण आदि) से जूझ रहे हैं, नैनो का आना ख़ुशी की नहीं चिंता की बात है। नैनो की रिकार्डतोड़ बिक्री के कयास लगाये जा रहे हैं। इसका सीधा मतलब है कि सड़क पर बोझ बढ़ने जा रहा है। 'आम आदमी' जो आज भी पैदल या बसों में सफ़र करता है, उसके लिए जगह और भी कम होने जा रही है। सड़क पर चलती, सड़क पार करती भीड़ के लिए जिंदगी और कम होने जा रही है। रोज़ घर से निकलते वक़्त साबूत वापस आने की दुआ पैदल चलने वाला ही माँगा करता है। ऐसे वक्त में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर बनने के कोई भी कोशिश सरकार की तरफ से दिखाई नहीं देती। सरकार से ये उम्मीद बेमानी है कि वो गाड़ी वालों के लिए कुछ नये कानून बनाये। मसलन एक गाड़ी में तीन से कम लोग होने पर चालक का चालान किया जाए और पहले से ही २-३ गाड़ी वालों को नई गाड़ी खरीदने की इजाजत न दी जाए। नई गाड़ी खरीदने वालों के पास मोटर बाइक हो और मोटर बाइक खरीदने वालों के पास साईकिल हो तो ही उन्हें बाइक खरीदने की इजाजत मिले (उम्मीद है कि ये लोग कम दूरी के लिए पुराने वाहनों का ही उपयोग करेंगे)। ऐसी सरकार जिसका मकसद ही आम लोगों के बहाने से खास लोगों की सेवा हो उसके एजेंडे का 'आम आदमी' कैसा होगा, साफ है।
naino ke bahane achhi charcha chalayi hai. maine pahli bar es shabd par film wednesday mein dhyaan diya tha.tab se har popular utpaad aam aadami ke hi nam par becha jata dekh rahi hoon . aur aam aadami ke na,m par bikne vale en brands ke beech mein khud aam aadami ek brand ban gaya hai.beshak ye khatarnak baat hai. politics art literature media har policy ke kendra mein aam aadami hai ?par main hairan hoon aakhir aam aadami hai kaun?ye samay to higher class middle class aur lower class ka hai .en sab ki bheed mein aam aadami ki defnition kya hai?ese khoja jana zaroori hai.
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