वरुण गाँधी भाजपा में रहते हुए रात में कुछ नामों से डर जाते हैं। क्या होता अगर वरुण ताईजी और भइया राहुल के साथ उनकी पार्टी में होते? यह अच्छी बात नहीं है, वरुण गाँधी के इस डर को चुनाव आयोग, भाजपा, कांग्रेस सभी ने गंभीरता से लिया लेकिन ताईजी या राहुल भइया ने नहीं। परिवार में रहते हुए ताईजी और बड़े भइया की ज़िम्मेदारी बनती है कि उन्हें डर के इस माहौल में हिम्मत दिलाएं जब उनकी पार्टी भी उनसे पल्ला झाड़ती नज़र आ रही है।
पिता से गाँधी का नाम और मां से पीलीभीत की सीट गिफ्ट (चुनाव लड़ने को ) में लेकर भी उनकी राह आसान नहीं हो पाई। गाँधी परिवार के हर शख्श को भारतीयों पर राज करने का हक मिला हुआ है। वैसे राज के मामले में कांग्रेस भाजपा से बीस ही साबित हुई है लेकिन वरुण के साथ दिक्कत ये है कि वो भाजपा में हैं। अगर वो कांग्रेस में रहकर ये बयान देते(शायद न भी देते) तो उन्हें हिम्मत बंधाने वालों की भीड़ लग चुकी होती। लेकिन अभी उनकी मां के ही उनके साथ होने की उम्मीद है। इसलिए नहीं कि वह भी भाजपा में हैं सिर्फ़ इसलिए कि वह उनकी मां हैं (भारतीय माएं थोड़ा इमोशनल होती हैं,मदर इंडिया को छोड़कर)। और हम भारतीयों के पास सिर्फ़ मां भी हो तो हमें सबसे ज़्यादा अमीर समझा जाता है (फ़िल्म दीवार में शशि कपूर)। अभी तो मां मेनका उनसे, शोले फ़िल्म की तमाम माओं की तरह यही कह रही होगी, "बेटा, सो जाओ / बाहर मत निकलना नहीं तो 'डराने वाले' आ जायेंगे."
वरुण गाँधी कांग्रेस में होते तो क्या होता ये तो बात की बात हैं.पर इतना तो पक्का हैं की अगर उन्होंने कांग्रेस में भी रह कर ये कहा होता तो कांग्रेस उनसे पल्ला झाड़ रही होती...क्यूंकि चुनाव की सतरंज के कुछ बुनियादी नियम होते हैं. वरुण बच्चे हैं और गाँधी नाम से मिली सोहरत से थोडा इतराए हुए भी हैं.अपनी कट्टर हिंदुत्ववादी भावना को सार्वजानिक रूप से उजागर करके वो बी जे पी में आगे बढ़ने का जो सपना देख रहे थे वो उलटी पड़ गयी.
ReplyDelete