Monday, March 23, 2009
भारतीय दुधारू रेल: मुस्कान के साथ
मैंने जयपुर का रेल टिकट लिया और जब इसे अहमदाबाद तक बढ़वाना चाहा तो रेलवे ने इसका अतिरिक्त शुल्क वसूल किया। हालांकि इस काम को करने में रेल विभाग को कोई भी खर्च अलग से नहीं करना पड़ता है। पर “ग्राहकों की सेवा मुस्कान के साथ“ ! सूत्र वाक्य वाली लालू की दुधारू रेल आज यही मिजाज रखती है।ठीक इसी तरह जब कोई यात्री अपनी यात्रा शुरु करने के स्थान से ही वापसी का टिकट भी बुक करवाता है तो रेलवे यात्री से 20 रुपये अतिरिक्त शुल्क वसूल करता है। जैसे ़ ़ ़ किसी यात्री को दिल्ली से बनारस जाना है और बनारस से वापसी का टिकट वह दिल्ली से ही बुक करवाना चाहता है तो उसे 20 रुपये अतिरिक्त शुल्क देना होता है। कंप्यूटर के माध्यम से प्राप्त हुई ये सुविधाएं यात्री को आसानी से मिलनी चाहिए थी लेकिन इसकी कीमत उसे अपनी ही जेब से चुकानी पड़ती है। तो ऐसे में तकनीकी विकास का उस यात्री को क्या फायदा मिला जिसे सुविधाजनक यात्रा के सपने दिखाए जा रहे है ?पिछले चार सालों से लगातार लाभ की गाथा लिख रहे भारतीय रेल के कर्णधारों ने किस तरह आम आदमी की जेब में डाका डाला है, यह उसकी समझ से भी बाहर है। आधुनिकीकरण और तकनीकी विकास से हासिल हुई सुविधाओं की कीमत भी सामान्य यात्रियों कों चुकानी पड़ रही है। वहीं रेलवे हजारों करोड़ का मुनाफे कमाने वाली निजी कंपनियों का रिकार्ड भी तोड़ रही है। इस कमाई के पीछे रेल विभाग की कुशलता से ज्यादा उसका व्यवसायीकरण है। यात्रियों से टिकट वसूली में रेलवे ने आरक्षण के सामान्य कोटे को घटाकर तत्काल आरक्षण का कोटा बढ़ा दिया है। जिसमें सामान्य आरक्षण शुल्क से 30 फीसदी अधिक शुल्क देना होता है। यदि यात्री को सीट;कन्फर्मद्ध नहीं मिल पाती है तो टिकट के पैसे भी वापस नहीं मिलते हंै। अब मजबूरी में यात्री को तत्काल का टिकट लेना पड़ता है क्योंकि सामान्य आरक्षण का कोटा कम होने की वजह से पहले ही खत्म हो जाता है। इस तरह की चालाकी से रेल विभाग करोड़ों कमा रहा है। डिब्बों में सामान्य यात्रियों की सीटों की जगह को छोटा किया गया है और नई सीटें बनाई गई है। इससे यात्रियों को सफर में दिक्कत तो होती ही है और उनकी सुरक्षा भी प्रभावित होती है। इस तरह रेल विभाग सामान्य यात्रियों की सीटों की जगह बेचकर ’मुनाफे का खेल’ खेल रहा है। रेलवे ने जहां अपने स्टेशनों के पास की भूमि का व्यावसायिक उपयोग किया है वहीं स्टेशनों पर निजी सार्वजनिक भागीदारी के आधार पर निजी उद्योगपतियों को मालामाल भी किया है। अब तो स्टेशनों पर आधारभूत सुविधाओं का उपयोग करने के लिए भी यात्रियों को शुल्क देना पड़ता है। सार्वजनिक सेवा के नाम पर कार्य करने वाली रेल अब पीने के पानी से लेकर यात्रियों के रात में ठहरने की जगह तक का पैसा वसूल रही है। क्या यही है भारतीय रेल ग्राहकों की सेवा मुस्कान के साथ ?
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