Friday, March 20, 2009

सास बहु से देश की लाडलियों तक

टीवी के डेली सोप से जिनका पाला पड़ा है वही जानता है की इन दिनों सास बहू का मुद्दा ठंडा पड़ा है और देश की लाडलियों का मुद्दा गरमाया है। एकता कपूर के ‘‘के‘‘ का जादू खत्म हो गया है। नए चैनल कलर ने अपने प्रोग्राम के कंटेंट के ज़रिए सिर्फ एक ही साल के अंदर टीआरपी के सभी रिकार्ड तोड़ दिए हैं। बालिका वधू से उसकी यह यात्रा शुरू हुई थी। ऐसा नहीं है कि नारी उत्थान के लिए पहले कोई कार्यक्रम ना बनाया गया हो लेकिन महिला पुरुष के लिंग अनुपात का निरंतर कम होते जाना चिंता का बड़ा विषय बन गया है। इस ओर यह कदम सराहनीय है। समाज की जड़ता को दिखाने से शुरू हुआ यह सिलसिला अब लगता है थमेगा नहीं बलिका वधू, उतरन, ना आना इस देस लाडो के बाद सबका चहेता बना कलर चैनल अब एक और नया सीरियल शुरू करने वाला है भाग्यविधाता। जिसमें लड़कियों के लिए वर अपहरण कर के लाए जाते हैं। हालांकि इस तरह के सीरियल पेश करना कलर का कोपीराइट था लेकिन अब स्टार और ज़ी ने भी इसकी शुरुआत कर दी है। ‘मेरे घर आई एक नन्ही परी‘ और अगले जनम मोहे बिटिया ही किजो इसी श्रंखला को आगे बढ़ाते हैं। इस संदर्भ में यह कहना गलत ना होगा कि देर से ही सही टीवी ने ज़मीनी हक़ीकत को पहचानना तो शुरू किया। देश का एक बड़ा तबका जो अभी भी बेटियों को बोझ और तिरस्कार की दृष्टि से देखता है आशा है कि इससे कोई सीख लेगा। यह रुढ़िवादी सिर्फ ग्रामीण परिवेश में है ऐसा नहीं है यह सोच पढ़े लिखे लोगों में भी है। जहां भी लड़कियों को अधिक प्राथमिकता मिलती है वहां इस पुरुष प्रधान समाज में उन लोगों को यह कहने का मौका मिल जाता है कि "लड़की है इसलिए" वह यह मानने को तैयार ही नहीं होते की महिलाएं भी उतनी क्षमता रखती है और अपने बलबूते सब कुछ कर सकती है। औरत ही औरत की दुश्मन होती है यह पुरुषवादी सोच और षड्यंत्र ही है। बराबरी का हक़ पाने के लिए महिलाओं को ना जाने कितना वक्त और लगेगा।

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