मंदी का असर इस बार कैम्पस प्लेसमेंट पर जबरदस्त तरीके से दिख रहा है । कंपनियों ने नई नियुक्तियां घटा दी हैं और फ्रेशर्स को बहुत कम मौके मिल रहे हैं। वे सभी क्षेत्र जिनके व्यापार में निर्यात का बड़ा हिस्सा है मंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। विदशों में वस्तुओं की मांग कम हो गई है और देश में भी जॉब सिक्योरिटी प्रभावित होने से घरेलू बाजार प्रभावित है। इसमें भी आई.टी. सेक्टर( सूचना प्रौद्योगिकी) और वस्त्र उद्योग पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। और अब सभी बड़े शिक्षण संस्थानों में इसका असर दिखने लगा है। आई.आई.टी. दिल्ली में एम.एस.सी. अंतिम वर्ष के छात्र मोहित का कहना है कि इस साल पिछले साल की तुलना में प्लेसमेंट की स्थिति काफी खराब है। कोर्स के कुल 25 छात्रो में से अब तक केवल 10 को ही नौकरियां मिली हैं। इसी संस्थान में एम.टेक. अंतिम वर्ष के छात्र विवेक का भी कहना है कि हांलाकि पैकेज पर कोई खास असर नहीं पड़ा है लेकिन जो कंपनियां पहले दस छात्र ले जाती थीं आज मात्र दो ले जा रही हैं। इसलिए 100 प्रतिशत प्लेसमेंट की उम्मीद बिल्कुल नहीं की जा सकती। जबकि संस्थान के ट्रेनिंग और प्लेसमेंट सेल में स्टूडेंट coordinator अभिमन्यु कोठारी का कहना है कि मंदी का असर आई.आई.टी. जैसे संस्थान पर बहुत ज्यादा नहीं है। ज्यादातर प्लेसमेंट दिसम्बर में होते हैं और इस बार भी काफी प्लेसमेंट हुए हैं। 22 लाख का अधिकतम पैकेज भी मिला है। लेकिन इसका अंदाजा लगाया जा सकता है कि संस्थान की छवि खराब ना हो इसलिए वे मंदी के असर को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। फिर भी उन्होंने इस बात से इन्कार नहीं किया कि प्लेसमेंट के ऑफर बहुत घटे हैं। एक और स्टूडेंट coordinator शमित रस्तोगी का कहना है कि तेल कंपनियां, कंसल्टेंसी सेवा और सॉफ्टवेर क्षेत्र की कंपनियां तो अभी भी आ रही है पर वित्तीय और बैंकिग क्षेत्र से, जो कि काफी ज्यादा लोगों को ले जाती थी, इस बार एक भी कंपनी नहीं आयी है।वस्त्र उद्योग पर भी मंदी की काफी मार पड़ी है। ज्यादातर निर्यात अमेरिका और यूरोपीयन यूनियन में होता था जहां मांग बहुत घट गयी है। वस्त्र उद्योग मांग की कमी झेल रहा है जिसके कारण उत्पादन और रिटेल दोनों क्षेत्रों की कंपनियां लोगों को नौकरियों से निकाल रही हैं। निफ्ट गांधीनगर, गुजरात के 2008 बैच के छात्र रवि का कहना है कि पिछले साल निफ्ट से 17 छात्रों को विशाल इंटरप्राइजेज में नौकरी दी गई थी जिनमें से आठ लोगों को अब तक निकाला जा चुका है और चार अन्य को मार्च तक निकले जाने की बात की गई थी। उल्लेखनीय है कि विशाल इन्टरप्राइजेज का टर्न ओवर छः महिनों में 25 प्रतिशत तक घटा है। निफ्ट दिल्ली में अंतिम वर्ष के छात्र नीरज का कहना है कि पिछले साल तक कई बड़ी रिटेल कंपनियों ने छोटे शहरों में जो नए आउटलेट्स खोले थे वो बंद किए जा रहे हैं, इसलिए मार्केटिंग में नई नियुक्तियां नहीं हो रही हैं।
बड़े औद्योगिक क्षेत्रों के अलावा छोटे सेवा क्षेत्रों पर भी मंदी की मार पड़ी है। जे.एन.यू. में ऑफ़ लैंग्वेज लिटरेचर एण्ड कल्चर स्टडीज के काउंसलर शाहनवाज खान कहते हैं,"निश्चित रुप में हम पर मंदी का काफी गंभीर असर पड़ा है। बी.पी.ओ., होस्पितालिटी जो कि छात्रों का आकर्षण थीं नई भर्तियां नहीं कर रही हैं और जहां नए चयन हो भी रहे हैं वहां पहले की तरह पैकेज नहीं मिल रहा।’’ रसियन भाषा के छात्र जयप्रकाश शर्मा कहते हैं कि अब पार्ट टाइम जॉब मिलने में भी कठिनाई हो रही है। अरबी भाषा में बी.ए. अंतिम वर्ष के छात्र अखिल आगे एम.ए. और पर्सियन भाषा के छात्र गुलाम समदानी पी.एच.डी. करने का मन बना रहे हैं। इसी तरह की चिंताएं जे.एन.यू. के स्कूल ऑफ़ कम्प्यूटर एण्ड सिस्टम साइंस में भी है। स्कूल के प्लेसमेंट coordinator रंजीत रंजन का कहना है कि पहले जहां 90 प्रतिशत प्लेसमेंट जूलाई तक हो जाते थे, इस बार दिसंबर तक केवल ६० प्रतिशतछात्रों का ही प्लेसमेंट हो पाया है। जिन लोगों को पहले चुना भी गया था उनके नियुक्ति पत्र नहीं आ रहे हैं। मेडिकल, बैंकिंग, कंसल्टेंसी और माइक्रो फाइनांस सेवाओं पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ा है इसलिए एम्स, श्री राम कॉलेज ऑफ़ कोम्मेर्स और दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स में कैंपस प्लेसमेट उतना प्रभावित नहीं है। हां विदेशीकंपनियों का आना जरुर कम हुआ है।
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