महिला देह व्यापार आज के इस आधुनिक युग की देन नहीं अपितु यह हमारे ही पूर्वजों के ज़माने से चला आ रहा है। क्लास में मंडी फिल्म में देह व्यापार से जुड़ी महिलाओं और इसके पीछे छुपे कारणों पर चर्चा हुई। इस चर्चा में ज्यादातर लोगों का मानना था कि इसकों कानूनी करार देना हमारे समाज को आदर्शो से भटकाना होगा। उन महिलाओं की दयनीय स्थिति और मजबूरियों को टटोलने की कोशिश की जानी चाहिए। लेकिन कहते है ना इस मेहफिल में कोई भी पाक़ साफ नहीं। इसी का उदाहरण है सिस्टर जैस्मी की आत्मकथा। सिस्टर जैस्मी केरल के एक चर्च में नन थीं और उनके इस पुस्तक को लिखने का भी एक उद्देश्य है। उनकी इस किताब को हफते भर में ही ज़बरदस्त लोकप्रियता मिली और 2,000 प्रति बिक चुकी है। इसका हिंदी अनुवाद भी जल्द ही आएगा। अब आप सोच रहे होंगे की इस पुस्तक में ऐसा क्या है? यह पुस्तक चर्च के ऐसे रहस्यों को खोलती है जिससे सभी वाकिफ है लेकिन बोलने की हिम्मत कोई नहीं करता। सिस्टर ने इस पुस्तक में अपनी आप बीती बताते हुए उन हज़ारो ननों की व्यथा को भी उजागर किया है। चर्च में होने वाली समलैंगिक संबंधों और पादरीयों द्वारा किए जाने वाली ज़ोर ज़बरदस्ती को बताया गया है। उनको भी यह सब सहना पड़ा और जब वह बर्दाश्त नहीं कर सकीं तो उकताकर उन्होंने चर्च की घुटन भरी ज़िदगी को त्याग दिया। यह पहला उदाहरण नहीं है ऐसे कई मामले सामने आए लेकिन उस विषय में कुछ नहीं किया गया। ननों के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने और उनके द्वारा इसका विरोध करने पर उनकी हत्या तक कर दी जाती है। जैस्मी ने पहली बार हिम्मत जुटाकर इस पुस्तक को लिखा। धमकी और मानसिक तनाव के बावजूद उन्होने इसको लिखने का साहस किया है। इससे साफ है कि समाज का वह तबका जो अपने आप को सभ्य और दुसरो को आध्यात्म का ज्ञान देने का दावा करता है, वह उन महिलाओं को बदनाम कर रहा है जिन पर मंडी को चलाने का आरोप लगाया जाता है।
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