Monday, March 23, 2009
गरीब रथ की गरीबी
Saturday, March 21, 2009
गरीब रथ की गरीबी
होली की छुटी में घर जाने के लिए डेल्ही से बनारस जाने वाली सारी गाड़ियों में सीट देखा ,लेकिन सभी में सीट फुल थी या वेटिंग में थी .घर वालो से मैंने बोल दिया की में नही आ रही हूँ .फ़िर 'जहाँ चाह वहा राह ' वाली कहावत जैसा कुछ हुआ .मेरे जीजा जी को मेरे टिकट न मिलने की ख़बर मिली उन्होंने तुंरत गरीब रथ और समर स्पेशल में वेटिंग की ही टिकट ले ली .मेरे जाने के पहले ही गरीब रथ की टीकट कन्फर्म हो गईं.मैंने मेरे जीमेल से टिकट का प्रिंट आउट निकाला .९ मार्च को शाम ६ .३० पर मेरी ट्रेन पुरानी डेल्ही से थी .मैं और अनु एक साथ स्टेशन के लिए निकले .अनु को नई डेल्ही छोड़ कर मैं पुरानी डेल्ही गई .वहा पहुची तो गरीब रथ लेट थी .ये रथ किस प्लेटफार्म पर आयेगी ये पता ही नही चल रहा था .फ़िर पूछ -ताछ केन्द्र से पता चला कि ट्रेन 3 नम्बर पर आरही है . ६.३० के बजाय ट्रेन ७.०० बजे चली .ऊपर वाले कि कृपा से चली तो .ट्रेन में जी ३ मेरा डिबबा था .जिसमे २३ मेरी सीट थी .अपने सीट पर पहुच कर मैनेसामान रखा मेरे कम्पार्टमेंट में मुझे छोड़ कर ८और लोग थे जिसमे एक दादी जी एक लड़की और५ लड़के और एक अंकल थे .हम सब लोग अजनबी थे .कोई किसी से बात नही कर रहा था .गरीब रथ पुरी एसी है .रेड और व्हाइट रंग की गरीब रथ में १५ डिब्बे थे .ट्रेन के चलते ही एसी ऑन हो गया ।मेरी उपर वाली सीट थी.कॉलेज में होली खेलने के कारन थोड़ा थकान थी,इसलिए ऊपर जाकर मैं सो गई .मेरे साथ के यात्रियों में एक लड़का था जो थोड़ा चंचल स्वभाव का था .वो भी अपने कॉलेज से होली खेल कर आया था .जिसके कारन उसे सर्दी हो गई थी.वो भी मेरे सामने वाली सीट पर लेट गया .मैं अपने फ्रेंड से फ़ोन पर बात कर रही थी .तभी उसका भी फ़ोन आया .वो अपने छोटे भाई से बात कर रहा था .की वो सोच रहा है की गाड़ी ले ले .इस बार वो अपने पापा से इस बारे मैं बात करेगा .पहले उसने बड़ी -बड़ी गाडियों के नाम लिए फ़िर अंत मैं बाईक पर आगया .मुझे उसकी बात सुनकर हसी आई पर मैंने उसे जाहिर नही होने दिया.वैसे एसी ट्रेन में मेरा ये पहला सफर था.लेकिन मुझे पता था की एसी ट्रेन मैं कम्बल और टाइम से खाना ,नास्ता मिलता है.और मजे की बात ये थी की मेरे साथ बैठे कई लोग का ये एसी से पहला सफर था क्योकि किसी को भी किसी और गाड़ी का तिक्कत नही मिला था .और गरीब रथ की ये तीसरी या चोथी यात्रा थी डेल्ही से बनारस की.क्योकि वो २ मार्च को ही पटरी पर लायी गई थी.नई ट्रेन का नयापन झलक रहा था.अन्दर -बहार से ट्रेन साफ सुथरी थी .सब लोगो अपने -अपने सीट पर बैठ कर नास्ता पानी के लिए पेंट्री वालो का इंतजार कर रहे थे .तभी मेरे सामने वाली सीट बार बैठे उसी लड़के को सर्दी लगने लगी वैसे सर्दी तो सभी को लग रही थी .वो निचे उतरा और लोगो से पूछा भइया हम सुने थे की एसी ट्रेन मैं कम्बल और नास्ता , पानी सब टाइम पर हाजिर होता है यहाँ २ घंटे हो गए न तो कम्बल वाले दिखे न ही चाय पानी वाले .ऊपर से एसी चला दिया है .वो उठा कम्पार्टमेंट से बहार जा कर एसी ऑफ़ कर आया उसके इस कम से सब को रहत मिली क्योकि सब लोगो को ही ठण्ड लग रही थी .अभी सब लोगसोच ही रहे था की क्यो पेंट्री वाले नही आ रहे तब तक टीटी साहब आते दिखे .उनके आते ही उसी बन्दे ने झट से पूछा सर कम्बल और चाय पानी मिलेगा .टीटी ने ताका सा जवाब दिया .नही मिलेगा क्योकि पुरे १५ डिब्बे की ट्रेन में केवल ६० कम्बल ही है.ये सुनकर तो सारे लोगे चकित रह गए वो बंद फ़िर बोला जब कम्बल नही मिलेगा तो हम आप को टिकट भी नही देंगे .पैसा देकर भी खाने पिने और ओड़ने के सामान के लिए तरस रहे है .इससे बेहतर होता की पैसेंजर से जाते कम से कम इतना पैसा तो नही लगता ।आप कम्बल नही दिलाएंगे तो कोण दिलवाएगा .टीटी ने कहा जा के लालू जी से कहिये की वो आप को कम्बल दे .मेरा काम टिकट देखना है न की कम्बल और खाना बाटना टीटी की ये बात सुनकर मेरे ही कम्पार्टमेंट में बैठे अंकल को गुस्सा आगया .उन्होंने टीटी को कहा ये बताईये की लालू जी आप के नोकर है या आप लालू जी के जो वो यहाँ आकार हमे कम्बल देंगे जरा अपने सुपरवाईजर का नम्बर देना उनको बात दूँ की अब लालू जी ट्रेन में कम्बल और चाय पानी की जिमेदारी संभाले.वो अंकल सरकारी ऑफिसर थे .टीटी उनकी बात सुन कर सॉरी सर मेरा मतलब ये नही था कहने लगा तब उन्होंने कहा जाओ अपने सीनियर को बुलाकर लाओ तुमसे टिकट कोई चेक नही कराये गा .टीटी चुप चाप चलता बना .थोडी दर में एक उर टीटी के साथ हमारे पास आया .फ़िर सब लोगो ने चुप -चाप टिकट दिखा दिया .टीटी के आने के पहले ही मेरे कम्पार्टमेंट के पांचो लड़के खाना लेने चले गए थे ,पेंट्री १५ वें डिब्बे में थी .वह से एक कंटेनर खाना लेकर वो लो ३० मिनट में आए करीब रात के १०.३० हो रहे होंगे .फ़िर सबने खाना खाया .खाने में वेग बिरयानी था .चावल कचे थे सभी ने थोड़ा सा खा के .और जो डिब्बे हम लोगो ने जयादा ले लिया था उसे हमारे डिब्बे में खाना न पाने वालो को दे दिया गए .इसके बाद हम सब लोबात करने लगे की ये सफर जिंदगी भर याद रहेगा .अब कभी खाना , पानी और कम्बल के बिना किसी सफर पर नही जायेंगे .फ़िर सब लोग इस बात से उबरने के लिए लैपटॉप मैंने डेल्ही ६ देखने बैठ गए थोड़े देर बाद सभी अपनी -अनपी सीट पर जा कर लम्बी तन कर सो गए .सुबह उठे तो कुछ लोग जा चुके थे .बस बनारस जाने वाले लोग ही बचे थे .फ़िर मैं सीट से निचे आई एक कप चाय किस्मत से मिल गई .फ़िर उन्ही अंकल से रात के मेड पर बात होने लगी .उनसे हम लोगो ने कहा इसका उपाय क्या है तो उन्होंने कहा उपाय तो है की ट्रेन से उतर कर अपनी प्रतिक्रिया रेलवे की नूत बुक में लिखे लिकिन कोई ऐसा करता नही समस्या होती है उसे झेलते है फ़िर भूल जाते है ऐसा नही होना चाहिए हम लोगो को उससे नोट बुक मंगा कर अपनी शिकायत लिखनी चाहिए थी ये और बात है की वो हमे नोट बुक लाकर नही देता .
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जब लिखने के लिए पर्याप्त समय लिया है तो फिर पोस्ट करने में हड़बड़ी क्यों? नमूने के लिए कुछ वाक्यांश नीचे दिये गये हैं जो आपकी इस उम्दा रचना का स्वाद बिगाड़ रहे हैं।
ReplyDeleteडेल्ही से बनारस ? दिल्ली से बनारस में क्या हर्ज ?
होली की छुटी
सीट फुल थी
मैंने मेरे जीमेल से
मुझे छोड़ कर ८और लोग
वेग बिरयानी
चावल कचे थे
सीट से निचे
रात के मेड पर ?
लोगो
नूत बुक
भूल जाते है