Thursday, March 26, 2009

चुनाव का संदर्भ और कुछ सवाल

चुनाव आ रहे हैं....फिर से वोट मांगने का सिलसिला शुरू हो गया है.....फिर योजनाओं और घोषणाओं की बौछार हो रही है। ...कितनी अजीब बात है न ....जब चुनाव होते हैं तो नेता दयनीय स्थिति में होते हैं, लेकिन जैसे ही वो सत्ता में आते हैं, आम आदमी उस स्थिति में आ जाता है।अभी तक के सभी चुनावों में कम से कम इसकी कुछ तस्वीर तो साफ़ थी कि कौन साथ है और किन नेताओं को आप साथ में काम करते देखना चाहते हैं लेकिन इस बार यह स्थिति कुछ ज्यादा ही अजीब हो गई है। नेतागण चुनाव होने से पहले ही कई मामलों में अलग लग रहे हैं। एक तो हर दिन कौन किसके साथ जा सकता है इसकी संभावनाएं देखने सुनने को मिलती हैं लेकिन अगले दिन कुछ और ही हो जाता है। कहना मुश्किल है कि कौन किसकी टीम में अंत तक टिकेगा।
अनिश्चितता के इस माहौल में इन नेताओं की चिंता के विषय पर भी शक हो रहा है। ऐसा लगता है कि गठबंधन लोगों के हित में नहीं निजी हित में बनाये जा रहे हैं। तभी इन्हें सिर्फ़ अपनी अपनी पतंगों कि चिंता है। जो छोटी पतंगें हैं, वे इस बार ज्यादा तादाद में दिख रही हैं इसलिए बड़ी पतंगों को ख़ुद को टिकाने से पहले उनसे बचना पड़ रहा है। हर कोई ज्यादा से ज्यादा पतंगों को अपनी ओर करना चाहता है, लेकिन ये चुनाव का वसंत है और वसंत के समय कौन किसकी पतंग काट दे, कहा नहीं जा सकता। वैसे भी जो पतंग जिस पतंग के ज्यादा पास हो तो सबसे नज़दीक होने के कारण सबसे ज्यादा उसी के कटने की संभावनाएं रहती है।
इस बार कुछ और बातें भी हैं । जैसे भाजपा नेता वरुण गाँधी के साम्प्रदायिक भाषण के ख़िलाफ़ चुनाव आयोग का फ़ैसला, उन्‍हें चुनाव में टिकट ना देने की बात कहना और उन पर नजर रखने के लिए उनके पीछे सरकारी कैमरा लगाना- ये कुछ ऐसी बातें हैं जिनसे आयोग की विश्‍वसनीयता बढ़ी है। वरूण के प्रति आयोग की यह सख्ती बाकी नेताओं के लिए भी एक सबक है। इस बार किसी को भी वोट देने से मना करने के विकल्‍प पर भी इस बार ज्‍यादा खुलकर चर्चा हो रही है। हालांकि भारतीय राजनीति में इस विकल्‍प को आजमाने की कम ही संभावना है।

2 comments:

  1. bhajpa apne pichhle track par fir se chal padi hai.aur communalism ki rajniti ek bar fir se uttar pradesh mein relevent ho sakti hai.es samay bhajpa u.p. mein hashie par hai. aur vahaaan koi pradesh star ki leadership bhi nahi hai.agar es bar bhajpa apna sikka nahi chala pati to agle paanch salomein u.p. mein uska safaya bhi ho sakta hai.fasivadi taakton ko satta mein na aane dene ki muhim chalayee jani chahiye.

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  2. apne desh ki rajniti jugadd par chalti hai.jiska jugadd jiske sath baith jaye .rahi baat partiyon ki to aaj sabhi partiyon ki vichardhara ek ho gayi hai .isliye to unhen apne sath janta ko lane ke liye bhadkau bhasan ka ya hinsa ka sahara lena padta hai.kabhi paise se to kabhi sharab pilakar logo ke vote liye jate hai.

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