8 मार्च महिलाओं के लिये एक पर्व त्योहार का दिन है। यह दिन महिलाओं के अधिकारों का दिन है। इस दिन गांव, कस्बों और शहर की महिलाएं अपने अधिकारों की रक्षा के लिये धरना – प्रदर्शन करती हैं। महानगर की महिलाएं ठीक इसके विपरीत महिला दिवस मनाती हैं। वे न्यूज चैनल और अखबार के माध्यम से यह जानने की कोशिश करती है कि कौन सा मॉल में क्या छूट दी जा रही है। जहां से सौंदर्य प्रसाधन और साड़ियां खरीदी जा सके।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है। आज महिला कौन और किसका दिवस। यह दिवस महिला को उनकी पहचान दिलाने के लिये नही मनाया जा रहा, जो दिन प्रतिदिन खो रही है। यह भी कहा जा सकता है कि महिला दिवस अब तो केवल गांव, कस्बों और कुछ शहरों मे ही मनाया जाता है। महानगर में इसका कोई औचित्य ही नही रहा। महिलाओं को अपने अधिकारों की रक्षा से ज्यादा अपने सजने संवरने पर अधिक ध्यान है। महानगर में कुछ जगहों में भले ही महिला दिवस से संबंधित सेमिनार का आयोजन हो जाये। जिसमें कुछ प्रतिष्ठित महिलाएं भले ही सभा को संबोधित कर महिला दिवस पर दो शब्द कह दें। इस तरह महिला दिवस की औपचारिकता पूरी हो जायेगी। न्यूज चैनलों को एक दिन की बड़ी खबर मिल जायेगी। दूसरे दिन अखबारों में छह से आठ कॉलम का समाचार छप जायेगा। लेकिन इससे महिलाओं को मिलेगा क्या।
महिला दिवस साल में एक बार मनाते है। इस बहाने कुछ विशेष और प्रतिष्ठित महिलाओं को समाज के सामने महिला रोल मॉडल के रूप में प्रस्तुत कर देतें है। दर्शक देख और सुन कर ताली पीट देते है। इससे महिलाओं को मिला क्या। साल के 364 दिन जिस महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है, उसे सिर्फ और सिर्फ एक दिन पूजा जाता है। एक दिन महिलाओं को पूजा कर क्या हासिल कर लेगा यह समाज और सिस्टम।
आज बाजारवाद अपना वर्चस्व कायम कर चुका है। इसका सॉफ्ट टारगेट (माफ कीजियेगा) महिला ही है। आज हर उत्पादन के विज्ञापन में महिला की ही अहम भूमिका है। बाजारवाद ने जिस तरह उत्पाद को बेचने के लिये सेक्स का सहारा लिया है, जिससे महिला की छवि को भी उत्पाद बना दिया गया है। लड़कों का बॉडी स्प्रे हो या बाईक, सिर्फ सेक्स को ही बेचा जा रहा है।
आज यह सवाल सामने आ गया कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस में महिला कौन और किसका दिवस। आधुनिकता के दौर में एक आदर्श महिला का मापदंड क्या होगा। जींस पैंट पहनने वाली या गांव के पनघट से पानी भरकर लाने वाली। जो अपने को आदर्श महिला समझती है वो महिला दिवस में शॉपिंग करने से फुर्सत नही पाती। और जो अपने को गंवार समझती है वो इस दिन अपने अधिकार के लिये हाथ में झंडा लिये सड़क पर तो उतरती है। पहले यह तय कर लेना होगा कि महिला कौन और किसका दिवस उसके बाद महिला दिवस की बात की जानी चाहिये।
आपके आलेख में बहुत सी रूढ़ छवियां हैं। इन्हें स्टीरियो टाइप भी कहा जाता है। हर समाज में महिला, पुरूष के विविध रूप हैं, भूमिकाएं हैं, उनमें से कुछ शहर के हो सकते हैं और कुछ गांव या कस्बे के भी। सबकी भूमिकाएं एक जैसी नहीं हैं और उनकी चुनौतियां भी समरूप नहीं हैं। यह मानकर चलना कि शहर में सब गलत है और गांव में सब ठीक है या गांव के लिए लड़ाई ज्यादा जरूरी है शहर में तो किसी तरह के संघर्ष की जरूरत नहीं है- उचित नहीं लगता। अंतर इतना सफेद या स्याह होता तो समस्या सुलझाने में कठिनाई ही नहीं होती। दरअसल, समस्या की जटिलताओं को जान समझ कर अपने निर्णय सुनाने चाहिएं।
ReplyDeleteअगर आप जैसे युवा पत्रकार ये समझ ले की केवल एक दिन को विशेष मान लेने से कुछ नहीं होता तो सच में ये प्रगति की ओर बढाया गया एक कदम होगा. महिलाये भी जानती हैं की केवल एक दिन सेलेब्रेट करने से उनकी बरसों की गुलामी ख़त्म नहीं होगी. और महिला चाहे महानगर की हो या गाँव की सब की कहानी एक जैसे ही हैं. ऐसा नहीं है की महानगर की महिलाओं क लिए ये सजाने सवारने का दिन भर है. दरशल हमारे महानगर सत्ता का केंद्र हैं और बदलाव की बयार यहीं से गाँव की औ जाती हैं . isliye अगर महानगर मैं mahila दिवस को लेकर karyakaram aayojit किये जाते हैं तो inmai उन mahilon की awaaz भी shamil होती है jisse आप आप toor पर नहीं sunte!!!
ReplyDeletepyare sathi mahila kaun se aapka matlab saaf samajh nahi aa raha.plz mahila issues ke prati apni samajh ka dayra thoda aur badayen.jis se kuchh sarthak baat ki ja sake.
ReplyDeleteaapke vichar jankar nirasha hath lagi.ek to ham aise vishyon par sochte he sirf mahila divas par hain.aur ye bahut badi problem hai ki madia me jane vale ya pade likhe log bhi bade bade issues par itna kam sochte hain.
अपने लिखा है-"महानगर में इसका कोई औचित्य ही नही रहा। महिलाओं को अपने अधिकारों की रक्षा से ज्यादा अपने सजने संवरने पर अधिक ध्यान है।"
ReplyDeleteकृपा कर आप बताने का कष्ट करें-
१.सजने के लिए महिलाओं को ही किसने और क्यों चुना है?
२.आदमी के श्रृंगार(शादी के बाद) के कितने आभूषण होते हैं?
३.आदमी के बाल क्यों लम्बे-लम्बे नहीं हुआ करते?
४.आदमियों को क्यों कभी भी घूंघट की जहमत नहीं उठानी पड़ी है?