Thursday, March 26, 2009

'बालमजदूरों को मुक्‍‍त कराना काफी नहीं, पुनर्वास करे सरकार'

दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को इस बात के लिए फटकार लगाई है कि उसने बाल मजदूरों को मुक्त तो करा दिया है लेकिन उनके पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की है। दरअसल, हमारे देश में आधी समस्याओं की जड़ यही बात है की हम किसी ख़राब चीज़ को हटाने के लिए योजना तो बना लेते हैं, लेकिन उसका सकारात्‍मक विकल्प हमारे पास नहीं होता। कोई विकल्‍प है भी तो सरकारें नीतियाँ बनाने से पहले इस बारे में कोई ठोस रणनीति नहीं बनाती और नतीजा होता है कि जिन लोगों को आपने नया जीवन देने के नाम पर समस्याओं से मुक्त कराया होता है, उन्हें किसी और इससे बुरे हालत में जीना पड़ता है। ऐसे में आप उन्हें कुछ दे भी नहीं पाते और उनसे उनके पिछले साधन भी चीन लेते हो।
सरकार की ऐसी ही एक नीति पिछले दिनों सामने आई जब कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान साफ़ दिल्ली दिखाने के लिए शहर के भिखारियों को गन्दगी की तरह बाहर करने की बात की जा रही थी, लेकिन तब भी सरकार के पास उन्हें कहाँ ले जाना है और क्या काम देना है - इसके बारे में कोई जवाब नहीं था। हिंदुस्तान टाईम्स अखबार में छपे एक लेख के अनुसार पुनर्वास के नाम पर भिखारी बच्चों को एक ऐसे कमरे में रखा जाता है जहां बदबू के कारण दो मिनट खड़े रहना भी मुश्किल होता है। उन्‍हें बाहर निकलने की छूट नहीं होती। शायद उन बच्चों को लगता होगा कि इससे तो अच्छे हम सड़कों और फुटपाथ पर ही थे। कम से कम वहाँ कोई ऐसी जेल तो नहीं थी।
इसी तरह इस बार दिल्ली के ६० हज़ार बाल मजदूरों में से पाँच सौ को मुक्त तो करा लिया गया है, लेकिन सरकार के पास उनके पुनर्वास की कोई योजना नहीं है। शायद इसीलिए कोर्ट ने सही कहा है की सिर्फ़ उन्हें आज़ाद कराने से कुछ नहीं होगा, उनके लिए कोई व्यवस्था भी होनी चाहिए। दरअसल सरकार को ये देखना चाहिए की बाल मजदूरी का कारण क्या है और ये क्यों की जाती है। कोई भी माँ-बाप अपने बच्चों से खुशी से काम नहीं करवाते और अगर बच्चों को परिवार की मजबूरियों के दबाव में आकर या अपने माँ-बाप के न होने के कारण उन्हें अपने भाई बहनों को पालने के लिए काम करना पड़ता है तो इसके पीछे भी कई कारण हैं।
बाल मजदूरी का सबसे पहला कारण है गरीबी। जिससे जुड़े बाकी कारण हैं बेरोज़गारी और अशिक्षा । दिल्ली में बाल मजदूरों की एक बड़ी संख्या उन बच्चों की है जो सड़क के किनारे ठेले लगाते हैं, दुकानों में सुबह से शाम तक काम करते हैं। इसमें सबसे बड़ी तादाद बिहार और उसके आस पास के राज्यों से काम कराने के लिए लाये गए बच्‍चों की है।
एक शोध के दौरान हमने बेर सराय और मुनिरका में ऐसे कुछ बच्चों से बातचीत की थी। हमें जानकारी मिली कि बिहार जैसे राज्यों से लाये गए बच्चों को एक कमरे में रखा जाता है और उनसे सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक काम करवाया जाता है। अगर बाल मजदूरी स्‍वीकृत ही है तो इन बच्चों की शिक्षा और रहने के लिए सरकार को कोई व्यवस्था करनी होगी। लेकिन हम जानते हैं कि बाल मजदूरी कराना गैरकानूनी है। इसलिए आवश्‍यक है कि बच्चों को यहाँ लाने वाले ठेकेदारों से सख्ती से निबटना चाहिए। उन परिवारों की गरीबी हटाने की कोशिश की जाए जहां से ऐसे बच्‍चे आते हैं। बच्चों को अपने घर या दफ्तर में काम पर रखने वाले बड़े लोगों की मानसिकता बदलने की जरूरत है। इससे न केवल उन बच्चों का शोषण रुकेगा बल्कि उन्हें एक बेहतर ज़िन्दगी मिल सकेगी।
इस तरह से कुछ बच्चों को काम से निकाल लेने से किसी समस्या का हल नहीं होगा। कोई भी समस्या अगर समाज में पनपती है तो उसके पीछे कई कारण होते हैं। सरकार में बैठे लोगों को केवल अपने रिकॉर्ड में दिखाने के लिए या फिर कहने को समाज सेवा के लिए इस तरह अधूरे काम नहीं करने चाहिए। इसके लिए उसे समस्या की तह तक जाना चाहिए और जड़ में बैठे कारणों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए, बड़ी समस्या ख़ुद सुलझ जायेगी। यह कोई ऐसी समस्या नहीं है जो रातोंरात पैदा हुई है और न ही ऐसी कि एक क़ानून या नीति बनाने से या कुछ बच्चों को काम से छुडा लेने से ख़त्म हो जायेगी। इसमें काफ़ी समय लगेगा । सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए। आपका क्या कहना है?

1 comment:

  1. शीर्षक देना आवश्‍यक है।

    ReplyDelete