जो लोग होली की परम्परा से वाकिफ होंगे वे इस बात को जानते होंगे की , होली पर त्योहारी देने का चलन होता है । गावों और छोटे शहरों में आज भी लोग एक दूसरे पर आश्रित रहते है । होली के त्यौहार पर कपड़ा धोने वाले ,बाल काटने वाले , बर्तन माजने वालो को मिठाईया और कुछ रूपये देने की पुरानी परम्परा है । यह सभी जानते है कि आज भी देश कि अधिकांश जनता के लिए होली के कोई मायने नही है । गरीबी से जूझ रही ७० प्रतिशत आबादी कि ज़िन्दगी का हर पहलू बदरंग है । सामाजिक असमानता चरम पर है । लोगो में नफरत ,हिंसा बढ रही है । ऐसे में यदि होली के बहाने कुछ लोग मिठाईया खाने या भोजन के लिए कुछ रूपये पा जा रहे है , तो यह किसी भी प्रकार अनुचित नही है ।
मीडिया को इस घटना के मद्देनज़र मुफलिसी में जी रहे लोगों के जीवनयापन को दिखाना चाहिए । पत्रकारिता का काम सभी को मंच देना होना चाहिए । याद रखिये यदि एक बार वंचित वर्ग के सब्र का बाध टूटा तो लोकतंत्र कि धज्जिया उड़ जाएँगी । फिर ना रहेगा सिविल सोसाइटी और न रहेगी पत्रकारिता। बताने से पहलेचेतने में ही सब कि भलाई है । हर पहलूँ के दोनों पक्ष दिखाकर उसपर निर्णय करने का अधिकार जनता के पास रहने दीजिये । क्योकि लोकतंत्र में जनता ही सबकुछ है ।
अपने सही कहा की ऐसे कोई रीती रिवाज़ अवस्य ही होगी जब गरीबो को इस तरह पैसे और मिठाई देते है लेकिन सिर्फ नेताओ को ही कियो ऐसे हरकते suzti है और वो भी तब जब चुनाव नजदीक हो क्या पुरे साल उन्हें गरीब लोग नज़र नहीं आते है? क्या बाकि समय में त्योहार नहीं होते है? लेकिन ऐसे समय पर वो ऐसा करते है और अपने आपको mahan साबित करते है.
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