Friday, March 6, 2009

अरे भैय्या इससे अच्छा तीन रुपया की टिकेट ही ले लेता!


अरे भैय्या! "रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाए " तो सुना था लेकिन "इज्जत जाए पर तीन रुपया न जाए" ये पहली बार सुना है। राम जी की रीत कौन अपनाता है तो पता नही लेकिन कुछ महाशय तीन रुपया और अपनी इज्जत से जुआ खेल कर दूसरी रीत अपना लेते है। इस बार मुलाकात एक ऐसे ही महाशय से हो गई जो इसी धुन पर चल रहे थे।भाईसाहब बस में चढ़ते ही पीछे वाली सीट पर ऐसे बैठे जैसे उनके पिताजी की सीट हो। शरीर जरुरत से ज्यादा चोडा करके, पाँव फैलाकर! वैसे इस 24-25 साल की ढिंग का शरीर लंबा चोडा था! ससुरा खाते पीते खर का लग रहा था। हांजी बिल्कुल ठीक समझे वो खूब खाए हुए था और खूब पिए हुए भी था। आँखे खरगोश की तरह लाल थी! अचानक बाउजी और भी अग्रेस्सिव हो गए। ये मजाल हुई बस के कंडक्टर की जिसने उसकी तरफ़ देख कर टिकेट की बात कर दी। ढिंग ने बड़ी ही सहज तरीके से कहा 'चल आगे चल!' लास्ट टाइम ये सहज तरीका मैंने एक सन्यासी बाबा में देखी थी। कंडक्टर की भी मति मरी गई थी की उसने उससे अपनी मासूम आँखों से घूर दिया। इतना ही नही उसने दोबारा घूर कर टिकेट मांग ली, कहा की नही भाईसाहब, ऐसे नही चलेगा, टिकेट तो ले लो।ढिंग ने उससे समझाया की, देख घूर मत लेकिन वो नही माना।ढिंग उठ खड़ा, गुर्राया , कंडक्टर की गिरिबान भी पकड़ ली। अब तो भैया शामत आ गई थी उस ढेड फुटियाकंडक्टर बबुआ की। ढेड फुटिए ने जैसे ही गिरिबान छोड़ने की अपील की, उस पर थपडो और घुसो की बरसात हो गई । घुसेड दिया गया उसे बस की सीटो में। बस में दुर्भाग्य से थोड़े ही लोग थे लेकिन उन भले लोगो ने बचने की कोशिश की । लेकिन उनका मनोरंजन उनकी कोशिश पर भारी पड़ गया। मजबूर होकर ड्राईवर को बस रोक कर ख़ुद ही युद्ध विराम कराने आने पड़ा।लेकिन वो ढिंग तो उसे छोड़ ही नही रहा था। वैसे बीच बीच में ढेड फुटिया ने भी हाथ पैर मरने में कमियाबी हासिल की। फिर क्या था ड्राईवर भाईसाहब ने 100 नम्बर पर फ़ोन कर दिया। अब उस ढिंग के पैर बस के गेट के बाहर की खिसकने लगते है। अगले ही पल वो बस की बाहर भागने लगा। ढेड फुटिया उसके पीछे। ढेड फुटिए के पीछे ड्राईवर। अब ढेड फुटिए में दम जोश आ गया।ड्राईवर ने कुछ दुरी तक तो पीछा किया । फिर वापस आ गया। और बस चला दी। 2 किलोमीटर दूर जाकर अचानक बस रुकी। गज़ब का सीन था, ढेड फुटिए ने एक भले जनाब की मदद से उस ढिंग को पकड़ लिया था और सीना चोडा कर खड़ा था। ड्राईवर के बस से उतरते ही उसने उस ढिंग को मारना शुरू कर दिया। ड्राईवर और बस के दो जवान हाथो में भी खुजली मची और चारो ने मिलकर उसे धोना चालू कर दिया। धे घुसे, धे लाते।हीरो रहे वो दो नोजवान। उनको ये बीत्तेक्स मरहम मस्त रास आई। अपना मिशन पूरा कर बस की बारात उस 3 रूपये के मजनू को लावारिस की तरह रोड पर छोड़कर चल पड़ी।चलती बस में एक तरह का खुशी का मंज़र नज़र आया और लोगों की मुंह से खुशी की कलियाँ खिलने लगी मानो अश्वमेध का घोड़ा पकड़ लिया हो और उसके आका को युद्ध में हरा दिया हो। खासकर वो दो लड़के।इसी बीच अचानक बस रुकी और अगले ही पल वो कंजूस, महानुभव् , 3 रुपया का आशिक, डींग बस केअंदर आ खड़ा हुआ। ललकारकर लेकिन दबी आवाज़ में बोलने लगा वो दो लड़के कहा है! वो दो लड़के कहा है! वो दो लड़के वही उसके पास बैठे थे। लेकिन वो शराबी उन्हें पहचान नही सका। कहने लगा कोई बात नही मोबाइल तो में निकलवा लूँगा! यह कहकर वो बस से उतर गया।

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