Monday, March 23, 2009

ये कैसी मंदी!!!





अन्नपूर्ण की पोस्ट पढ़ कर लगा की हाँ ! ये सच है की मंदी ने नौकरियों को बिलकुल निगल लिया है मगर हाल की ख़बरों में भारतीय कंपनियों की तिमाही रिपोर्ट देखने से पता चला की अब तक भारत की किसी भी कंपनी को घाटा नहीं सहना पड़ा. बिज़नस में मैं थोडा कमजोर हूँ पर मोटा मोती बातों को समझती हूँ. ये बात पूरी तरह सच है की मंदी की मार से नौकरियों मैं भारी कमी आई है और कैम्पस प्लेसमेंट बुरी तरह प्रभावित हुआ हैं. पर ये भी एक सच है की हिन्दुस्तान की किसी भी कंपनी ने अपने को दिवालिया घोषित नहीं किया है और ऐसा भी नहीं की उन्हे प्रोफिट न हुआ हो. फर्क इतना है की उनके प्रोफिट का ग्राफ थोडा झुका हैं. यह सच हमें ये सोचने पर मजबूर कर देता है की मंदी किसके लिए है?? प्रोफिट शो करने वाली कंपनी के लिए की नौकरी न पाने वाले पढ़े लिखे बेरोजारों के लिए. मैं आई आई टी और आई आई एम्स की बात नहीं करुँगी क्यूंकि मेरा उनसे कोई सीधा सरोकार नहीं है. पर मैं आई आई ऍम सी की बात जरुर करुँगी. यहाँ भी मंदी की मार से बेहाल बच्चे नौकरी की आस मैं भटक रहे हैं. लेकिन एक ऐसा भी कोर्स है जहाँ नौकरियां बरस रही हैं. अंग्रेजी पत्रकारिता मैं ४८ मैं से ३६ बच्चों की नौकरी अब तक लग चुकी है और लगातार वहां कोई न कोई मीडिया हाउस प्लेसमेंट क लिए आ रही है. ऐसे मैं मन वापस ये सोचने पर मजबूर हो जाता है की क्या ये हिंदी अंग्रेजी का भेद तो नहीं. खैर जो भी हो सच्चाई तो ये है की कैम्पस में चाय वाले और सफाई वाली दीदी सब यही पूँछ रहे हैं की 'आप अभी तक गए नहीं. पहले वाले तो कब के चले गए थे!'
अब उनको क्या बताएं!!!!

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