में चुनाव विश्लेषकों का अनुमान दोनों ही बार कुछ उल्टा पड़ता दिखाई
दिया। चुनावों को लेकर जो समीकरण बनाए जा रहे थे वे कहीं पर सही और कहीं
पर बिल्कुल उलट प्रतीत हुए।
एक जीतने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ी। चुनाव विश्लेषक हरियाणा में
कांग्रेस को 55-60 सीटों पर जीता दिखा रहे थे लेकिन उसे 40 सीटों पर ही
संतोष करना पड़ा। वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में लग रहा था कि कांग्रेस और
एनसीपी की राह आसान नहीं है लेकिन उसने 50% सीटें झटक ली। अरुणाचल प्रदेश
तो शुरु से ही कांग्रेस की झोली में था उसे आशाअनुरुप ही विजय मिली।
आखिर क्या कारण था कि सरकार की लाख कमियों और नाकामयाबियों के बावजूद
जनता ने उन्हें दोबारा सत्ता में भेज दिया।
दरअसल नतीजों के अनुसार कांग्रेस जीती नहीं बल्कि विपक्ष हार गया।
कांग्रेस ने केवल विपक्ष के बिखराव का ही फायदा उठाया है। कांग्रेस की
जीत एक तरह से जनता के समक्ष विकल्पों का अभाव का ही परिणाम है जनता के
पास और कोई ऐसा विकल्प नहीं था जिसे वह कांग्रेस के आगे रख कर विचार
करती। हरियाणा में भाजपा और लोकदल ने गठबंधन तोड़कर कांग्रेस का रास्ता
खुद ही साफ कर दिया और महाराष्ट्र में शिवसेना के गर्भ से निकली मनसे ने
भाजपा- शिवसेना के रास्ते में रोड़े अटका दिए। यही कारण है कि वहां
विपक्ष को पिछली बार से भी 26 कम सीटों से हाथ धोना पड़ा। हरियाणा में
भाजपा ने इस अनुमान के साथ कि अब चौटाला की साख नहीं रही, उससे किनारा कर
लिया लेकिन चौटाला ने 31 सीटें जीत कर परिस्थियों को उलट दिया।
कहने का तात्पर्य है कि अगर विपक्ष चुनावों को लेकर जरा भी सावधान होती
तो शायद तस्वीर कुछ और ही होती।
महेंद्र