Tuesday, March 3, 2009

गुजरात के सीधी गोमा



आज जब दुनिया में पशु-पक्षियों की संख्या दिन-ब-दिन घटती जा रही हो।उनके अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा हो गया हो,ऐसे में सिधी गोमा जनजाति के लोगों की पशु-पक्षियों से लगाव उमींद की किरण जगाती है। जी हां। सिधी गोमा जनजाति के लोगों का नृत्य में वो प्रेम दिखता है।मोर की तरह नाचते है, शेर के जैसे दहाड़ते है।तोता,हिरन, हाथी का अभिनय कर लोगों का दिल जीत लिया।सुरजकुंड मेले में गुजरात से आये कलाकार,जिन्हें सिधी गोमा जनजाति के नाम से जाने जाते हैं। ये मूलतः दक्षिण अफ्रीकी है। जो 8वीं षताब्दी में भारत आये और गुजरात के तटिय भाग पर बस गए। साथ में लयबद्ध गीत संगीत अपनी विरासत में लेकर आए। जिस ड्रम को बजाकर नाचते है उसे जक़ीर बोलते हैं। इनके साजो समान को ब्राजिलियन में बेरीम्बा बोलते है । इसे कलात्मक ढंग से बजाते हुए ये गहरे आनंद में उतरते है। ये इनकी अराधना भी है। धीरे-धीरे संगीत मस्ती के रंग भरता है तो समूह के प्रत्येक व्यक्ति जानवरों का अभिनय कर नृत्य करते है। नृत्य के क्रम ये नारियल भी तोड़ते है। इस गीत को बैठीं ढमाल कहते है। इनका नृत्य संगीत ही ईष्वर की अराधना है। जिसमें स्त्री पुरुष मिलाकर बारह की संख्या में ये कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं।इन्हें मेले के प्रशासन की ओर से एक दिन का 250 रुपये मिलते है। अपने नृत्य संगीत का जादू इन्होनें विदेषो में भी बिखेरा है। सिधी गोमा नृत्य का पहली बार विडियो 2004 में रिलीज किया गया था।ऐसा नहीं है कि ये पूरे वर्ष ये सिर्फ घूम-घूमकर नाच गाने ही करते है। सभी लोग कुछ न कुछ अवश्य करते है।कारपेंटर, दर्जी,किसान,मछली पकड़ना इनका मुख्य व्यवसाय है।


1 comment:

  1. अच्‍छी रपट है। कसी हुई और संतुलित। लिखना जारी रखें। शुभकामनाएं

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