Wednesday, March 4, 2009

उपचुनाव का झटका -मायावती हुयी "मुलायम"



उत्तर प्रदेश के भदोही विधानसभा उपचुनाव में बसपा की हार ने कई सवाल खड़ा किए है । पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के रास्ट्रीय नेता और राज्य सभा सांसद के साथ मै दो दिन के चुनावी दौरे पर गया था। मैंने वहा सुरियावा ब्लाक के लगभग २५ गावों का दौरा किया । जिसमे कई बाते खुल कर सामने आई । इस उपचुनाव में दो लोगो की चर्चा सबसे आधिक थी - पड़ोस के सपा विधायक विजय मिश्रा जिनकी पत्नी भदोही की जिला पंचायत अद्यक्ष भी है । इनके बारे में कई तरह की चर्चाएँ थी , ये बाहुबली है और इनकी जिले में तूती बोलती है ऐसा लोगों का कहना था । विजय मिश्रा पर कई आपराधिक मुक़दमे लगे है । कुछ लोगो का कहना था कि बनारस के व्यापारी रुंगटा अपहरण में प्रयोग की गई गाड़ी इन्ही की थी । ९५ के लगभग भदोही में हुए शुक्ला वकील हत्याकांड में लिप्त राजपूत बाहुबली को जेल भिजवाने और उसपर कई मुक़दमे दायर करवाने के कारन विजय मिश्रा ब्रह्मण स्वाभिमान के प्रतीक बन गए । इस बार के उपचुनाव में सपा प्रत्याशी मधुबाला पासी को टिकट दिलवाने में विजय मिश्रा का ही योगदान था ।
वही दूसरी ओर बसपा का मोर्चा पड़ोस के विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री रंगनाथ मिश्रा ने संभाला था । रंगनाथ मिश्रा पहले बीजेपी के कद्दावर नेता थे लेकिन बीजेपी के पतन के कारण उन्होंने बसपा को नया घर बनाया। रंगनाथ मिश्रा के बारे में लोगो ने बताया की पहले बहुत सहयोगात्मक थे , लोगो के सुख दुःख में सामिल होते थे , कार्यकर्ताओं सहित जनता के लिए उत्तरदायी थे । लेकिन मायावती सरकार में हर महीने रूपया देने के कारण वसूली में सलिप्त होगये है । जिससे क्षेत्र में नकारात्मक प्रभाव पड़ा है । कोटेदारों , ठेकेदारों , प्रधान आदि लोगों पर उपचुनाव में बसपा को जिताने के लिए दबाव बनाने के कारण रही सही प्रतिष्ठा भी खो दी । मंत्री बनने के बाद पहली बार भदोही के दौरे पर रंगनाथ मिश्रा ने १६ घंटे बिजली देने की बात कही थी , इसमे वो पूरी तरह विफल रहे । जनता में रोष का एक कारण ये भी था । यहाँ के लोगो ने बताया की मिर्जापुर से पत्थरों को काट कर लखनऊ में पार्क और मूर्तियाँ बनवाई जा रही है , जबकि कालीन उद्योग के पतन से बेहाल लोगो की सरकार कोई खोज ख़बर नही ले रही है । बसपा के स्थानीय सांसद भी क्षेत्र को लेकर बेहद उदासीन रवैया अपना रहे है ।
नसीमुदीन सिद्दीकी चुनाव के १० दिन पहले ही बनारस सिर्किट हाउस में डेरा जमाये थे । मुस्लिम बाहुल्य भदोही में लगातार दौरा कर रहे थे लेकिन बीएसपी को अपेक्षित परिणाम दिलाने में विफल रहे । मायावती के भदोही चुनावी जनसभा में मंच सहित सभी जगहों पर बसपा के घोषित प्रत्याशी सूर्य मणि ही छायें रहे । लोगो का कहना था की यह विधान सभा के प्रत्याशी का चुनाव है या लोकसभा के । सूर्यमणि क्षेत्र के ही नही वरन अन्तर रास्ट्रीय स्तर के कालीन व्यापारी है । अरबपति व्यापारी को टिकट मिलने से बसपा के ही नही वरन आम लोग भी नाराज है । उनका कहना है की क्या बसपा में नेताओं का आकाल पड़ गया है ? अथवा जिसके पास रूपया नही है वो बसपा का टिकेट नही पा सकता? जिले से सटे दो अन्य ब्रह्मण नेताओ काबीना मंत्री राकेशधर त्रिपाठी और नकुल दुबे को मायावती के बार बार अपमानित करने की उड़ती ख़बर से ब्रह्मण मतदाता नाराज़ था । जिले के कुछ प्रमुख ब्रह्मण नेता जो इस समय बसपा में है , उनका कहना था की दरी पर दलितों के साथ बैठना और मायावती का पैर छूना ब्राह्मणों का अपमान है , सतीश चंद्र मिश्रा के बारे में पूछने पर जाति विशेष के लोगो का आक्रोश खुल कर सामने आ गया, लोगो ने बताया कि उनके परिवार और रिश्तेदार के २५ लोग लाल बत्ती का लुफ्त उठा रहे है ।
चुनाव प्रचार के दौरान सपा के प्रदेश अध्यक्ष और मुलायम सिंह के छोटे भाई शिवपाल यादव और विजय मिश्रा कि तलाशी लेना और सभा न करने से जनता कि सहानभूति भी सपा के पाले में गई । कुल मिलकर आपसी समस्यायों से जूझ रही सपा के लिए यह उपचुनाव वरदान साबित हुआ । मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में जीत मुस्लिम मतों का विश्वास सपा में होने कि पुष्टि करता है । सपा की विजय में पार्टी की रणनीति का बड़ा योगदान रहा । मुस्लिम जिला अद्यक्ष , ब्रह्मण रणनीतिकार विजय मिश्रा सहित पार्टी के सभी रास्ट्रीय नेताओ के दौरे से सपा ने विजय श्री हासिल की । बसपा के लिए यह चुनाव खतरे की घंटी का काम कर गया । बलिया के संसदीय उपचुनाव में हार के बाद यह बसपा की दूसरी हार है । दलितों की उपेक्षा , पार्को और प्रतिमाओं पर थोक के भावः धन खर्चा करने की प्रवित्ति , बाहुबलियों को टिकट वितरण कर पार्टी कार्यकर्ताओं को नज़र अंदाज़ करने जैसे कई कारन मायावती और उनके रणनीति कारों को मंथन करने के लिए विवश करते है ।

1 comment:


  1. यहाँ बड़े हौसले से आया था, कि कुछ सार्थक पढ़ने को मिलेगा, श्री मशाल जी !
    पर घोर निराशा हुई, एक प्रबुद्ध व्यक्ति से इस प्रकार जातीय समीकरणों की गहन गवेषणा देख कर कैसा लग रहा है, कहने में भी परहेज़ है !
    जो भी हो, लोकतंत्र को विकल्पहीनता के आक्सीज़न पर ज़िन्दा रखे जाने का अच्छा प्रयास है, आपका ब्लाग ।
    इस पोस्ट पर रियलीटी का लेबल हमारे मूकदर्शक होने के यथार्थ का महिमामंडन है ।

    ReplyDelete