Wednesday, March 18, 2009

दिल्ली में बांग्लादेश से आई महिलाओं को सलाम




महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई बहुत पुरानी है।पहले केवल अपने परिवार में ही उसका शोषण सालों से होता था। आज अपने जीवन को जीने के लिए भी उसे शोषण को सहना पड़ता है। ऐसी स्थिति हम केवल उन महिलाओं की देखते है जो किसी बड़े क्षेत्रा में काम करती है।लेकिन ऐसी स्थिति उन महिलाओं की भी है जो दूर से यहां काम करने आती है। ऐसी ही कुछ महिलाएं तुकलकाबाद में बंगलादेष से रहनेे आई है। यें सभी कालकाजी से लेकर चितरंजन पार्क तक पूरी मेहनत से सालों से काम कर रही है फिर भी इन्हें आज भी भारतीय समाज में नहीं अपनाया गया । इनके जीवन की कहानी भी निराली है। अपने परिवार को छोड़कर ये यहां पर जीवन यापन कर रही है। इनमे से कुछ से बात करने पर इन्होने अपने जीवन की परेषानियों को बताया। कलकता के नादीया जिले से आई लक्ष्मी ने अपने जीवन की कथा बताई।इन्हें दिल्ली आए ग्यारह साल हो गए है।दिल्ली में आने के बाद इन्होंने अपने पति को छोड़ दिया था। प्रति माह यह तीन से चार हजार कमा लेती है। जिस पर इन्हें अपनी मां बेटी नेत्राहीन बेटे का गुजारा करना पड़ता है। आज की मंहगाई में अपने परिवार को पालना बहुत ही मुष्किल है। यह केवल छठी कक्षा तक पड़ी है इसलिए चाहती है जो इनके साथ हुआ वह अपनी बेटी के साथ न होने दें। इनकी एक इच्छा है अपनी बेटी की षादी की नहीं बल्कि इनकी बेटी पढ़े ताकि वह जीवन में यह सब न करें। हम कितना भी ठुकराए लेकिन यह हमेषा पुरूषवादी समाज रहेगा।ऐसे कईं हादसे इनके साथ भी हुए है। रात कारनेे देर हो जाने या किसी के घर पर काम करने पर इनके साथ दुव्र्यवहार हुआ।इन सब की षिकायत ये कभी किसी से नहीं करती जिसकी वजह है कि वह आदमी इनके और पीछे पड़ जाएगा।इसका उदाहरण देते हुए बताया कि रात को अकेले आते हुए रास्ते में एक गाड़ी खड़ी होती है जिसमें तीन आदमी आने जाने वाली इन महिलाओं के साथ ज़बर्दस्ती करते है।एक आम लड़की के साथ यदि ऐसा हादसा हो तो वह दुबारा उस रास्ते जाने में हिचकिचाए। लेकिन ये निडर होकर वहां काम करती है। कम उम्र में षादी होने के कारण जीवन में बहुत कुछ इन्होंने अपनी हिम्मत से सीखा है।जीवन में हार न मानना और लड़ना तो सीखा लेकिन सामने वाले से अपने अधिकारों की मांग करना नहीं सीख पाए। यह एक परिवार के साथ बाहर जाना चाहती थी ताकि वहां पर ज्यादा कमा कर परिवार का पालन कर सके।इसमें विडंबना देखिए कि उनका वीज़ा इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि यह एक बंगलादेषी है। एक तो महिला और दूसरी बंगलादेषी आखिर क्यों उनके साथ इस तरह का भेदभाव होता है। कुछ लोगों की गलती की सज़ा उन्हें भुगतनी पड़ती है। यह तो केवल एक ही महिला है ऐसी कईं महिलाएं है जो जीवन गुज़ारने के लिए इन समस्याओं का सामना करती है। पांच साल पहले आई विमला और बीना की यही कहानी है। अपने पूरे परिवार छोटे छोटे वच्चों को छोड़कर वह यहां काम कर रही है। उन्हें कुछ मिले या न मिले बस दिल्ली में सुरक्षा तो ज़रूर मिले। जीवन यापन तो वह मेहनत करके कर लेती है लेकिन उसके लिए सुरक्षा ज़रूरी है।जो उन्हें नहीं मिल पाती। खैर अपने परिवार और बच्चों को छोड़कर उच्च वर्गीय महिला का आना आसान है लेकिन निम्न वर्गीय महिला किस तरह इसमें संतुलन बनाती है ये सराहनीय है।

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