ये क्या हो रहा है?
लोक सभा चुनाव सिर पर है। सभी जगह यह चर्चा आम है कि कौन किसके साथ ताल मेल करेगा, कौन प्रधानमंत्री बनेगा, किसको कितनी सीट मिलेगी आदि। पर एक बात तो साफ़ है कि कांग्रेस अजीब पसोपेश में है जहाँ राजग ने आडवाणी जी को अपना नेता बता दिया है, वही कांग्रेस किसको अपना नेता बताये। कांग्रेस का वैसे तो पुराना तर्क है कि नेता का चुनाव परिणाम आने के बाद होता है। और लोकतांत्रिक पद्धति में ऐसा ही होना भी चाहिए। पर जिस तरह से कांग्रेस बड़े बड़े होर्डिंग्स में राहुल गाँधी को प्रोजेक्ट कर रही है उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं प्रधानमंत्री पद पर कांग्रेस के युवराज को राजा बनने कि तैयारी चल रही है।
खैर इसका अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि देश कि बड़ी-बड़ी विज्ञापन कंपनियां कांट्रेक्ट लेकर प्रचार का ठेका ले रहीं हैं। १५० करोड़ रुपये से शुरू होकर ये ठेका ५०० करोड़ तक जा सकता है। इसे देखकर तो कहा जा सकता है कि यह तैयारी निश्चित ही कठपुतली प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के लिए तो नही ही है। युवाओं के नेता के तौर पर प्रोजेक्ट किए जा रहे राहुल के लिए त्याग की देवी सोनिया ने ज़रूर कुछ अपेक्षित सोच रखा है, नहीं तो राजग के किसी चाल का ज़वाब संप्रग न दे ऐसा नही हो सकता है।
इस पूरे प्रकरण में राहुल का प्रोजेक्शन और प्रचार बहुत कुछ कह रहा है। आने वाला चुनाव निश्चय ही बहुत जटिल है। परंतु जो कुछ भी हो रहा है कांग्रेस और राजग के लिए अच्छा संकेत लेकर तो नहीं नजर आ रहा।
फ़िलहाल राहुल बाबा के लिए "दिल्ली अभी दूर है."
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