कल मैंने बस स्टैंड पर एक बच्चे को देखा जो की केवल पाँच सल् का होगा और अपना पेट भरने के लिए बस के अंडर खेल दिखता है उसे देखकर मुझे ऐसा लगा की क्या अपनी सरकार को कोसकर मेरे काम की इतिश्री हो जाती है क्या
क्या कही न कही इस बात के लिए मे भी दोषी नही हु जो एक बड़ी कंपनी में कम करता हु और पाँच अंक में अपनी तनख्वा लेता हु और उसके बाद देश दुनिया नेताओ को कोसता रहता हूं।
यदि हम सब मिलकर अपनी आय का कुछ हिस्सा ऐसे लोगो के लिए दे दे तो या फिर इन छोटे बच्चो में से किसी एक की जिम्मेदारी ले ले तो हम ऐसे असहाए बच्चो के लिए के कुछ कर सकते है केवल नेताओ को कोसने से कुछ नही होगा।
हम सब अच्छी तरह से जानते है की यदि कंपनी या सरकार मेरे तनख्वा में से थोड़ा भी कम कर दे तो हम लोग ही सबसे पहले हाय तौबा मचा देते है अब सरकार के पास भी कोई पैसो का पिटारा तो है नही के खोल कर ऐसे लोगो को भी मोटी तनख्वा दे दे और लगातार पैसे बात ते रहे क्योंकि हमारे पास हर चीज़ के साधन सिमित है और सबको एक अनुपात में ही सब चीज़ दी जा सकती है जब इतना बड़ा हिस्सा हम जैसे पाँच अंक वाले लोग ही खाते रहेगे तो उन्हें भी क्यों दोष दे जब जिम्मेदार सब लोग है हमे कोई अदीकार नही है किसी और को कोसने का
जब तक हम में से हरेक व्यक्ति समाज के प्रति अपना कर्तव्य नहीं निभायगा, तब तक विषमता बनी रहेगी.
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
पवित्रजी, पहली पोस्ट के लिए बधाई। एक सुझाव है पोस्ट करने सेपहले एक बार अपना आलेख पढ़ लेंगे तो अच्छा रहेगा।
ReplyDeleteशुभकामनाएं
बहुत सही लाइन पकड़ी है भाई साहेब. लेकिन किसी भी समस्या का हल तलाशने से पहले हमें उसके कारणों को भी जानना होगा. नहीं तो विचार ज़मीन
ReplyDeleteपर उतरने की बजाय हवा में ही तैरते रह जायेंगे.
मैंने उस लेख में यह लिखा है की सरकार के पास कोई पिटारा नही होता है की सब को खोल कर बाट दे सिमित संसाधन का बटवारा करना होगा सबको बराबरी देनी होगी
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