Thursday, February 5, 2009
पत्रकारिता में संक्रमण का दौर - संतोष भारतीय
लोकतंत्र के तीन स्तंभों के समकक्ष मानी जाने वाली पत्रकारिता आज संक्रमण के दौर से गुज़र रही है। लेकिन इस दौर को ही सही मान लेना हमारे लिए न्यायसंगत नहीं। परिवर्तन के नियम के अनुसार इस विकट स्थिति मे भी परिवर्तन आएगा, जो अपेक्षाकृत सकारात्मक होगा। जरूरत है कि हम निराश हुए बिना अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करें। ये बातें दुबारा प्रकाशित होने जा रहे साप्ताहिक ‘ चौथी दुनिया’ के प्रधान संपादक और पूर्व संसद सदस्य संतोष भारतीय ने ‘संपादक से मिलिए’ कार्यक्रम के दौरान भारतीय जनसंचार संस्थान में कहीं।उन्होंने छात्रों से कहा कि एक अच्छा पत्रकार बनने के लिए देश की राजनीति, राजनेताओं और सामाजिक आंदोलनों के बारे में गहराई से जानना चाहिए। श्री भारतीय ने कहा कि देश की बदहाली की शुरुआत अस्सी के दशक में ही हो गई थी, पर दुर्भाग्यवश हमारे नेता अभी तक उसी तरह का रणनीति का अनुसरण कर रहे हैं। इस स्थिति में हम पत्रकारों की ये नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि हम ऐसी स्थिति को बदलने के लिए प्रयत्न करें। किसी भी तरह के दबाव में ना आकर की गई पत्रकारिता ही हमें इस जड़ता से निज़ात दिला सकती है। एक सवाल के जवाब में संतोष भारतीय ने कहा कि किसी भी तरह के दबाव का कारण पत्रकार ख़ुद होता है, ना कि संपादक और मीडिया संस्थान। इस तरह के दबाव से बचने के लिए हमें दृढ़प्रतिज्ञ और आशावान रहना चाहिए। श्री भारतीय ने कलम की ताकत को तोप से ज़्यादा आक्रामक बताते हुए कहा कि कलम को प्रभावी ढंग से प्रयोग करने का तरीका हमें विकसित करना चाहिए। अगर हम ऐसा कर सके तो परिस्थितियां आसानी से बदली जा सकती हैं। पत्रकारिता के छात्रों को विशेष संदेश देते हुए उन्होंने भविष्य में कभी निराश न होने और हार ना मानने की बात कही। उन्होंने कहा कि आने वाला दौर आप सब पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी डालने जा रहा है, निर्णय आपको ही लेना है कि आप समाज में जहर घोलने का काम करेंगे या अमृत घोलने का। रिपोर्ट रणवीर सिंह
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