पंद्रहवीं लोकसभा के लिए चुनाव की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. कुछ नाम हमेशा की तरह गैरजरूरी ढंग से चर्चा में हैं तो कुछ नये नाम भी सामने हैं. इस बार नए नामों में संजय दत्त, चिरंजीवी, वरुण गाँधी, मोहम्मद अजहरुद्दीन और मदन लाल का नाम है. संजय दत्त सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन अब उनकी पत्नी मान्यता के लड़ने की उम्मीद है! पुराने नामों में जयाप्रदा, गोविंदा, विनोद खन्ना, हेमामालिनी, राज बब्बर, शत्रुघ्न सिन्हा, नवजोत सिंह सिद्धू जैसे कई नाम हैं. इस तरह और भी कई नाम हैं, मसलन- शहाबुद्दीन, अमरमणि त्रिपाठी, राजा भैया, अरुण गवली. ये सब नाम फिल्मों, खेलों और अपराध की दुनिया से राजनीति में आए हुए हैं.
इन सब नामों को चुनावों में शिरकत करते देखकर साफ हो जाता है कि हमारी राजनीति किस ओर जा रही है? इनमें से कुछ अपनी दुकानदारी फीकी पड़ने के बाद राजनीति में आए तो कुछ अपने काले कारनामों को छुपाने(बेहतरी से चलाने) के लिए सत्ता में आने की जुगत लगाते रहते हैं. कुछ अपने माँ-बाप की वजह से आते हैं. राजनीति का इन लोगों का अड्डा बनने की वजह से भी जनता की चुनावों में दिलचस्पी कम होती जा रही है. सवाल ये भी है कि क्या ज़मीन से आने वाले लोगों के लिए अब यहाँ जगह नहीं बची है? राजनीति में आने के लिए पैसा होना, नाम (बदनाम) होना या किसी राजनीतिज्ञ के घर में पैदा होना ही पहली शर्त है. विचारधारा का क्या है वह तो बनती बिगड़ती रहती है. इन सब नामों से क्या उम्मीद की जा सकती है?
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