Friday, April 10, 2009
लोकतंत्र का सामंतवाद
लालू प्रसाद यादव ने वरुण गांधी के संदर्भ में जो 'रोलर चला देता' वाला बयान दिया है, उससे शीर्ष पदों पर बैठे भारतीय नेताओं की मानसिकता का आप अंदाज़ा लगा सकते हैं.
भारत में पहले राजशाही थी. लोकतंत्र के जामे में सामंतवाद आज भी कायम है और लालू प्रसाद यादव के बयान से उन जैसे नेताओं का ख़ुद को चुने हुए शहंशाह समझने का भ्रम झलकता है.
जो उन्होंने सोच लिया वही सही है, जो उनके मुँह से निकल गया वही क़ानून है. वोट लेने के लिए और तथाकथित वोट बैंकों को लुभाने के लिए वे कुछ भी कह-कर सकते हैं.
वरुण गांधी के मुस्लिम विरोधी भाषण की इस ब्लॉग पर हमने जम कर आलोचना की थी और कहा था कि अपना राजनीतिक भविष्य सँवारने का वरुण इससे ग़लत रास्ता नहीं चुन सकते थे.
पर वरुण के समर्थक फिर भी उनकी अपरिपक्वता, कम तजुर्बे और नौजवान ख़ून की नासमझी की दुहाई देते हुए उनकी हो रही आलोचनाओं में कुछ राहत की बात कह सकते थे, यह अलग बात है कि यह सब बात पुख़्ता दलील कम और पकड़े जाने पर नरमी की दलील का बहाना ज़्यादा लगती है.
पर लालू जी न तो राजनीति और सार्वजनिक जीवन में दूध पीते बच्चे हैं और न ही 'जेपी आंदोलन' के दौरान राजनीति में उभरे लालू जी सियासी अनुभव में किसी भी अन्य नेता के मुक़ाबले उन्नीस पड़ते हैं.
फिर आख़िर क्या सोच लालू जी यह बोले कि अगर वे देश के गृह मंत्री होते तो वरुण की छाती पर रोलर चलवा देते, फिर चाहे नतीजा कुछ भी होता.
क्या लालू जी को वाक़ई इस बात का इल्म नहीं था कि वे क्या बोल रहे हैं और उसका क्या परिणाम हो सकता है. या फिर सत्ता के मद में वे इतना निरंकुश हो गए कि वो जो कहें और सोचें वही सही है.
क्या वोट बैंक की राजनीति में जैसे सब अच्छाई, सभ्यता और सार्वजनिक चर्चा के तौर-तरीक़े भारतीय नेता 'स्वाहा' करने पर आमादा हैं.
वोट बैंक की राजनीति की बात चल ही गई है तो एक बात और....क्या इन नेताओं ने- फिर चाहे वह वरुण हों या लालू जी--हिंदू और मुस्लिम मतदाताओं को इतना मूर्ख या आसानी से वरगलाया जा सकने वाला समझ लिया है कि यह वर्ग बस इनकी बातों, बयानों और भाषणों के पीछे की असलियत समझे बिना उनके सियासी खेल का मोहरा बने रहेंगे?
अब लालू जी यह कह कर बचने की कोशिश कह रहे हैं कि उनकी बातों का गूढार्थ देखा जाए. वे तो वरुण की राजनीति पर रोलर चलवा देने की बात कह रहे थे.
पर लालू जी, अंग्रेजी की कहावत है जो अंत कुछ इस तर्ज़ पर होती है, '......यू कांट फूल ऑल द पीपल ऑल द टाइम.' यानी, आप सभी लोगों को हर समय मूर्ख नहीं बना सकते.
जितनी जल्दी यह बात भारतीय नेताओं की समझ में आ जाए, उतना ही यह बोध उनके और भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होगा.
स्त्ोत- संजीव श्रीवास्तव का ब्लॉग
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