Friday, March 5, 2010

सचिन तेंदुलकर और उसका खेल महान नहीं है...

सचिन तेंदुलकर की नाबाद 200 रनों की पारी और भारत का किक्रेट के टेस्ट प्रारूप में नंबर एक और वन-डे में नंबर दो बनना भारतीय मीडिया में किक्रेट को फिर से सुर्खियां बना देता है। इसी बहाने सचिन के अंध भक्त उन्हें एक बार फिर क्रिकेट का सर्वकालिक महान खिलाड़ी बनाने के धंधे में जुट गये हैं। इसके अलावा एक और मुहिम छेड़ दी गई है, सचिन को भारत रत्न दिलवाने की। और छुपे शब्दों में ही सही सचिन ने भी इस सम्मान के प्रति अपनी चाह जता दी है। यानी लाबीईंग शुरू हो चुकी है। और संसद में यह मुद्दा उठने पर सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने आपसी मतभेदों से इतर इस पर अपनी सहमति भी जताई है।

यहां पर सचिन के महान हो जाने की पड़ताल की जा रही है। एक खिलाड़ी के रूप में, हो सका तो एक भारतीय के रूप में और एक इंसान के रूप में भी। पर उससे पहले खेल के चरित्र खासकर किक्रेट के चरित्र को समझने की भी एक कोशिश। कहा जाता है कि खेल हमारे दैनिक जीवन का अति आवश्यक अंग होते हैं। यह हमारे अच्छे स्वास्थय और चरित्र(मजबूती, धैर्य, साहस, सहनशीलता आदि) निर्माण में भी सहायक होते हैं। लेकिन आज हम में से कितने लोग रोज कुछ भी खेल पाते हैं। खेल तो अब देखा और बेचा ही जाता है। बाजार प्रायोजित खेल किसी भी देश का भला नहीं कर सकते। जैसा कि सेप ब्लाटर(फीफा अध्यक्ष) का उदाहरण देते हुए प्रवीण कहते हैं कि, "फुटबाल पिछड़े और विकासशील देशों के लिए प्रगति और संपन्नता का औजार है।" सेप ब्लाटर से पूछा जाना चाहिए कि फुटबाल विश्व कप के पांच बार के विजेता और दो बार के उपविजेता, एक पिछड़े और विकासशील देश, ब्राजील का इस खेल ने कितना भला किया है। इसी तरह प्रवीण से भी पूछा जाना चाहिए कि क्रिकेट ने एशिया या भारत का, जहां इसका चरम देखने को मिलता है, कितना भला किया है।
आज भारत का हर क्रिकेट मैच खास होता है। इसे देखने के लिए लोग अपने काम के दिनों में छुट्टियां तक लेते हैं। अगर ऑफिस में ही रहना हुआ बॉस से लेकर चपरासी तक सभी लोग भेदभाव भुला कर टीवी सेट से चिपके रहते हैं। चाहे ऑफिस सरकारी हो या निजी संस्थान सभी जगह एक सा आलम रहता है। पूरी सड़कें, गलियां सुनसान हो जाती हैं। जीतने पर मिठाइयां बांटी जाती हैं। पटाखे छोड़े जाते हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्रिकेट ने इस देश का कितना नुकसान किया है। हर मैच के दिन सामान्य दिनों की तुलना में कितना काम कम होता है। इस तरह से तो देश का कोई भला नहीं हो रहा और आगे भी ऐसे ही आसार हैं।
आशीष नंदी अपनी किताब 'The Tao Of Cricket' (1989) में भारत बल्कि पूरे भारतीय महाद्वीप में टेस्ट क्रिकेट के इंग्लैंड से भी ज्याद प्रचलित हो जाने के कारणों की खोज करते हैं। और इसी क्षेत्र में टेस्ट मैचों के ज्यादातर अनिर्णित समाप्त होने का कारण इन देशों के लोगों का जोखिम उठाने के बजाए भाग्य जैसी चीजों पर विश्वास और परम् संतोषी होना बताते हैं। इसी दौर में पश्चिमी देशों में ज्यादा टेस्ट मैचों के परिणाम निकला करते थे। आज स्थिति उलट है। यहां अवश्यंभावी परिणाम निकलने वाले, T-20 मैच सबसे ज्यादा पसंद किये और खेले जाते हैं। लेकिन इसका कारण यह नहीं है कि अब भारतीय या भारतीय उपमहाद्वीप के लोग कर्म को भाग्य पर प्रमुखता देने लगे हैं। बल्कि क्रिकेट को तो आज धर्म कह कर प्रचारित किया जाता है। इसमें जीतने पर खिलाड़ियों को देवता और हारने पर गद्दार, कामचोर और भी बहुत कुछ कहा जाता है। आज भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट कट्टरता और अनावश्यक उन्माद के फैलते जाने का एक साधन भी बन गया है। खिलाड़ी भी महज पैसे के लिए(खेलभावना से दूर) खेलते हैं, जल्दी और ज्यादा कमाई वाले प्रारुप को चुनते हैं। बीसीसीआई और अकूत कमाई के लिए खेलते खिलाड़ी देश के खिलाड़ी, देश की शान बताए जाते हैं।
बात अगर सचिन की नाबाद 200 रन की पारी की की जाए तो वह पूर्व में दो बार ऐसा करते करते रह गये थे। एक बार न्यूजीलैंड के खिलाफ 186 रनों पर नाबाद रहे थे तो दूसरी बार ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 175 रन बनाकर आउट हुए और प्रभाष जोशी को भी चलता कर गये। इस बार की पारी वाकई शानदार थी, लगभग बेदाग भी। लेकिन जिस बॉलिंग के खिलाफ और पिच पर यह कारनामा किया गया उसका भी इन 200 रनों में कुछ हाथ था। सचिन ने 200 रन, 147 गेंदे खर्च कर, 25 चौकों के साथ 136 से ज्यादा के स्ट्राइक रेट से बनाए। वन-डे क्रिकेट में स्ट्राइक रेट का बड़ा महत्व होता है। भारतीय मीडिया ने एकिदवसीय क्रिकेट के इस पहले दोहरे शतकवीर को सिर-आंखों पर बैठाया। लेकिन सचिन से पहले भी यह कारनामा हो चुका था। अब सवाल यह उठता है कि यह सब जानते हुए भी सचिन की जय-जयकार क्यों हो रही थी। महज इसीलिए नहीं कि वह भारतीय हैं बल्कि इसीलिए भी क्योंकि वह एक पुरुष होने का विशेषाधिकार भी रखते हैं। सचिन से पहले यह कारनामा ऑस्ट्रेलिया की महिला खिलाड़ी बी.जे. क्लार्क अंजाम दे चुकी थीं। उनसे भी बेहतरीन अंदाज में। महज 155 गेदों में 147 से ज्यादा के स्ट्राइक रेट से 22 चौकों के साथ नाबाद 229 रन बना कर। यह काम क्लार्क ने भारत में ही, 1997 में किया था, मगर हमें इसकी खबर नहीं है।
हो सकता हे कि हम में से कई लोग यह बात न जानते हों पर सचिन को यह मालूम न होगा ऐसा कहना बेवकूफी होगी। सचिन अगर एक महान खिलाड़ी और समझदार आदमी होते तो वह सामने आकर मीडिया के इस दोगलेपन और झूठ की पोल खोलते, लेकिन वह तो अपनी शानदार पारी, भविष्य की योजनाओं, अपने सपनों और भारत रत्न पाने की ख्वाहिश जताते ही दिखे। इस खेल में शामिल होती शारीरिक ताकत और क्रूरता हमेशा से महिलाओं को दोयम दर्जे का खिलाड़ी मानती है। वैसे भी सचिन कितने बड़े भारतीय हैं, यह उन्होंने 2002 में विदेश से उपहार स्वरूप मिली फरारी कार को भारी टैक्स से छूट दिलवा कर(बकायदा कानून में संशोधन करवा कर, 2003 में) दिखा ही दिया था। इस कारनामे का कारण वही महानता थी जो आज उन्हें भारत रत्न दिलाने के पीछे काम कर रही है।
खिलाड़ी के रूप में सचिन की तुलना ब्रेडमेन और लारा के साथ ही की जाती है(सुनील गावस्कर, रिचर्डस, स्टीव वॉ, रिकी पोंटिंग आदि अब पीछे रह गये हैं)। ब्रेडमेन और लारा दोनों क्रिकेट के सर्वाधिक मान्य प्ररूप टेस्ट के महान खिलाड़ी हैं जबकि तेंदुलकर के रिकार्ड टेस्ट में कम बेहतर हैं। ब्रेडमेन तब क्रिकेट खेलते थे जब हैलमेट और दूसरे बॉडी कवर्स ईजाद नहीं हुए थे। इसके अलावा एक दिन में सिर्फ 72 ओवरों का खेल होता था। फिर भी भी ब्रेडमेन दो बार 300 पार पहुंचे थे और एक बार तो एक ही दिन में। प्रथम श्रेणी में उनका उच्चतम स्कोर 452 नाबाद रहा था। ब्रायन लारा ने टेस्ट में 375 रन बना कर एक बारगी सभी को पीछे छोड़ दिया था। मैथ्यू हेडेन के 380 रन बनाने पर वे 400 नाबाद रन बनाकर फिर से सबसे आगे हो गये थे(अभी भी)। प्रथम श्रेणी का उच्चतम स्कोर भी उनके ही नाम है- 501 नाबाद। इनके मुकाबले सचिन का सर्वश्रेष्ठ स्कोर टेस्ट और प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 248 नाबाद है। आंकड़े किसी को बेहतर साबित नहीं करते लेकिन टेस्ट मैचों के आवश्यक गुण विकेट पर देर तक टिकने को तो बताते ही हैं। प्रभाष जोशी के शब्दों में कहें तो ब्रेडमेन और लारा दोनों में ही सचिन से ज्यादा धारण कर सकने की क्षमता है।

4 comments:

  1. badiya aur nayi soch hai par vivad paida ho sakta hai

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  2. Really Bharat this is a very good piece of writing. if it reaches to parveen he will definitely have to think about it.

    i appreciate your observation n analysis.
    keep on refining the friends and their expression.

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  3. kya do satak laga lene ke baad sachin ko crik ka bhagwan maan lena chahiye
    a r rahman ko sangeet ka bhagwaan maan lena chahiye use to oscar mila hai....

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  4. Jaldbaazi mein likhi gayi ek sathi oe uthli post ke liye atirikt marking par shukriya...
    bharat

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