नई दिल्ली 20 फरवरी। आज के समय में निकलने वाले अखबारों की तुलना आज़ादी के समय के अखबारों से नहीं की जा सकती। अब अखबार किसी मिशन के तहत नहीं निकलते। समय के साथ पत्रकारिता के स्वरूप में व्यापक परिवर्तन हुआ है। समाचार समाज की बात को समाज के सामने लाने के लिए होते हैं, इसलिए धर्म समेत समाचार पत्रों में छपने वाले हर विषय का सरोकार सीधे सीधे समाज से जुड़ा होता है। भारतीय जनसंचार संस्थान में ‘संपादक से मिलिए’ कार्यक्रम के तहत दैनिक आज समाज के संपादक मधुकर उपाध्याय ने उक्त आशय का वक्तव्य दिया। उन्होंने क्षेत्रिय भाषाओं की स्थिति पर कहा कि मात्र ढाई ज़िलों की हिन्दी भाषा को जबरन राष्ट्रभाषा का दर्जा दे दिया गया। इसी कारण से आज भाषाई असंतुलन हमारे पत्रकारिता और लेखनी में झलकता है। छात्रों को संदेश देते हुए श्री उपाध्याय ने कहा कि भविष्य को संवारने के लिए विद्यार्थी ज़्यादा से ज़्यादा जो़र अवलोकन को दें। क्योंकि अवलोकन से ही हम समाज की हर परेशानी और ज़रूरत का निर्धारण कर उसे उजागर कर सकते हैं। पत्रकारिता कभी कक्षाओं में बैठकर सीखी भी नहीं जा सकती, ना ही कमरे में बैठकर की जा सकती है। सवाल जवाब सत्र में विद्यार्थियों के सवालों के जवाब में श्री उपाध्याय ने कहा कि कोई भी निरपेक्ष होकर नहीं रह सकता। हमारे अंदर हमेशा ही एक पक्ष विशेष के प्रति झुकाव होता है, पर एक पत्रकार की ज़िम्मेदारी दोनों पक्षों की बात रखने की होती है। समाचारों में विचारों के समावेश के सवाल पर उन्होंने कहा कि आज प्रयोग की कमी है, जिसकी भरपाई भावी पत्रकारों को ही करनी है।
रणवीर सिंह
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