तीन राज्यों के चुनावी नतीजों ने भारतीय राजनीति की एक चिंतनीय मगर सच्ची
तस्वीर को दिखाया है जो वर्तमान राजनीति का हाल बयान करती है। कांग्रेस
की जीत से ज्यादा यह एक विकल्पहीन सत्ता पक्ष की जीत है जहाँ विपक्ष नाम
का चाँद पूर्णिमा के इंतजार में बेबस सा बैठा हुआ है। आज विपक्ष में एक
भी ऐसा नेता नहीं है जो कांग्रेस के घोषित युवराज के टक्कर का हो।
महाराष्ट्र में लगातार तीसरी बार कांग्रेस के सत्ता में आने का यदि कोई
कारण था तो वह कांग्रेस के विपक्षी गठबंधन में तालमेल का अभाव और वोटों
का बँटना। कांग्रेस ने पिछले 10 सालों में ऐसा कोई कमाल नहीं किया था कि
लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटती। लेकिन बेहतर विकल्प के अभाव में जनता
ने फिजूल में दिमाग पर जोर डालना मुनासिब नही समझा। बाकी की कसर राज
ठाकरे ने निकाल दी। उनकी मनसे ने 11 सीटों पर जीत तो हासिल की ही करीब 30
सीटों पर भाजपा-शिवसेना गठबँधन को हराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हरियाणा के चुनावी नतीजों ने साफ दिखाया कि यदि वहाँ विपक्ष में एकता
होती तो सत्ता भी उसी के हाथ में होती। रही अरूणाचल-प्रदेश की बात है तो
वहाँ इतिहास में भी विपक्ष की कोई परंपरा नहीं रही है और इस दफे भी वही
हुआ। देश की राजनीति एक ऐसे रास्ते की तरफ जा रही है जहाँ शायद ना तो
विकल्पों की जगह होगी और ना ही परिवर्तन का उत्साह।
शशि
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