नरेश [ रोल नम्बर २३ ] 09816101490
Thursday, October 1, 2009
नरेश [मात्र दिसम्बर २००८ तक का छात्र ] की चिठ्ठी, बिछुडे दोस्तों के नाम
कई दिनों बाद आज इन्टरनेट पर अपना जीमेल चेक किया.भेल के बारे में छपा सन्देश पढ़ा . आप सबकी टिप्पणिया भी पढी . आज आप दोस्तों से कुछ अनुभव बांटना चाहता हूँ . मेने दिसम्बर में आई आई ऍम सी को अलविदा कह दिया था . आज भी मेरे मन में ये बड़ी कसक है कि मै अपने डिप्लोमा को पूरा नही कर पाया. ये कसक आजीवन मेरे मन में रहेगी . पर दोस्तों इससे मेरे इरादों पर कोई फर्क नही पडा. मेरी पत्रकारिता जारी है और कुछ अलग तरह से जारी हें ,जिसके लिए मुझे किसी कैम्पस प्लेसमेंट कि आवश्कता नही है . मै हिमाचल के अपने गृहजिला सिरमौर में भारतीय जीवन बीमा निगम[एल आई सी ] में विकास अधिकारी के पद पर कार्यरत हू . पत्रकारिता मेरा मिशन और पेशन हे इसलिए छोटे लेवल पर ही सही लेकिन पत्रकारिता जारी हे.यहाँ ग्रामीणों से सीधे सम्वाद कायम करता हू और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करता हू, अनपढ़ और पिछडे लोगो के कामो में उनकी सहायता करता हू और उच्च पदों पर तेनात अपने दोस्तों से उनकी समस्याओ को दूर करने के बारे में बात करता हू. लोकल समाचार पत्रों में काम करने वाले मेरे पत्रकार साथी इस काम में मेरे हमेशा काम आते हे. यहाँ के स्कुलो में पदने वाले bacho को में आप जेसे विद्वान् साथियो के किस्से सुनाता हू और उनसे आप जेसा बनने कि अपील करता हू. अपने बेरोजगार साथियों को अखबार और इन्टरनेट के माध्यम से निकलने वाली भर्तियों कि जानकारी देता हू . कई साथियो को एल आई सी मै अभिकर्ता बनाकर उनको रोजगार दिलाया हें .आगे भी मेरी कई योजनाए हे . गजेन्द्र और आन्पुरना मेरे मिशन के बारे में कुछ कुछ जानते हे. अगर मेहनत और भाग्य ने साथ दिया तो कुछ वर्षो में हिमाचल में अपना अखबार निकालुगा. मै जनता हू कि काम बहुत मुश्किल हे लेकिन जब आई आई ऍम और आई आई टी के छात्रों के कारनामे पड़ता हू तो सोचता हू कि हम भी तो आई आई ऍम सी से हें फिर हम किस से कम हें. अगर वे प्रबंधन और तकनिकी के topper हे तो पत्रकारिता के topper तो हम भी हे. दोस्तों अगर उद्देश्य सही हो तो छोटा काम भी बहुत बड़ा बन सकता हे. मेरे पत्रकारिता के मूल्यों के लिए वह दिन बहुत सुकून भरा था जब मेरे समझाने पर मेरे एक केमिस्ट दोस्त ने नशे कि दवाईओं का कारोबार बंद कर दिया था. दोस्तों एसी रूम में बैठकर पेन घीसना पत्रकारिता नही , असली मकसद हे कि हम अपने समाज को किया देकर जाते हे. और इसलिए आज में अपने समाज में रहकर उनके लिए काम कर रहा हू. अनिल चमरिया सर ने पिछडो के लिए पत्रकारिता के शायद यही मायने समझाये थे.
धन्यवाद
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
kya khoob likha hai sir
ReplyDeleteit is true journlism
i welcomes to you
i really appreciate your way of thinking and not only this but also your work, naresh. best of luck.
ReplyDeleteनरेश जी की यह पोस्ट दिल को छू गई। काफी दिनों से उनकी कोई खबर नहीं थी। हमें उनके पारिवारिक समस्या के बारे में बताया गया था, लेकिन अब यह जानकर अच्छा लगा कि वह कहीं अलख जगाने में व्यस्त हैं। निश्चित तौर पर एसी हॉल में बैठकर पीत पत्रकारिता ही की जा सकती है।
ReplyDeleteऐसे वक्त में जब हम महज ज्यादा पैसे (भेल की नौकरी को मैं पैसे कमाने के लिए की गई नौकरी मानता हूं)की लालच में एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने से नही चूक रहे, विकास अधिकारी के तौर पर ही सही नरेश जी की यह चिट्ठी हमें सीख दे रही है। उनके शब्द सही हैं कि हम बिछुड़े हैं। हम अपनी पत्रकारिय प्रतिबद्धता से बिछड़ चुके हैं।
नरेश जी को उनकी नई पारी के लिए शुभकामनाएं।
Hi, Naresh
ReplyDeleteBuddy How are you.
My love..