तीन राज्यों के विधान सभा चुनावों में, अरूणाचल में परिणाम पूर्णतया आशाके अनुकूल रहे तो महाराष्ट्र में भी प्रथम दृष्टया कांग्रेस ने बेहतरकिया। हरियाणा में भी सत्ता शीर्ष से फिसलने के बावजूद सत्ता पर कांग्रेसकी पकड़ बरकरार है अर्थात मतदाताओं ने पूरी तरह खारिज नहीं किया है। कुलमिलाकर कांग्रेस जीती तो जरुर है लेकिन "जीत" शानदार नहीं किन्तु परन्तुवाली है।महाराष्ट्र में कांग्रेस की बढ़त मनसे द्वारा कांग्रेस को दिया गयाप्रतिफल है । मनसे की बीती कारगुजारियों पर कांग्रेस के मूक समर्थन केबदले में । जिसने खुद 13 सीटें तो जीती हीं भाजपा-शिवसेना गठबन्धन कोतकरीबन 30-35 सीटों पर निर्णायक नुकसान पहुँचा डाला । बची-खुची कसर भाजपा-शिवसेना के लचर गठबन्धन संगठन और सुस्त पड़े निराश कार्यकर्ताओं ने पूराकर दिया ।अरूणाचल के चुनाव की झलक मुख्यमन्त्री दोरजी खांडू और उनके दो सहयोगियोंके निर्विरोध निर्वाचन से ही मिल गयी थी । अरूणांचल वासियों का चुनावोंमें पूरे उत्साह के साथ भाग लेना, पूर्ण बहुमत वाली स्थायी सरकार देना,मौजूदा परिस्थिति में अरूणांचल प्रदेश और कांग्रेस के लिए भी, बहुत हीसुखद है।हरियाणा का परिणाम वास्तव में कांग्रेस के लिए निराशाजनक रहा। कांग्रेसके लिेए यह चिन्तन का विषय होना चाहिये कि आखिर क्या वजह थी कि अभी कुछमहीने पहले 10 लोकसभा सीटों में से नौ सीटें जीतने वाली कांग्रेस पाँच-छमहीने के भीतर ही हरियाणा में क्यों लुढ़की जबकि पूरा विपक्ष बिखरा हुआथा। एक तरह से पूरा मैदान खाली था। ,कहीं ऐसा तो नहीं कि समय से पहले चुनाव कराने की रणनीति उल्टी पड़ गयी?मुझे लगता है कि हुड्डा की वन मैन आर्मी बनने की चाहत ने राज्य स्तरीयनेताओं के सहयोग से कांग्रेस को वंचित कर दिया।
रणविजय ओझा
चर्चा में
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