तीन राज्यों के चुनावी नतीजों का मतलब कांग्रेस की जीत से ज्यादा विकल्प
के रूप में कमजोर विपक्ष और उनके बिखराव से है। यह बात हरियाणा और
महाराष्ट्र में तो पूरी तरह से लागू होती है। महाराष्ट्र में लगातार
तीसरी बार कांग्रेस के सत्तासीन होने का यदि कोई कारण था तो वह विपक्ष और
एंटी कांग्रेस गठबंधन वोटों में विभाजन। कांग्रेस ने इन पाँच सालों में
ऐसा कुछ नहीं कर दी थी कि लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटती। लेकिन ऐसा
तब होता जब इससे बेहतर विकल्प मौजूद होता। जनता के समक्ष भाजपा और
शिव सेना एक बेहतर विकल्प नहीं थी। रही-सही कसर राज ठाकरे ने निकाल दी।
यह लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला था। मनसे ने 11 सीटों पर जीत तो
हासिल की ही करीब 25 से 30 सीटों पर भाजपा-शिव सेना को हराने में भी
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हरियाणा के चुनावी नतीजों से तो साफ
है कि यदि यहाँ विपक्ष में एकता होती तो सत्ता भी उसी के हाथ में होती।
भाजपा के रणनीतिकार अकेले चुनाव लड़कर अब अफसोस ही करते होंगे। जहाँ तक
अरूणाचल प्रदेश की बात है तो वहाँ विपक्ष की कोई परंपरा ही नहीं रही है।
भारतीय लोकतंत्र में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच जो पहचान का संकट
कायम होते जा रहा है उससे जनता के लिए राजनीतिक परिवर्तन कोई मायने नहीं
रखता।
रजनीश
Sunday, October 25, 2009
कमजोर विपक्ष
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रजनीश ने अन्य साथियों के मुकाबले ज्यादा सटीक विश्लेषण किया है.
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