Monday, November 24, 2008

भगवान और आदमी

मंदिरों में खूबसूरत लड़कियों की लम्बी कतारें देखकर,
एक ख्याल रह-रह कर जेहन से टकराता है।
कि कैसे मिल जाता होगा भगवान को,
बिना मांगे, बिना कुछ किए-
इन खूबसूरत बालाओं का सानिध्य....
जबकि मिलता नहीं है आज आदमी को कुछ मांगने और करने के बावजूद।
शायद भगवान होने का यही मतलब है,
बिना मांगे,बिना कुछ किए सब हासिल करते रहना।
उसे थकान भी नहीं लगती सदियों से एक ही हालत में सातमुहें शेषनाग के ऊपर बैठे हुए।
उसके नकारेपन का एक और सबूत है उसकी अर्द्धांगिनी की नियुक्ति-
जो शायद उसके बदन पर बैठी मक्खियाँ उड़ाने और उसके पैर दबाने के लिए ही है।

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