Friday, May 29, 2009

शुक्रिया



आज भी याद है वह दिन जब अनिल चमड़िया सर के कैबिन में मुझे सर ने कहा था- तुम्हें ऐसी कई चीजें पता हैं जे ये सब नहीं जानते। तुम अपनेआप को किसी से कम क्यों समझती हो।
वह दिन जब लालबहादुर ओझा सर ने मेरी एक बात पर गुस्सा होकर कहा था - तुमसे तो हम यह उम्मीद नहीं करते। तब मुझे पहली बार लगा कि मुझसे उम्मीद की जा रही है।
और सबसे ज्यादा वह दिन जब डॉ आमंद प्रधान सर ने मेरे पिताजी से यह कहा कि ये मेरा नाम रौशन करेगी।मुझे ये बात बाद में मालूम हुई।
अब जब मैं टॉपर बन गई हूं, तो मुझे ऐसा लग रहा है कि मुझे यह विश्वास और मार्गदर्शन नहीं मिला होता, तो मैं शायद आईआईएमसी के सुनहरे इतिहास का इस तरह हिस्सा नहीं बन पाती। मेरी इस खुशी का श्रेय मेरे अध्यापकों को जाता है, लेकिन मेरी इस खुशी में उतने ही भागीदार मेरे हिंदी पत्रकारिता के सभी दोस्त हैं, जिन्होंने मेरा उत्साह बनाए रखा और मुझे नई चीज़ें सिखाईं।
खासतौर से मेरी वो सहेलियां जिन्होंने मुझसे अपनी-अपनी असाइमेंट का त्याग करने की बात कही थी ताकि मैं टॉप करके उन्हें पार्टी दे सकूं।
सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया।
चेतना भाटिया


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