Wednesday, February 25, 2009

स्माइल पिंकी को भी ऑस्कर

हिमांशु शेखर
इस बार का ऑस्कर अवार्ड कई मायने में भारत के लिए बेहद खास रहा। एक तरफ तो 81 वें अकादमी आवार्डस में स्लमडाॅग मिलेनियर ने आठ ऑस्कर हासिल करके एक इतिहास रच दिया वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की एक लड़की पर बनी फिल्म ‘स्माइल पिंकी’ ने भी आॅस्कर हासिल करके हिंदुस्तानी सिनेमा को चाहने वालों के लिए दोहरी खुशी अर्जित की।
जब से ऑस्कर के लिए नामांकन की घोषणा हुई, उसी समय से हर ओर स्लमडाॅग मिलेनियर की चर्चा हो रही थी। हर तरफ रहमान और फिल्म से जुड़ी उनकी टोली की सफलता की अपेक्षा की जा रही थी। इस चर्चा में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के एक छोटे से गांव रामपुर दहाबा की पिंकी की कहानी पीछे छूटती दिखी। 39 मिनट की डाॅक्यूमेंट्री ‘स्माइल पिंकी’ को हिंदी और भोजपुरी में बनाया गया है। इसका निर्देशन अमेरिका की मेगन मायलन ने किया है।
पिंकी की सर्जरी डाॅक्टर सुबोध कुमार सिंह ने की है। वे स्माइल ट्रेन नाम की अंतरराष्ट्रीय संस्था के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में काम करते हैं। उन्होंने भी पिंकी के पुराने दिनों को याद करते हुए एक अखबार को बताया था कि पिंकी बड़ी प्यारी और मासूम बच्ची है लेकिन होंठ कटा होने के कारण उसे बहुत चिढ़ाया जाता था। पिंकी ने स्कूल जाना शुरु भी किया था लेकिन छोड़ना पड़ा। उसकी हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह जब खेलना चाहता थी तो दूसरे बच्चे उसके साथ खेलने को तैयार नहीं होते थे। स्माइल ट्रेन सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से ऐसे बच्चों को ढूंढकर उनका निःशुल्क इलाज करता है। इसी दौरान पिंकी को भी चिकित्सा शिविर में आने का मौका मिला था। जब से पिंकी का आॅपरेशन हुआ है तब से उसके प्रति लोगों का बर्ताव भी बदला है और अब वह खेल-कूद रही है। पिंकी अब पूरे गांव के लिए प्यारी गुड़िया हो गई है। अब उससे बात करने के लिए उसके गांव मिर्जापुर में फोन आते रहते हैं और वहां गांव के लोग इकट्ठा हो जाते हैं।
उल्लेखनीय है कि ‘क्लेफ्ट लिप’ नाम के इस बीमारी की शुरुआत गर्भावस्था में ही हो जाती है। गर्भावस्था के चैथे से 12वें सप्ताह के अंदर होंठ और तालु का विकास होता है। इस दौरान यदि किसी वजह से विकास नहीं हो पाता है तो होंठ या तालु कटे रह जाते हैं। हालांकि, इसके कारणों को लेकर दुनिया भर में शोध चल रहा है ताकि इस बीमारी को होने से ही रोका जा सके या इसकी आशंका कम हो जाए। इस बीमारी के कारण बच्चों को कई तरह के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दवाबों का सामना करना पड़ता है। ऐसा अनुमान है कि भारत में दस लाख से ज्यादा बच्चों को तालु या कटे होंठ होने के कारण आॅपरेशन की जरूरत है और हर साल 35 हजार बच्चे ऐसे पैदा होते हैं जिनके होंठ या तालु कटे होते हैं। डाॅक्टरों की मानें तो केवल 45 मिनट से दो घंटे के एक आॅपरेशन से इन बच्चों का जीवन बदल सकता है। इस बात में जान इसलिए भी लगती है कि पिंकी की जिंदगी एक आॅपरेशन ने बदल दी है। अब देखने वाली बात यह है कि ऑस्कर की खुशियां लेकर आई पिंकी से प्रेरणा पाकर इस बीमारी से जूझने वाले दूसरे बच्चों के लिए क्या किया जाता है?

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