Wednesday, February 18, 2009

रितु की जान सुरजकुंड मेला



सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला परिसर में थीम स्टेट मध्यप्रदेश का 'अपना घर' सजकर तैयार हो चुका था, इसे सजाने में सात वर्षीय रितु का बड़ा योगदान रहा है। रितु भूरी बाई की पोती है जो अपनी दादी के साथ भित्ती चित्र बनाती है।
दरअसल, अपना घर के जरिए थीम स्टेट अपने क्षेत्र की पारंपरिक संस्कृति को दर्शाने की कोशिश करता रहा है। अपना घर में भील जाति की भूरी बाई के अलावा परिवार के पांच लोग है। अपना घर के माध्यम से भील संस्कृति को दर्शाने की कोशिश की जाती रही है। भील समुदाय भूरी बाई आदिवासी भित्तिचित्र उकेरने में माहिर है। यह परंपरा कायम रखने के लिये भूरी बाई अपनी पोती रितु को भित्ती चित्र बनाना सिखा रही है।
रितु कक्षा दो में पढ़ती है। उसे अपने दादी की तरह भित्ती चित्र बनाना अच्छा लगता है। रितु की तीन सहेलियां हैं। वह स्कुल से घर लौटने के बाद अपने सहेलियों संग खेलना पसंद करती है। रितु हंसकर बताती है कि उसकी सहेलियां बहुत अच्छी है। उसकी सहेलियां दिन भर उसके साथ रहती है। रितु बहुत लगाव से भित्ती चित्र बनाती है। और उसे पता है कि वह किसकी चित्र बना रही है। रितु खासकर भगवान गणेश की चित्र बनाती है। सुरजकुंड मेले में बनी अपना घर को बनाने में रितु ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। वह अपने पिता विजय और दादी भूरी बाई को अपना भरपूर सहयोग दिया। मध्यप्रदेश के झबुआ जिले में रहने वाली भूरीबाई को राष्ट्रीय सम्मान मिल चुका है। उसका परिवार जीविकोपार्जन के लिये पेंटिंग का काम करता है। इसके अलावा उसका पुत्र विजय खेतों में भी काम करता है।
आदिम जनजाति भील समुदाय को राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाली भूरीबाई में नाम मात्र भी घमंड नही है। सुरजकुंड मेंले में बना अपना घर में चित्र बनाती भूरीबाई लोगों के सवालों का जवाब एक पोस्टर दिखाकर देती है। उस पोस्टर में भूरीबाई की जीवनी और राष्ट्रीय सम्मान की बातें लिखी हुई है। व्यवहार कुशल भूरीबाई लोगों से बहुत कम ही बातचीत करती है। वह अपना ज्यादा समय भित्ती चित्र बनाने में लगाती है।

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