मैं इस समय अपने बेंगलुरू के ऑफिस में बैठी ये पोस्ट लिख रही हूं। आज सवेरे ही पता लगा कि हमारे बैच की एक साथी निरुपमा पाठक ने अपने घर पर आत्महत्या कर ली। निरुपमा पाठक या नीरू आर, टीवी बैच की भोली सी लड़की थी। हमारे हिंदी बैच के ज्यादातर साथी उसे प्रियभांशु रंजन की दोस्त के रूप में जानते थे। हम सभी जानते थे कि वह दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं। पता तब भी था कि दोनों के जीवन की राहें उनके साथ रहने के फैसले के बाद रपटीली हो जाएंगी। लेकिन ये नहीं पता था कि ये समाज उन्हे जीने भी नहीं देगा।
नीरू के बारे में आत्महत्या की खबरें आ रही हैं । नीरू बिजनेस स्टैंडर्ड इंग्लिश की एक पत्रकार थी। वह किसी गांव, कस्बे की भोली, असहाय, परिवार पर निर्भर लड़की नहीं थी। जिसके पास अपने परिवार का तालिबानी फरमान मानने के अलावा कोई चारा ना रहा हो। इसलिए यह मसला आत्महत्या से ज्यादा कहीं और कुछ प्रतीत होता है। वह आत्म-निर्भर थी। अपने फैसले लेने का उसे पूरा हक था। जाहिर है इस शिक्षा और संस्कार ने ही उस में अपने फैसले खुद लेने की योग्यता भरी थी। वही लड़की जब दिल्ली से अपने माता-पिता को मनाने घर जाती है तो इतनी कमजोर हो जाती है कि आत्महत्या का निर्णय ले लेती है। ये बेहद आश्चर्यजनक है।
मुझे यहां बेंगलुरू में बैठ कर मोहल्ला और भड़ास फॉर मीडिया के माध्यम से जो खबरें मिलीं। उस से मुझे लगता है कि मामला सिर्फ इतना नहीं है। पोस्ट मार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा कि असली बात क्या है? लेकिन हम सब जो पूरा साल प्रियभांशु और नीरू की प्रेमकहानी के गवाह रहे हैं। उनसे ये अपील है कि इस मामले को दबने ना दें। शायद यही वह इकलौती चीज है जो हम नीरू के लिए कर सकते हैं।
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