Monday, April 19, 2010

'मेरी फितरत ऐसी तो नहीं थी'

इंसान के लिए इंसान के पास वक्त नहीं....बस सब एक-दूसरे से दूर भागने में लगे हैं और आज मैं भी उन लोगों की जमात में शामिल हो गया हूं जो किसी को मरता देखकर भी उसकी मदद करने के बजाय मुंह उठाकर आगे बढ़ जाते हैं....दोपहर के करीब ढाई बजे थे....मैं रिंग रोड पर चिड़ियाघर की रेड लाइट के पास से गुजर रहा था....तभी अचानक मेरी नजर सड़क किनारे पड़े एक युवक पर पड़ी....वो सड़क के किनारे खून से लथपथ पड़ा था....उसके सिर से लगातार खून बह रहा था और उसके आसपास की सड़क खून से लाल हो चुकी थी....लोग उसे देखकर रहम की आह भरकर आगे बढ़ते जा रहे थे लेकिन किसी ने इतनी जहमत नहीं उठाई कि वो उस इंसान की मदद करें....जबकि वो इंसान अपनी आखिरी सांसें गिन रहा था....एकाएक मेरे दिल में ख्याल आया कि मैं रुककर इस शख्स की मदद करुं....लेकिन उसी क्षण मेरे अंदर एक और आवाज आई और उसने मुझसे कहा आखिर क्या जरुरत पड़ी है पंगा मोल लेने की....सड़क पर इतने लोग हैं न कोई तो रहम खाकर इसकी मदद कर ही देगा....ये सोचते हुए मैंने अपनी बाइक की रफ्तार और तेज कर दी और मैं वहां से आगे बढ़ गया....बाइक चलाने के दौरान भी वो शख्स मेरी आंखों के आगे घूम रहा था....वही खून से लथपथ पड़ा शख्स बार-बार मुझे झकझोर रहा था....मुझे लगता था कि कहीं वो शख्स मर तो नहीं जाएगा....अब मैं अपने आपसे सवाल करने लगा कि आखिर क्यों मैंने इस शख्स की मदद नहीं की....क्यों मैंने सड़क किनारे जिंदगी के लिए जूझ रहे उस इंसान पर रहम नहीं खाया....कल को मेरे साथ भी कोई खतरनाक हादसा पेश आ सकता है....मैं भी सड़क पर खून से लथपथ जिंदगी और मौत के बीच झूल सकता हूं....ये क्या हो गया है मुझे....मैं इतना स्वार्थी कैसे हो गया लेकिन इन सवालों का जवाब मेरे पास भी नहीं....मैं खुद नहीं जानता कि आखिर मैं कैसे इतना पत्थरदिल हो चुका हूं....मेरी फितरत तो ऐसी नहीं थी....रात को बिस्तर पर जाने के बाद भी मैं खुद से यही सवाल करता रहा लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं सुझा....आज भी वो चेहरा मेरी आंखों से ओझल नहीं होता....मैं अब भी इन सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश कर रहा हूं....

2 comments:

  1. doosro ko dosh dene ke bajay yadi har insan khud se aise sawal poochh sake to aatmchintan ka ye najriya aaj nahi to kal ek bar phir aadmi me insaniyat paida kar sakega. dhanywad.

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  2. yeh apke sath hi nahi hai yeh hum sabke sath hai ki kuch accha karne ke liye bas sochte hi reh jate hai kyounki hum log is tarah ki bhalhai karne ke bad wale result se ghabrate hai ki hamare desh mein to kanoon ulte bachane wale ko hi fansa dete hai aur wohi dosi hota hai jo on the spot pakda jai
    lekin bus accha karne ki kosis karni chaiye.

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