Friday, January 29, 2010
आज भी प्रासंगिक है योजना आयोग
60 साल का हमारा गणतंत्र और 60 साल का योजना आयोग। दोनों आम लोगों से जुड़े हुए हैं। 60 साल बाद हमारे गणतंत्र के सामने कई नई चुनौतियाँ और उद्देश्य हैं। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलुवालिया का आयोग की प्रासंगिकता पर बहस की शुरुआत करना स्वागत योग्य है। बदलते वक्त के साथ आयोग की नीतियों में भी बदलाव होना चाहिए तभी आज की चुनौतियों का सामना किया जा सकता है।
60 साल पहले भारत गुलामी की दासता से तुरंत स्वतंत्र हुआ था। उस समय इसके सामने लोगों को गरीबी और भूख से बचाने की मुख्य चुनौती थी। उद्योग-धंधे नहीं थे, इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी थी। एक अविकसित देश से विकासशील देश तक का सफर तय करने में योजना आयोग को कई साल लगे। आज भारतीय अर्थव्यवस्था उछाल पर है, लेकिन इसके साथ ही एक बड़ी सच्चाई यह भी है कि आज भी देश में 76 फीसदी आबादी की प्रतिदिन की आय 20 रुपये से भी कम है। एकतरफ इंडिया है तो दूसरी तरफ भारत। इसीलिए, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि योजना आयोग का अस्तित्व जरूरी है क्योंकि देश में इसके अलावा कोई दूसरी ऐसी सरकारी संस्था नहीं है जो पूरे देश में समान विकास और अंतरराज्यीय हितों के बारे में बात करती हो। योजना आयोग ही इंडिया और भारत के बीच की खाई को पाट सकता है। हाँ, जरूरत है इसे आज की बदलती आर्थिक व्यवस्था, सामाजिक परिदृश्य और केन्द्र-राज्य के संबंधों में आये बदलाव के संदर्भ में प्रासंगिक बनाने की।
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