सबका अपना-अपना नसीब है
चप्पल भी खुशनसीब है
यह कन्या के गोरे नरम पाँव में आता है
और अपने भाग्य पर इठलाता है
हँसता है,गाता है और सुंदर पाजेब देख
मंद-मंद मुस्काता है।
राह में आए हर चोट हर दर्द को पीता है
कदमों में रहकर भी शान से जीता है
बदहाली में रहता है फिर भी फक्र से कहता है
क्या बढिया तकदीर है।
सबका अपना-अपना नसीब है
चप्पल भी खुशनसीब है
आधुनिक फैशन से नाता जोड़ लिया है
मोची के घर का रास्ता छोड़ दिया है
पुरानी खड़ाऊ वाली परम्परा को तोड़ दिया है
तभी आज यह हर दिल के करीब है
सबका अपना-अपना नसीब है
चप्पल भी खुशनसीब है
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