Tuesday, November 3, 2009

काबा और परदे का उठना...



तीन नवम्बर की शाम रिमोट से खेलते-खेलते अचानक ही एन.डी.टी.वी. पर विनोद दुआ नज़र आ गए तो उनसे पार जाने का मन नहीं हुआ. समाचार को समझने के दौर से ही सुनते आ रहे थे कि एन.डी.टी.वी. इस मामले में औरों से अलग है. शायद कभी कुछ अलग रहा भी हो. अब तो एन.डी.टी.वी. भी हमाम में कूदा पड़ा नज़र आता है. अपने खास शो "विनोद दुआ लाइव" में उन्होंने तीन मुद्दों पर बात की. पहली, महाराष्ट्र और कर्नाटक में कुर्सियों के बँटवारे को लेकर चल रही खींचतान को लेकर थी तो दूसरी, मुंबई में कुछ लोगों के अपने घर के सामने से पिछले एक महीने से कूड़ा न उठाये जाने पर नगर निगम के ऑफिस में ही कूड़ा डालने को लेकर और तीसरी में उन्होंने हमेशा की तरह आखिर में एक मधुर गीत सुनवा कर अपनी बात ख़त्म की.
पहली खबर में उन्होंने नेताओं के लिए "छोटे" शब्द का इस्तेमाल किया. कहा कि नेता अपने स्वार्थों के लिए छोटे हो गए हैं. छोटा होना मतलब कमतर होना. छोटा होना किसी से कम हो जाना कब से बन गया होगा कहना मुश्किल है. लेकिन अब हालत यह है कि कद या उम्र आदि में छोटा होना कमतर होना माना जाता है. छोटे लोगों में अपनी लम्बाई को लेकर हीनग्रंथि होना सामान्य बात है. कोई दवाइयाँ खाकर तो कोई ऊंचे एड़ी के जूते-चप्पल पहनकर अपनी इस कमी को दूर करने की कोशिश करता है. लंबा होना आकर्षक माना जाता है. इस तरह से चलन में आ चुकी इस घटिया उपमा के प्रयोग की उम्मीद उनसे नहीं थी.
दूसरे मुद्दे पर उन्होंने बड़े ही रोचक अंदाज़ में बात शुरू की. उसका लब्बोलुआब ये था कि, नगर-पालिका के अधिकारी जो आई.ए.एस. से आते हैं, और इनमें से कुछ तो गरीब परिवारों से भी आते हैं. ये लोग इन पदों पर आने के बाद वापिस अपने घरों या गावों में नहीं जाते हैं और अपने पुराने दिनों को भूल जाते हैं और उन्हें इन लोगों ने (कूड़ा फेंकने वालों ने) ये बात (गन्दगी) याद दिला दी. विनोद दुआ को ये बात इस सन्दर्भ में कहना इतना ज़रूरी क्यों लगा, ये वो ही बेहतर जान सकते हैं. बात इस सन्दर्भ के बिना भी असरदार तरीके से कही जा सकती थी.
आखिर में उन्होंने कहा कि हम आपको खूबसूरत यादों के साथ छोड़ जाते हैं. और उन्होंने हमें सन् १९६५ में आई अमरजीत की फिल्म "तीन देवियाँ" का गाना- "कहीं बेख्याल होकर..." सुनवाया. इस गाने के बारे में उन्होंने कहा, "ये गाना मोहम्मद रफी ने गाया है, संगीत दिया है- एस.डी.बर्मन ने, बोल हैं मजरूह सुल्तानपुरी के और फिल्म के हीरो हैं देव आनंद." फिल्म का नाम "तीन देवियाँ" था तो जाहिर है फिल्म में तीन अभिनेत्रियाँ भी रही होंगी लेकिन विनोद दुआ ने उनका नाम लेने की जहमत नहीं उठायी. ये तीन अभिनेत्रियाँ थी- नंदा, कल्पना और सिमी ग्रेवाल. हैरत है कि इतने महत्वपूर्ण तथ्य को दुआ जैसा पत्रकार कैसे अनदेखा कर गया. शायद हम अनचाहे और अनजाने में ही अपने होने का सबूत दे जाते हैं. विनोद दुआ के बात कहने में किसी को कमी नज़र आ सकती है तो किसी को नहीं भी आ सकती है. फर्क सिर्फ देखने का है.

2 comments:

  1. Bharat,

    What you said is right on it's place, but the point is very few are able to get what you are trying to say.

    Especially about the word 'chota' or 'small' and about 'Teen Deviyaan'.

    Dua himself is a father of two girls, but he finds the three heroines worthy of not mentioning. Ya there is obviously a sense of Male-bastian. And this of course is not intentional, it's genetic...it's in the psyche.

    So you tried well but people....
    you know are people..

    thanks..

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