Saturday, January 24, 2009

रास्ता है कहाँ

मुझे बनारस से दिल्ली आये पूरे छःमहिने हो गये,जब आये थे तो मन में सिर्फ ये ख्याल था कि जल्दी से ये प्रोफेशनल कोर्स करके किसी भी संस्थान में अच्छे से काम करेगें । अपने पैरो पर खड़े होगें, अपना खर्च खुद निकालेगें क्योंकि इतने लम्बे समय से पापा के पैसे पर पढ़ते -2 बुरा लगने लगा था।
आखिर कब तक मैं पापा के पैसे पर चलूंगी अब मुझे पढ़ना है तो खुद के पैसे से। सोचा था १ साल का कोर्स हैं खत्म होते -2 काम तो मिल ही जायेगा ,फिर पापा को काम कम करना पड़ेगा। लेकिन इस दुनिया में हर चीज मेरे हिसाब से नहीं चलती , इसलिए कोर्स के शुरू होते ही वैश्विक आर्थिक मंदी आ गयी। पुरी दुनिया के साथ -2 भारत में भी आर्थिक मंदी का प्रभाव दिखने लगा। पिछले साल जहाॅ सीनियरों का प्लेसमेंट जनवरी-फरवरी में ही हो गया था,इस बार हालात उसके बिल्कुल विपरीत है। हमारे शिक्षक हम पर मेहनत तो बहुत कर रहे हैं। मैं भी पूरी कोशिश कर रही हूॅ कि उनकी उम्मीद पर खरी उंतरु। मुझे पता है कि मैं ऐसा कर लूंगी। मुझे यह भी पता है कि काम करने वाले कही भी काम कर सकते है किसी भी परिस्थिती में। पर यह मौका भी तो मिलें। किसी महान व्यक्ति ने कहा है कि यदि इस दुनिया में सब तुम्हारी मर्जी से हो तो अच्छा है यदि न हो तो समझो कि ऊपर वाले ने तुम्हारे लिए इससे भी अच्छा कुछ सोच रखा है। वैसे मेरे पसंदीदा अभिनेता शाहरूख खान ने अपनी फिल्म ‘ओम शान्ति ओम‘ में एक बहुत अच्छी बात कही है कि ‘‘हिन्दी फिल्मों के अन्त की तरह जिन्दगी में सब कुछ अच्छा -2 न हो तो समझो कि पिक्चर अभी बांकी है मेरे दोस्त .............


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