सुल्तानपुरी सी ब्लॉक में रहने वाला 13 वर्षीय प्रमोद को टीवी देखने का बहुत शौक था। वह पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान न लगा कर अक्सर टीवी देखा करता था। उसके परिजन उसे टीवी देखने से मना करते और हमेशा डांटते रहते थे। इसी से तंग आकर प्रमोद ने खुदकुशी कर ली।
प्रमोद की जान चली गयी। उसके परिजनों को बहुत दुख हुआ। उसके परिजनों को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसे प्रमोद को नहीं डांटना चाहिये था। प्रमोद का कसूर था कि उसने टीवी देखा। उसके परिजन शायद उसे डाक्टर या इंजीनियर बनाना चाहते थे। उसके लिये अधिक पढ़ने की जरुरत होती है। लेकिन प्रमोद पढ़ाई नही करता था। वह तो सिर्फ टीवी देखता था। प्रमोद को डाक्टर इंजीनियर नही बनना था। उसे तो टीवी स्टार बनना था। एक हीरो न बन सके तो कम से कम स्लमडॉग मिलिनेयर ही तो बन सकता था।
प्रमोद में इच्छा शक्ति की कमी थी। इसलिये उसने अपनी जान दे दी। वह हालात और अपने परिजनों से लड़ नही सका। वह पढ़ाई कर सकता था। अगर उसके परिजन चाहते तो डॉक्टर और इंजीनियर बन सकता था। लेकिन उसके परिजनों ने समस्या को नहीं समज जो प्रमोद को थी। प्रमोद का लगाव टीवी की ओर था। उसके परिजनों को चाहिये था कि प्रमोद को प्रोत्साहित करते पढ़ाई करने पर और उसका रुख टीवी से धीरे – धीरे हटाते।
समाज में ऐसे कई परिजन है जो अपने बेटे को डॉक्टर या इंजीनियर बनाना चाहते है लेकिन करते कुछ नही। वे एक ही काम करते है अपने बेटे को पढ़ाई नही करने पर डांटते हैं या मारते है। क्या ऐसे किसी परिजन ने कभी अपने बेटे से उनकी परेशानी के बारे में कभी पूछा है। अगर परिजनों को अपने बेटे को हो रही परेशानी के बारे में पता चल जाये तो समास्या का हल ही हो जायेगा।
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