Friday, December 5, 2008

कबतक मढ़ेंगे दूसरों के सिर...

आज किस के पास समय नही है कि वह समस्या को सुलझाये। वह समस्या को सुलझाने के बजाये दूसरों के सिर मढ़ने लगते हैं। ऐसा ही एक वाक्या मेरे एक मित्र के साथ हुआ।
मेरा मित्र दिल्ली के एक प्रतिष्ठत मीडिया संस्थान में हिन्दी पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा है। इस दौरान मेरे मित्र ने एक दिन अपने संस्थान में फीस जमा करने के लिये जेएनयू में स्थित एसबीआई एटीएम से रुपये निकाले। निकाले गये रुपयों में एक हजार का नोट जाली था। नोट की शक्ल व सूरत देख अच्छे – अच्छे धोखा खा जाये। मित्र ने अपने फीस जमा करने के लिये उन रुपयों को संस्थान के कैशियर के पास लेकर गया। संस्थान के कैशियर को उक्त एक हजार के नोट पर शक हुआ। उसने उस नोट को संस्थान के करीब सीबीआई बैंक में जांच कराने के लिये भेज दिया। बैंक के कर्मचारियों ने उक्त नोट को जाली करार दे दिया। यह बात संस्थान के कैशियर को पता चला। उसने वह नोट मेरे मित्र को लौटाते हुए कहा कि यह नोट जाली है दूसरा नोट दो। नोट के जाली साबित हो जाने से मेरे मित्र के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। वह सोच में पड़ गया कि क्या किया जाये। जाहिर है ऐसी स्थिति में दिमाग काम करना बंद कर देती है। वह भी ऐसी परिस्थिति जब गलती उसकी न हो और आरोप लगाया जा रहा हो। मेरे मित्र को गुस्सा आया और वह नोट को जाली करार देने वाले सीबीआई बैंक के पास उक्त नोट को लेकर गया। मेरे मित्र ने बैंक के कर्मचारियों से कहा कि आप कैसे कह सकतें हैं कि यह एक हजार का नोट जाली है। जबकि यह नोट मैंने जेएनयू में स्थित एसबीआई के एटीएम से निकाले हैं। मेरे मित्र ने गर्मजोशी से सवाल दागे थे जिसकी वजह से बैंक के कर्मचारी उखड़ गये। वह कहने लगे कि हमने तुम्हारे उपर एहसान किया कि तुम्हारे नोट को काली स्याही से क्रास नहीं किया। मेरे मित्र को समझ में आने लगी कि यहां गर्म होकर बात करने से बात नहीं बनने वाला है। उसने अपना गुस्से को काबू में कर बैंक के कर्मचारियों से समस्या का उपाय पूछने लगा। उपाय एक ही था कि उस नोट को बाजार में चला दिये जायें। जिससे एक हजार का नुकसान से बचा जा सकता था। मेरे मित्र ने भी यह तरीका अपनाया और उस एक हजार के नोट को किसी सर मढ़ दिया।
बात यहीं खत्म नही हो जाती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि कब तक यह सिलसिला चलता रहेगा, कबतक मेरे मित्र जैसे इस देश के नागरिक गलती सुधारने के बजाये उसे दूसरों के सिर मढ़ते रहेंगे। गलती की बात की जाये तो इस मामले में जेएनयू कैंपस में स्थित एसबीआई बौंक के मैनेजर की गलती थी जिसने एटीएम मशीन में जाली नोट रखा। ऐसा एक वाक्या नोयडा में हो चुका है। जहां जाली नोट के एटीम से निकल जाने पर उस ब्रांच के मैनेजर की नौकरी चली गयी।
इन सभी मामलों में जरुरत है जागरुक होने की। आप जागरुक हैं तो आप समस्त समस्याओं से बच सकते हैं। लेकिन आज किसी के पास समय कहां है जागरुक होने की। बस काम होता रहे और दुनिया चलती रहे।

2 comments:

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  2. आपका कहना संही है की हम तंत्र से लड़ने का ज़ज्बा अपने अन्दर नहीं बना पा रहे है इसी कारन हमें कोई भी डरा धमका दे रहा है .आपके मित्र के साथ जो हुआ वह बिलकुल सही नहीं था ...लेकिन जो आपके मित्र ने किया वह भी ठीक नहीं था ...इस तरह से हम अराजकता से लड़ नहीं रहे है बल्कि अराजकता को एक दुसरे के पास पंहुचा रहे है ...अब आपके मित्र ने जिसको वह नोट दिया जब उसे पता चलेगा तो वह भी परेशां होकर किसी दुसरे के मत्थे मढ़ने की कोशिश करेगा ....AAPNE एक ज्वलंत सच्चाई को अपने ब्लॉग पे लिखा इसके लिए शुक्रिया....

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